उदयसुन्दरी कथा एक कथात्मक गद्य काव्य है, जिसके रचनाकार सोढ्ढल थे। कुछ विद्वान् इसे 'चंपू काव्य' भी मानते हैं। 'उदयसुन्दरी कथा' आठ उच्छ्वासों में रची गई है। विद्वानों ने इसका रचना काल सन 1000 ई. निश्चित किया है।[1]
गद्य काव्य
सोढ्ढल की इस कृति को कुछ विद्वानों ने 'चंपू काव्य' कहा है, लेकिन लेखक ने स्वयं अपनी कृति को गद्य काव्य माना है तथा बाणभट्ट के गद्य को अपने लिए आदर्श बताया है। यह ठीक है, लेकिन एक तो उनकी संख्या उतनी नहीं जितनी 'चंपू काव्य' में अपेक्षित होती है, दूसरे बाद के साहित्याचार्यो द्वारा निर्धारित कथा के समस्त लक्षण भी उक्त कृति पर पूरी तरह घट जाते हैं।
विषयवस्तु
संपूर्ण 'उदयसुन्दरी कथा' रचना आठ उच्छ्वासों में रची गई है। इसमें नागराज शिखंडतिलक की आत्मजा उदयसुंदरी के साथ प्रतिष्ठान नरेश मलयवाहन के प्रेम ओर विवाह की काल्पनिक कथा का आलंकारिक एवं अतिशयोक्ति पूर्ण समायोजन किया गया है। 'उदयसुन्दरी कथा' के प्रथम उच्छ्वास में लेखक ने अपना और अपने परिवार का परिचय दिया है, जिसके अनुसार वह गुजरात के वालभ कायस्थ कुलोत्पन्न सूर का पुत्र था और उसकी माता का नाम पद्यावती था। उसे कोंकण के चित्तराज, नागर्जुन तथा मुंमणिराज इत्यादि नरेशों का संरक्षण मिला था, जिनकी राजधानी 'स्थानक', बंबई के समीप आधुनिक 'थाना' नामक स्थान थी।
रचना काल
'उदयसुन्दरी कथा' का रचना काल विद्वानों ने सन 1000 ई. निश्चित किया है, परंतु लेखक ने कृति के प्रथम उच्छ्वास में चूँकि गुजरात के 'लाट' नरेश वत्सराज के संरक्षण में रहने का उल्लेख भी किया है, इसलिए हो सकता है कि उक्त कृति की रचना सन 1026-1050 ई. के बीच हुई हो। इस रचना का विशेष महत्व इसलिए भी है कि कवि ने अपने और अपने वंश के परिचय के साथ-साथ बाण, कुमारदास, भास आदि अपने पूर्व कवियों तथा लेखकों के संबंध में भी 25 छंद दिए हैं।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ उदयसुन्दरी कथा (हिन्दी)। । अभिगमन तिथि: 04 फ़रवरी, 2014।