इन्दीवर

भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
(इंदीवर से अनुप्रेषित)
यहाँ जाएँ:नेविगेशन, खोजें
इन्दीवर
इन्दीवर
इन्दीवर
पूरा नाम श्यामलाल बाबू राय
प्रसिद्ध नाम इन्दीवर
जन्म 15 अगस्त, 1924
जन्म भूमि बरूवा सागर, झाँसी, उत्तर प्रदेश
मृत्यु 27 फ़रवरी, 1997
मृत्यु स्थान मुम्बई
अभिभावक हरलाल राय
पति/पत्नी पार्वती
कर्म भूमि भारत
कर्म-क्षेत्र कवि, गीतकार
मुख्य रचनाएँ 'बड़े अरमान से रखा है बलम तेरी क़सम', 'क़समें वादे प्यार वफ़ा सब', 'छोड़ दे सारी दुनिया किसी के लिए', 'कोई जब तुम्हार हृदय तोड़ दे', 'दिल ऐसा किसी ने मेरा तोड़ा' आदि।
प्रसिद्धि गीतकार
नागरिकता भारतीय
संबंधित लेख मनोज कुमार, कल्याणजी-आनन्दजी, लक्ष्मीकान्त-प्यारेलाल
अन्य जानकारी निर्माता-निर्देशक राकेश रोशन की फ़िल्मों के लिये इन्दीवर ने सदाबहार गीत लिखकर उनकी फ़िल्मों को सफल बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभायी। उनके सदाबहार गीतों के कारण ही राकेश रोशन की ज़्यादातार फ़िल्में आज भी याद की जाती हैं।

श्यामलाल बाबू राय उर्फ़ इन्दीवर (अंग्रेज़ी: Indeevar; जन्म- 15 अगस्त, 1924, झाँसी, उत्तर प्रदेश; मृत्यु- 27 फ़रवरी, 1997, मुम्बई) भारत के प्रसिद्ध गीतकारों में गिने जाते थे। इनके लिखे सदाबहार गीत आज भी उसी शिद्‌दत व एहसास के साथ सुने व गाए जाते हैं, जैसे वह पहले सुने व गाए जाते थे। इन्दीवर ने चार दशकों में लगभग एक हज़ार गीत लिखे, जिनमें से कई यादगार गाने फ़िल्‍मों की सुपर-डुपर सफलता के कारण बने। ज़िंदगी के अनजाने सफ़र से बेहद प्यार करने वाले हिन्दी सिनेमा जगत् के मशहूर शायर और गीतकार इन्दीवर का जीवन के प्रति नज़रिया उनकी  लिखी हुई इन पंक्तियों- "हम छोड़ चले हैं महफ़िल को, याद आए कभी तो मत रोना" में समाया हुआ है।

जन्म

प्रसिद्ध गीतकार इन्दीवर का जन्म उत्तर प्रदेश के झाँसी जनपद मुख्‍यालय से बीस किलोमीटर पूर्व की ओर स्‍थित 'बरूवा सागर' क़स्‍बे में 'कलार' जाति के एक निर्धन परिवार में 15 अगस्त, 1924 ई. में हुआ था। आपका मूल नाम 'श्‍यामलाल बाबू राय' था। इनके पिता हरलाल राय व माँ का निधन इनके बाल्‍यकाल में ही हो गया था। इनकी बड़ी बहन और बहनोई घर का सारा सामान और इनको लेकर अपने गाँव चले गये थे। कुछ माह बाद ही ये अपने बहन-बहनोई के यहाँ से बरूवा सागर वापस आ गये थे। बचपन था, घर में खाने-पीने का कोई प्रबन्‍ध और साधन नहीं था।

गीत लेखन में रुचि

उन दिनों बरूवा सागर में गुलाब बाग़ में एक फक्‍कड़ बाबा कहीं से आकर एक विशाल पेड़ के नीचे अपना डेरा जमाकर रहने लगे थे। वे कहीं भिक्षा माँगने नहीं जाते थे। धूनी के पास बैठे रहते थे। बहुत अच्‍छे गायक थे। वे चंग पर जब गाते और आलाप लेते, तो रास्‍ता चलता व्‍यक्‍ति भी उनकी स्‍वर लहरी के प्रभाव में गीत की समाप्‍ति तक रुक जाता था। जब लोग उन्‍हें पैसे भेंट करते थे तो वह उन्‍हें छूते तक नहीं थे। फक्‍कड़ बाबा के सम्‍पर्क में श्‍यामलाल (इन्दीवर) को गीत लिखने व गाने की रुचि जागृत हुई। फक्‍कड़ बाबा गांजे का दम लगाया करते थे। अतः बाबा को भेंट हुये पैसों से ही श्‍यामलाल चरस और गांजे का प्रबन्‍ध करते थे। श्‍यामलाल उन बाबा की गकरियाँ[1] बना दिया करते थे, स्‍वयं खाते और बाबा को खिलाते। फिर बाबाजी का चिमटा लेकर राग बनाकर स्‍वलिखित गीत, भजन गाया करते थे।

सम्‍मेलन में कविता पाठ

इन्दीवर के बाल सखा 'रामसेवक रिछारिया' ने उन्‍हें राष्‍ट्रीय विचारधारा और सुधार की दृष्‍टि से साहित्य की ओर मोड़ा। वे उनकी रचनाओं को सुधारते रहे। एक बार कालपी के विद्यार्थी सम्‍प्रदाय के सम्‍मेलन में श्‍यामलाल ‘आज़ाद' ने जब मंच पर कविता पाठ किया तो श्रोताओं द्वारा उन्‍हें काफ़ी सराहा गया और बड़े कवियों की भाँति विदाई के समय उन्‍हें इक्‍यावन रुपये की भेंट प्राप्‍त हुई। इन इक्यावन रुपयों से उन्होंने सबसे पहले नई 'हिन्‍द साइकिल' ख़रीदी। तब हिन्‍द साइकिल 36 रुपये में आती थी। सम्‍मेलनों में जाने योग्‍य अचकन और पाजामा सिलवाए। फिर भी उनकी जेब में काफ़ी रुपये बचे थे। उन दिनों एक रुपया की बहुत कीमत थी।[2] देश के 'स्‍वतंत्रता संग्राम आन्‍दोलन' में सक्रिय भाग लेते हुए इन्होंने श्‍यामलाल बाबू ‘आज़ाद' नाम से कई देश भक्‍ति के गीत भी अपने प्रारम्‍भिक दिनों में लिखे थे।[2]

विवाह

युवा होते श्‍यामलाल ‘आज़ाद' की शोहरत स्‍थानीय कवि सम्‍मेलनों में बढ़ने लगी और उन्‍हें झाँसी, दतिया, ललितपुर, बबीना, मऊरानीपुर, टीकमगढ़, ओरछा, चिरगाँव, उरई में होने वाले कवि सम्‍मेलनों में आमंत्रित किया जाने लगा, जिससे इन्‍हें कुछ आमदनी होने लगी। इसी बीच इनकी मर्ज़ी के बिना इनका विवाह झाँसी की रहने वाली 'पार्वती' नाम की लड़की से करा दिया गया।

मुम्बई आगमन

बिना मर्ज़ी के विवाह से ये अनमने रहने लगे और रुष्‍ट होकर लगभग बीस वर्ष की अवस्‍था में मुम्बई भागकर चले गए, जहाँ पर इन्‍होंने दो वर्ष तक कठिन संघर्षों के साथ सिनेजगत में अपना भाग्‍य गीतकार के रूप में आजमाया। वर्ष 1946 में प्रदर्शित फ़िल्‍म ‘डबल फ़ेस' में आपके लिखे गीत पहली बार लिए गए, किन्‍तु फ़िल्‍म ज़्यादा सफल नहीं हो सकी और श्‍यामलाल बाबू ‘आज़ाद' से ‘इन्दीवर' के रूप में बतौर गीतकार अपनी ख़ास पहचान नहीं बना पाए और निराश होकर वापस अपने पैतृक गाँव बरूवा सागर चले आए। वापस आने पर इन्‍होंने कुछ माह अपनी धर्मपत्‍नी के साथ गुजारे। इस दौरान इन्‍हें अपनी पत्‍नी पार्वती से विशेष लगाव हो गया, जो अंत तक रहा भी। पार्वती के कहने से ही ये पुनः मुम्‍बई आने जाने लगे और 'बी' व 'सी' ग्रुप की फ़िल्‍मों में भी अपने गीत देने लगे। यह सिलसिला लगभग पाँच वर्ष तक चलता रहा।

प्रारम्भिक संघर्ष

इस बीच इन्‍होंने धर्मपत्‍नी पार्वती को अपने साथ मुम्‍बई चलकर साथ रहने का आग्रह किया, परन्‍तु पार्वती मुम्बई में सदा के लिए रहने के लिए राजी नहीं हुईं। उनका कहना था, "रहो बरूवा सागर में और मुम्‍बई आते जाते रहो।" इन्दीवर इसके लिए तैयार नहीं हुए और पत्‍नी से रुष्‍ट होकर मुम्‍बई में रहकर पूर्व की भाँति फ़िल्‍मों में काम पाने के लिए संघर्ष करने लगे। वर्ष 1951 मे प्रदर्शित फ़िल्म 'मल्हार' की कामयाबी से बतौर गीतकार कुछ हद तक वह अपनी पहचान बनाने मे सफल हो गए। फ़िल्म 'मल्हार' का गीत "बड़े अरमान से रखा है बलम तेरी कसम..." श्रोताओं के बीच आज भी लोकप्रिय है।

सफलता

वर्ष 1963 में बाबू भाई मिस्त्री की संगीतमय फ़िल्म 'पारसमणि' की सफलता के बाद इन्दीवर शोहरत की बुंलदियों पर जा पहुंचे। इन्दीवर के सिने कैरियर में उनकी जोड़ी निर्माता-निर्देशक मनोज कुमार के साथ बहुत खूब जमी। मनोज कुमार ने सबसे पहले इन्दीवर से फ़िल्म 'उपकार' के लिये गीत लिखने की पेशकश की। कल्याणजी-आनंदजी के संगीत निर्देशन मे फ़िल्म 'उपकार' के लिए इन्दीवर ने "क़स्मे वादे प्यार वफा सब बातें हैं, बातों का क्या..." जैसे दिल को छू लेने वाले गीत लिखकर श्रोताओं को भावविभोर कर दिया। इसके अलावा मनोज कुमार की फ़िल्म 'पूरब और पश्चिम' के लिये भी इन्दीवर ने "दुल्हन चली वो पहन चली" और "कोई जब तुम्हारा हृदय तोड़ दे" जैसे सदाबहार गीत लिखकर अपना अलग ही समां बांधा। इन्दीवर के सिने कैरियर मे संगीतकार जोड़ी कल्याणजी-आनंदजी के साथ उनकी खूब जमी। "छोड़ दे सारी दुनिया किसी के लिये...", "चंदन सा बदन..." और "मैं तो भूल चली बाबुल का देश..." जैसे इन्दीवर के लिखे न भूलने वाले गीतों को कल्याणजी-आनंदजी ने संगीत दिया।[3]

सदाबहार गीत

वर्ष 1970 में विजय आनंद निर्देशित फ़िल्म 'जॉनी मेरा नाम' में "नफ़रत करने वालों के सीने में...", "पल भर के लिये कोई हमें..." जैसे रूमानी गीत लिखकर इन्दीवर ने श्रोताओं का दिल जीत लिया। मनमोहन देसाई के निर्देशन मे फ़िल्म 'सच्चा-झूठा' के लिये इन्दीवर का लिखा एक गीत "मेरी प्यारी बहनिया बनेगी दुल्हनियां..." को आज भी विवाह आदि के अवसर पर सुना जा सकता है। इसके अलावा राजेश खन्ना अभिनीत फ़िल्म 'सफ़र' के लिये इन्दीवर ने "जीवन से भरी तेरी आँखें..." और "जो तुमको हो पसंद..." जैसे गीत लिखकर श्रोताओं को भाव विभोर कर दिया।

राकेश रोशन के साथ कार्य

जाने माने निर्माता-निर्देशक राकेश रोशन की फ़िल्मों के लिये इन्दीवर ने सदाबहार गीत लिखकर उनकी फ़िल्मों को सफल बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभायी। उनके सदाबहार गीतों के कारण ही राकेश रोशन की ज़्यादातार फ़िल्में आज भी याद की जाती हैं। इन फ़िल्मों में ख़ासकर 'कामचोर', 'ख़ुदग़र्ज', 'खून भरी मांग', 'काला बाज़ार', 'किशन कन्हैया', 'किंग अंकल', 'करण अर्जुन' और 'कोयला' जैसी फ़िल्में शामिल हैं। राकेश रोशन के अलावा उनके पसंदीदा निर्माता-निर्देशकों में मनोज कुमार, फ़िरोज़ ख़ान आदि प्रमुख रहे। इन्दीवर के पसंदीदा संगीतकार के तौर पर कल्याणजी-आनंदजी का नाम सबसे ऊपर आता है। कल्याणजी-आनंदजी के संगीत निर्देशन में इन्दीवर के गीतों को नई पहचान मिली और शायद संगीतकार कल्याणजी-आनंदजी इन्दीवर के दिल के काफ़ी क़रीब थे। सबसे पहले इस जोड़ी का गीत संगीत वर्ष 1965 में प्रदर्शित फ़िल्म 'हिमालय की गोद' में पसंद किया गया। इसके बाद इन्दीवर द्वारा रचित फ़िल्मी गीतों में कल्याणजी- आनंदजी का ही संगीत हुआ करता था। ऐसी फ़िल्मों में 'उपकार', 'दिल ने पुकारा', 'सरस्वती चंद्र', 'यादगार', 'सफ़र', 'सच्चा झूठा', 'पूरब और पश्चिम', 'जॉनी मेरा नाम', 'पारस', 'उपासना', 'कसौटी', 'धर्मात्मा', 'हेराफेरी', 'डॉन', 'कुर्बानी', 'कलाकार' आदि फ़िल्में शामिल हैं।[3]

पसंदीदा संगीतकार

कल्याणजी-आनंदजी के अलावा इन्दीवर के पसंदीदा संगीतकारों में बप्पी लाहिरी और लक्ष्मीकांत-प्यारेलाल जैसे संगीतकार शामिल हैं। उनके गीतों को किशोर कुमार, आशा भोंसले, मोहम्मद रफ़ी, लता मंगेशकर जैसे चोटी के गायक कलाकारों ने अपने स्वर से सजाया। इन्दीवर के सिने कैरियर पर यदि नज़र डाली जाये तो अभिनेता जितेन्द्र पर फ़िल्माये गए उनके द्वारा रचित गीत काफ़ी लोकप्रिय हुआ करते थे। इन फ़िल्मों में 'दीदारे यार', 'मवाली', 'हिम्मतवाला', 'जस्टिस चौधरी', 'तोहफ़ा', 'कैदी', 'पाताल भैरवी', 'ख़ुदग़र्ज', 'आसमान से ऊंचा', 'थानेदार' जैसी फ़िल्में शामिल हैं।

पुरस्कार

1975 मे प्रदर्शित फ़िल्म 'अमानुष' के लिये इन्दीवर को सर्वश्रेष्ठ गीतकार का 'फ़िल्म फेयर पुरस्कार' दिया गया।

प्रसिद्ध गीत

इन्दीवर ने अपने सिने कैरियर में लगभग 300 फ़िल्मों के लिये गीत लिखे। इन्दीवर के प्रसिद्ध गीतों में शामिल हैं-

इन्दीवर द्वारा लिखित कुछ प्रसिद्ध गीत
क्र. सं. गीत फ़िल्म वर्ष
1. बड़े अरमान से रखा है बलम तेरी कसम मल्हार (1949)
2. क़समें वादे प्यार वफ़ा सब उपकार (1967)
3. मेरे देश की धरती सोना उगले उपकार (1967)
4. चन्दन सा बदन, चंचल चितवन सरस्वतीचन्द्र (1968)
5. मैं तो भूल चली बाबुल का देश सरस्वतीचन्द्र (1968)
6. छोड़ दे सारी दुनिया किसी के लिए सरस्वतीचन्द्र (1968)
7. दुल्हन चली, ओ पहन चली पूरब और पश्चिम (1970)
8. कोई जब तुम्हार हृदय तोड़ दे पूरब और पश्चिम (1970)
9. पल भर के लिए कोई हमें प्यार कर ले जॉनी मेरा नाम (1970)
10. जिन्दगी का सफ़र सफ़र (1970)
11. जीवन से भरी तेरी आँखें सफ़र (1970)
12. जिन्दगी का सफ़र, है ये कैसा सफ़र सफ़र (1970)
13. दिल ऐसा किसी ने मेरा तोड़ा अमानुष (1975)
14. ये मेरा दिल प्यार का दीवाना डॉन (1978)
15. मधुबन ख़ुशबू देता है साजन बिना सुहागन (1978)
16. देखा तुझे तो हो गई दीवानी कोयला (1997)
17. होठों से छू लो तुम, मेरा गीत अमर कर दो प्रेमगीत -

निधन

भारतीय सिनेमा में महत्त्वपूर्ण योगदान देने वाले और एक गीतकार के रूप में ख्याति अर्जित करने वाले इन्दीवर ने अपने सिने-कैरियर में लगभग 300 फ़िल्मों के लिए गीत लिखे। लगभग तीन दशक तक अपने गीतों से श्रोताओं को भावविभोर करने वाले इन्दीवर ने 27 फ़रवरी, 1997 को इस दुनिया से विदा ली।


पन्ने की प्रगति अवस्था
आधार
प्रारम्भिक
माध्यमिक
पूर्णता
शोध

टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. कण्‍डे की आग में सेंकी जाने वाली मोटी रोटी
  2. 2.0 2.1 गीतकार इन्दीवर (हिन्दी)। । अभिगमन तिथि: 04 जनवरी, 2014।
  3. 3.0 3.1 इन्दीवर परिचय (हिन्दी)। । अभिगमन तिथि: 04 जनवरी, 2014।

बाहरी कड़ियाँ

संबंधित लेख