एकाधिनायकत्व
एकाधिनायकत्व डिक्टेटरशिप, अधिनायकवाद उस एक व्यक्ति की सरकार है जिसने शासन उत्तराधिकार के फलस्वरूप नहीं वरन बलपूर्वक प्राप्त किया हो तथा जिसे पूर्ण संप्रभुत्ता प्राप्त हो-अर्थात् संपूर्ण राजनीतिक शक्ति न केवल उसी के संकल्प से उद्भूत हो वरन् कार्यक्षेत्र और समय की दृष्टि से असीमित तथा किसी अन्य सत्ता के प्रति उत्तरदायी नहीं-और वह उसका प्रयोग बहुधा अनियंत्रित ढंग से विधान के बदले आज्ञप्तियों द्वारा करता हो।
दिक्तेतर (डिक्टेटर, एकाधिनायक) शब्द को सर्वप्रथम प्रयुक्त करनेवाले रोमन लोग थे जो कुछ विशिष्ट प्रशासकों को अनुमानत: इसलिए दिक्तेतर कहते थे कि उनके कोई सलाहकार नहीं होते थे। रोमन गणतंत्र के संविधान में एकाधिनायकत्व या अधिनायकवाद से तात्पर्य संकटकालीन स्थिति में किसी एक व्यक्ति के अस्थायी रूप से असीमित अधिकार प्राप्त कर लेने से था। संकट टल जाने पर एकाधिनायक के असीमित अधिकार भी समाप्त हो जाते थे और उन्हें छोड़ते समय उसे उनके प्रयोगों का पूरा ब्योरा देना पड़ता था। अत: विधान तथा शासितों के प्रति उत्तरदायित्व अधिनायक की प्रमुख विशेषता थी।
आधुनिक युग में प्रथम महायुद्ध के बाद किसी एक व्यक्ति या वर्ग के स्वार्थ के लिए विधान का उल्लंघन एकाधिनायकत्व का प्रमुख लक्षण हो गया। युद्ध ने जनसाधारण के मस्तिष्क को थकाने के अतिरिक्त उसपर संयम के स्थान पर सैन्य अनुशासन आरोपित कर सभी सामाजिक क्षेत्रों में आज्ञापालन की प्रवृत्ति उत्पन्न की। सैन्य उद्देश्यों के लिए आवश्यक सत्ता के केंद्रीकरण ने लोगों को इस बात के लिए अभ्यस्त बना दिया कि वे सामाजिक समस्याओं के समाधान के लिए ऐसी निरंकुश सत्ता के निर्णय मान लें जो किसी के प्रति उत्तरदायी न हो। ऐसी परिस्थिति में जनतांत्रिक पद्धति विघटित होती जान पड़ी। फलत: युद्ध से सर्वाधिक प्रभावित देशों में सामान्यत: लोग ऐसे 'लौहपुरुष' के स्वागत के लिए तत्पर थे जो अपने शौर्य, आत्मविश्वास और कटिबद्धता के बल पर उनका मत लिए बिना राष्ट्र के नाम पर अपनी इच्छा तथा आदेश से समस्याओं का समाधान कर दे। अत: जनता के लिए सामान्यत: एकाधिनायक वह कर्मठ व्यक्ति हुआ जो स्वयं राष्ट्रीय प्रतीक बन किसी रहस्यात्मक आकर्षण द्वारा अपने प्रति आदर का भाव जगा सके तथा इस आधार पर लोगों को महान् होने का अनुभव करा सके कि वे उससे संबंधित हैं।
एकाधिनायकत्व की प्रथम विशेषता उसके उद्गम में हैं। किसी देश तथा युग में इसकी स्थापना कभी उन साधनों से नहीं होती जो उस देश और युग में वैध माने जाते हैं। उसके लिए यह आवश्यक है कि उसकी नींव विधान के उल्लंघन पर हो, यद्यपि उसका अस्तित्व किसी विधान के न मानने पर आश्रित नहीं है। प्रत्येक एकाधिनायकत्व का प्रारंभ विप्लव से होता है और फिर संभवत: किन्हीं कारणों से वह अपना क्रांतिकारी स्वरूप बनाए रख सकता है। परंतु उसका उद्देश्य पुराने विधान के स्थान पर नए विधान की स्थापना भी हो सकता है क्योंकि एकाधिनायकत्व पुरातन, जीर्ण व्यवस्था की असफलता तथा नवीन व्यवस्था के लिए उसके ध्वंस की पूर्वकल्पना करता है। उसकी दूसरी प्रमुख विशेषता यह है कि जनतंत्र (जो सिद्धांतत: प्रत्येक नागरिक को सरकार में भाग लेने का अधिकार देता है) के विपरीत इसका संचालन एक व्यक्ति या वर्ग के हाथ में दूसरों पर शासन करने के लिए होता है। तीसरे, सत्ताधारी खुले ढंग से यह घोषित करता है कि राष्ट्र में उसका एक विशिष्ट स्थान है।
अतएव व्यापक अर्थ में एकाधिनायकीय सरकार वह व्यवस्था है जिसमें राज्य के एक या कई सदस्य खुले तथा व्यवस्थित ढंग से पूरे राष्ट्र पर शक्ति का -जिसे उन्होंने पूर्व के सभी वैध आधिकारों और स्थापनाओं के उल्लंघन के फलस्वरूप होनेवाली हिंसा से अर्जित किया है-प्रयोग सरकार में भाग न लेनेवाली जनता की सम्मति से स्वतंत्र रहकर करते हैं।
सरकार के स्वरूप के आधार पर एकाधिनायकत्व दो वर्गो में विभाजित किया जा सकता है : एक व्यक्ति के अधिनायक होने पर वैयक्तिक तथा एक वर्ग के अधिनायक होने पर सामूहिक एकाधिनायकत्व की स्थापना होती है। वैयक्तिक एकाधिनायकत्व (विशेषत: फ़ासिस्ती) में एकाधिनायक अपने निजी कर्मचारियों की सहायता से 'फ़यूरर' के सिद्धांत के आधार पर स्वतंत्र ढंग से शासन करता है। फ़्यूरर की विशेषता यह है कि वह अपने सहायकों के प्रति उत्तरदायी नहीं होता, वरन् अपने से ऊपर-राष्ट्र, इतिहास या ईश्वर-के प्रति अपना दायित्व घोषित करता है। फ़यूरर अपने सहायकों को नियुक्त करता है जो अपने अधीन कर्मचारियों को, और ये कर्मचारी फिर अपने अधीनों को नियुक्त करते हैं। इस प्रकार पूरी व्यवस्था में निर्वाचनपद्धति का कोई स्थान नहीं होता और संपूर्ण ढाँचा सर्वोपरि चरम बिंदु पर अवलंबित होता है। सामूहिक एकाधिनायकत्व में फ़यूरर के स्थान पर उत्तरदायी नेता होते हैं; नेताओं की एक श्रेणी उच्चतर श्रेणी के नेताओं को चुनती है, प्रत्येक नेता अपने निर्वाचकों के प्रति उत्तरदायी होता है। इस प्रकार संपूर्ण ढाँचा निम्नतम आधार पर अवलंबित होता है।
सामाजिक शक्तियों के आधार पर भी एकाधिनायकत्व के दो वर्ग हो सकते हैं। प्रथम, जब वैयक्तिक एकाधिनायकत्व में सहायक वर्ग किसी दल, निजी या राजकीय सेना, चर्च या प्रशासकीय विभाग का हो, द्वितीय, जब सामूहिक एकाधिनायकत्व में यही वर्ग स्वयं अधिनायक हो। अतएव यह विभाजन शासक तथा सहायक वर्ग के आधार पर होता है। वर्ग एकाधिनायकत्व के आधुनिक तीन प्रमुख प्रकार हैं : सैन्य, दल और प्रशासकीय।
तीसरा वर्गीकरण परिमाणात्मक स्वरूप के आधार पर हो सकता है; यथा, एकात्मक अधिनायकवाद जिसमें केवल एक वर्ग या केवल एक व्यक्ति तथा जिसका सहायक केवल एक वर्ग (यथा, निजी सेना) हो; बहुलवादी अधिनायकवाद जिसमें कई शक्तियाँ व्यक्ति या वर्ग हों जो पूर्ण रूप से, अपने को अधिनायक के अधीन न करें और सत्ता के लिए परस्पर होड़ करें परंतु ऐसी स्थिति में भी अन्य से अधिक शक्तिशाली एक व्यक्ति या वर्ग का आस्तित्व तो होता ही है। अधिनायकवाद के तीनों वर्गीकरण एक दूसरे से संबद्ध भी हो सकते हैं। यथा, सैन्य एकाधिनायकत्व निजी तथा सामूहिक दोनों ही हो सकता है।
सभी महत्वपूर्ण एकाधिनायकताओं में धार्मिक सांप्रदायिकता की विशेषता होती है, यथा उत्साह के साथ प्रवर्तक की पूजा तथा एक विशिष्ट विधि के प्रति श्रद्धा। महान् व्यक्तियों से संचालित, सदैव आकर्षक विचारधारा से प्रेरित, अपने अनुयायियों से कर्तव्य के रूप में बलिदान की माँग करता हुआ, एकाधिनायकत्व सक्रिय व्यक्ति द्वारा स्थापित सरकार का एक स्वरूप है। वह उन पराक्रमी और गतिशील वर्गो को लेकर चलता है जो स्वभावत: विप्लव के लिए प्रवृत्त होते हैं : यथा, सेना, शूर वर्ग या सर्वहारा वर्ग। एकाधिनायक अपने संकल्प और भाव शासितों पर आरोपित करता रहता है। इस आरोपण के दो साधन हैं: नकारात्मक , सकारात्मक। नकारात्मक साधन हैं, आलोचना को रोकना, विरोधी बहुमत या अल्पमत को नष्ट करना, राज्य संबंधी आवश्यक और महत्वपूर्ण तथ्यों को गुप्त रखना। इन साधनों के सहायक साधन हैं: संसद की समाप्ति, संघों तथा दलों का विघटन, प्रेस पर प्रतिबंध, शिक्षा पर नियंत्रण, प्रमुख विरोधियों का निष्कासन आदि। इस संबंध में हिंसा तथा आतंक की भी चर्चा की जाती हैं, परंतु वस्तुत: ये एकाधिनायकत्व की केवल प्रारंभिक अवस्था के लक्षण हैं जो सामान्यत: क्रांतिकारी और इसलिए अवैध होते हैं। यदि एकाधिनायकत्व इस अवस्था से गुजरने में सफल हुआ तो वह साधारणत : हिंसा और आतंक के स्थान पर प्रशासकीय विधान स्थापित करता है।
सैन्य एकाधिनायकत्व सामान्यत: इन्हीं नकारात्मक साधनों से संतुष्ट रहता है; परंतु वर्ग एकाधिनायकत्व इनके अतिरिक्त सकारात्मक साधनों का भी प्रयोग करता है; यथा, प्रचार द्वारा अधिनायक के भावों, विचारों और मतों का जनता पर आरोपण, इच्छानुकूल जनमत का सृजन आदि। इन साधनों के सहायक साधन हैं : राष्ट्रीय या वर्गप्रतीकों की पूजा, उत्तेजक संगीत का प्रसार, दंभ या घृणा की भावनाएँ उभारनेवाले भाषण, आज्ञापालन की आदत डालने के लिए समस्त राष्ट्र को सैन्य शिक्षा देना, विद्यालयों के लिए पुस्तकें तैयार करना, अबौद्धिक विचारधारा का प्रचार, राजनीतिज्ञों, पत्रकारों तथा विद्वानों को घूस देकर उनका मुँह बंद करना।
परंतु किसी भी सभ्य देश में, जिसका निकट अतीत औदार्यवादी या जनतांत्रिक रहा हो, ये साधन एकाधिनायकवाद की स्थापना के लिए तब तक पर्याप्त नहीं हैं जब तक उनके साथ जनता से लुभावने आदर्शो, यथा आज्ञाकारिता, अनुशासन, सत्ता, एकता, शक्ति, देशप्रेम आदि के लिए सतत अपील न की जाए और व्यक्ति में अपने निजी अधिकारों को एकाधिनायक के हाथों सोंपने का उत्साहपूर्ण भाव न उभारा जाए। इसके लिए धर्म से संबंधित भावों को विकृत कर अपने राज्य, राष्ट्र, जाति या वर्ग की स्तुति या पूजा के भावों में परिणत किया जाता है।[1]
जिस अवैध ढंग से एकाधिनायकत्व की स्थापना होती है उसी ढंग के अतिरिक्त उसका उन्मूलन प्राय: असंभव है। एकाधिनायकवाद राष्ट्र को स्वायत्त शासन की विधियाँ सीखने से रोकता है और इसलिए एक एकाधिनायक के देहांत के बाद व्यक्तियों और वर्गो में सत्ता के लिए प्रतिद्वंद्विता राष्ट्र के लिए विपत्ति का कारण बन सकती है।[2]
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ हिन्दी विश्वकोश, खण्ड 2 |प्रकाशक: नागरी प्रचारिणी सभा, वाराणसी |संकलन: भारत डिस्कवरी पुस्तकालय |पृष्ठ संख्या: 212 |
- ↑ सं.ग्रं.-इलियट, डब्ल्यू.आई. : द प्रैग्मेटिक रिवोल्ट इन पॉलिटिक्स, न्यूयार्क, 1928; काबन, ए. : डिक्टेटरशिप, इट्स हिस्ट्री ऐंड थियरी, लंदन, 1935; केंटोरोविज़, एच. डिक्टेटरशिप, ए सोशियालाजिकल स्टडी, कैब्रिज, 1935; गूच, जी.पी. : डिक्टेटरशिप इन थियरी ऐंड प्रैक्टिस, लंदन, 1935; फ़ार्स्ट, ओ. (सं.) : डिक्टेटरशिप आन इट्स ट्रायल, लंदन, 1930; फ्ऱीडरिक, सी.जे. और ब्रेजेजिंस्की, जेड. के. : टोटैलिटेरियन डिक्टेटरशिप ऐंड ऑटोकसी, कैब्रिज, 1956