उद्योग में प्रतियोगिता

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उद्योग में प्रतियोगिता आर्थिक जीवन स्वतंत्रता में ही पनप सकता है। शासन का हस्तक्षेप, चाहे वह कितना ही सद्भावनात्मक क्यों न हो, आर्थिक विकास के लिए वांछनीय नहीं है। आर्थिक स्वतंत्रता के अंतर्गत आपसी प्रतियोगिता द्वारा उद्योगों का नियंत्रण स्वचालित रूप से हो जाता है तथा योग्यतम उत्पादक ही औद्योगिक क्षेत्र में रह पाते हैं।

प्रतियोगिता का नियम-त्रिकोणीय प्रतियोगिता - क्रेताओं के बीच आपसी प्रतियोगिता, विक्रताओं के बीच प्रतियोगिता-औद्योगिक नियंत्रण में सहायक होती है। क्रेताओं के बीच आपसी प्रतियोगिता में वृद्धि होने पर मूल्य में वृद्धि होती है। मूल्य में वृद्धि होने पर लाभ में वृद्धि होती है। बढ़े हुए लाभ वर्तमान उत्पादकों को उत्पादन बढ़ाने तथा नए उत्पादकों को उत्पादन प्रारंभ करने के लिए प्रोत्साहित करते हैं। परिणामत: उद्योगपतियों में आपसी प्रतियोगिता बढ़ जाती है और मूल्य घट जाता है। मूल्य के घटने पर अयोग्य उत्पादक औद्योगिक क्षेत्र छोड़ देते हैं और उत्पादन कम होने लगता है। उत्पादन कम होने पर मूल्य फिर बढ़ने लगता है। इस प्रकार प्रतियोगिता का चक्र चलता रहता है तथा योग्यतम उत्पादकों को भी अपनी कार्यक्षमता एक आदर्श स्तर पर बनाए रखने को बाध्य करती है।

प्रतियोगिता का औचित्य - प्रतियोगिता का शब्दिक अर्थ दो या अधिक व्यक्तियों वा समूहों द्वारा एक ही वस्तु का ध्येय को प्राप्त करने का प्रयत्न है। औद्योगिक क्षेत्र में यह वांछित वस्तु क्रेताओं द्वारा किया जानेवाला क्रय है, जिसे प्राप्त करने का प्रत्येक उद्योगपति प्रयत्न करता है। इस उद्देश्य की प्राप्ति के लिए वह अपने प्रतियोगी की अपेक्षा उत्पादन व्यय कम करने का तथा अधिक उत्तम वस्तुओं के निर्माण का प्रयत्न करता है। वह अपने प्रतियोगी की अपेक्षा अधिक सुविधाएँ तथा सेवाएँ प्रदानकरने का भी यत्न करता है। संक्षेप में कहें तो वह अपनी कार्यक्षमता बढ़ाता है। यही औद्योगिक प्रतियोगिता का औचित्य है।

अनुचित प्रतियोगिता - कभी-कभी उद्योगपति अपनी कार्यक्षमता को नहीं बढ़ता, बल्कि विज्ञापन द्वारा अन्य उद्योगपतियों के ग्राहकों को अपनी ओर खींचने का प्रयत्न करता है। इसी प्रकार अन्य उत्पादकों को औद्योगिक क्षेत्र से बाहर निकालने के उद्देश्य से वह अपनी वस्तुओं को उत्पादनव्यय से भी नीची कीमत पर बेचता है। ऐसा करने में उसका उद्देश्य यह होता है कि अन्य उत्पादकों का उत्पादन बंद हो जाने पर अपनी वस्तुओं को मनमानी कीमत पर बेच सके। इस प्रकार की प्रतियोगिता का औचित्य बहुत ही संदेहास्पद है।

प्रतियोगिता में बाधाएँ - सामाजिक परंपराएँ तथा शासन का नियंत्रण स्वतंत्र औद्योगिक प्रतियोगिता में बाधा उत्पन्न करने हैं। भारतवर्ष में कुछ धंधों का जातिविशेष द्वारा ही अपनाया जा सकना औद्योगिक प्रतियोगिता को सीमित कर देता है। कभी-कभी राष्ट्र के हित को ध्यान में रखते हुए शासन भी उद्योगों का प्रारंभ करने या वस्तुओं का उपभोग करने पर नियंत्रण लगा देता है। उद्योगों का प्रमाणीकरण तथा उपभोग की वस्तुओं के मूल्य तथा परिमाण का नियंत्रण ऐसे कुछ उपाय हैं जो त्रिकोणीय औद्योगिक प्रतियोगिता के किसी न किसी पक्ष को नियंत्रित करते हैं।

प्रतियोगिता तथा आर्थिक नियोजन - आर्थिक नियोजन का उद्देश्य देश की श्घ्रा आर्थिक प्रगति करना तथा साधनों के अपव्यय को रोकना है। प्रतियोगिता के अंतर्गत विकास की गति बहुत मंद होती है तथा साधनों का अपव्यय और श्रमजीवियों का शोषण होता है। अत: आर्थिक नियोजन के साथ औद्योगिक प्रतियोगिता को बहुत कुछ सीमित करना आवश्यक हो जाता है।

प्रतियोगिता में अनेक दोष होते हुए भी अनुभव यही प्रदर्शित करता है कि स्वतंत्र औद्योगिक प्रतियोगिता के अंतर्गत ही औद्योगिक कार्यक्षमता को उच्चतम स्तर पर बनाए रखा जा सकता है।[1]


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. हिन्दी विश्वकोश, खण्ड 2 |प्रकाशक: नागरी प्रचारिणी सभा, वाराणसी |संकलन: भारत डिस्कवरी पुस्तकालय |पृष्ठ संख्या: 108 |

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