इनायतुल्लाह ख़ान मशरिक़ी
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पूरा नाम | इनायतुल्लाह ख़ान मशरिक़ी |
अन्य नाम | अल्लामा मशरिक़ी |
जन्म | 25 अगस्त, 1883 |
जन्म भूमि | अमृतसर |
मृत्यु | 25 अगस्त, 1963 |
मृत्यु स्थान | लाहौर |
अन्य जानकारी | खाकसार पार्टी बनाकर अल्लामा मशरिक़ी ने कांग्रेस का विद्रोह किया। आंदोलन की सफलता में उनकी कोई आस्था नहीं थी। उनकी पार्टी के लोग एक सी पोशाक पहनते थे। उनके सांप्रदायिक दृष्टिकोण और उत्तेजक कार्यों के कारण अल्लामा को कई बार जेल में भी रहना पड़ा। |
इनायतुल्लाह ख़ान मशरिक़ी (अंग्रेज़ी: Inayatullah Khan Mashriqi, जन्म- 25 अगस्त, 1883; मृत्यु- 25 अगस्त, 1963) इस्लामी विद्वान, राजनीतिक सिद्धांतवादी, तर्कज्ञ, खाकसार आंदोलन के संस्थापक और पाकिस्तानी गणितज्ञ थे। वे कट्टरपंथी विचारों के व्यक्ति थे। वे अल्लामा मशरिक़ी के नाम से अधिक जाने जाते हैं। उनकी खाकसार पार्टी के लोग एक सी पोशाक पहनते थे।
परिचय
अल्लामा मशरिक़ी का वास्तविक नाम इनायतुल्लाह ख़ान मशरिक़ी था, पर वह अल्लामा मशरिक़ी के नाम से ही अधिक जाने गए। उनका जन्म 25 अगस्त, 1888 ई. को अमृतसर में एक पठान परिवार में हुआ था। अल्लामा बड़े प्रतिभा संपन्न थे। 19 वर्ष की आयु में पंजाब विश्वविद्यालय से गणित में एम.ए. की डिग्री प्राप्त की और फिर इंग्लैंड जाकर आगे की शिक्षा प्राप्त की।[1]
कार्यक्षेत्र
सन 1913 में इंग्लैंड से आकर अल्लामा मशरिक़ी ने शिक्षा के क्षेत्र में काम करना शुरू किया। पश्चिमी सीमा प्रांत में शिक्षा विभाग में विभिन्न पदों पर वे रहे। 1931 में अपने पद से त्यागपत्र देकर उन्होंने ‘खाकसार’ नाम की एक पार्टी बनाई।
वैचारिक कट्टरपंथी
अल्लामा मशरिक़ी बड़े कट्टरपंथी विचारों के व्यक्ति थे। उनकी मान्यता थी कि क़ुरान और इस्लामी तौर तरीकों से ही संसार की समस्याएं हल हो सकती हैं। उन्होंने कहा- "संपूर्ण संसार को जीत कर उस पर शासन करना हमारा उद्देश्य है। यही हमारा मजहब है, यही इस्लाम है और यही हमारा विश्वास है।"[1]
खाकसार पार्टी बनाकर अल्लामा मशरिक़ी ने कांग्रेस का विद्रोह किया। आंदोलन की सफलता में उनकी कोई आस्था नहीं थी। उनकी पार्टी के लोग एक सी पोशाक पहनते थे। उनके सांप्रदायिक दृष्टिकोण और उत्तेजक कार्यों के कारण अल्लामा को कई बार जेल में भी रहना पड़ा। यद्यपि अपने जीवन के अंतिम दिनों में वे हिंदू मुसलमानों के बीच सांप्रदायिक एकता की बातें कहने लगे थे, लेकिन लोगों ने उन्हें सांप्रदायिक और जातीय वैमनस्य का समर्थक ही माना। इसलिए उनकी बातों को कोई गंभीरता से नहीं लेता था।
मृत्यु
25 अगस्त, 1963 को पाकिस्तान में अल्लामा मशरिक़ी का निधन हो गया।
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