एस एम एस
एस एम एस (SMS) शॉर्ट मैसेज सर्विस अथवा लघु संदेश सेवा के लिये प्रयोग किया जाता है। अपने मोबाइल से छोटे छोटे संदेश दूसरों के मोबाइल पर भेजने के लिये इस सेवा का प्रयोग किया जाता है। सभी मोबाइल कंपनियां यह सेवा सपने ग्राहकों को प्रदान करतीं हैं। मोबाइल के चलन के साथ हिन्दी एस एम एस का चलन भी बहुत बढ़ा है। हिन्दी में मजेदार एस एम एस और एस एम एस में कई तरह के चुटकुले बहुत प्रचलन में हैं। देवनागरी में भी कई मोबाइल फ़ोनों पर हिन्दी एस एम एस भेजे जा सकते हैं। युवाओं में यह बहुत पसंद किया जाता है। युवाओं में अधिक प्रचलित यह सेवा बधाई संदेशों और चुटकलों को संप्रेषित करने में भी प्रयोग की जाती है। युवा अपने मोबाइल पर अधिकतर इस प्रकार के एस एम एस का संकलन रखते हैं। फट से कोई मजेदार एस एम एस प्राप्त हुआ और झट से उसे अपने मित्रों को प्रेषित कर दिया जाता है।
एसएमएस का इतिहास
इन दिनों एसएमएस यानी शॉर्ट मैसेज सर्विस का जलवा है। संचार क्रांति के दौर में सबसे ज़्यादा चर्चित है तो सिर्फ़ एसएमएस। मोबाइल उपभोक्ताओं को लगभग मुफ़्त में पड़ने वाला एसएमएस पलक झपकते ही दुनिया के किसी भी कोने में बैठे परिचित, दोस्तों या रिश्तेदारों के पास संदेशा पहुँचा देता है। ब्रिटेन में जन्मे एसएमएस की लोकप्रियता का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि जन्म के पहले महीने में इसकी औसत संख्या जो 0.4 थी वहीं अब हर दिन दुनिया भर में करो़ड़ों मैसेज इधर से उधर हो जाते हैं। अकेले भारत में आम दिनों में हर महीने औसतन पाँच करोड़ से ज़्यादा एसएमएस आते-जाते हैं, जबकि ख़ास दिनों में यह संख्या 400 प्रतिशत तक बढ़ जाती है। दुनिया का पहला कमर्शियल एसएमएस यूँ तो 3 दिसंबर, 1992 को ब्रिटेन के नील पापवर्थ ने रिचर्ड जारविश को वोडाफ़ोन नेटवर्क पर भेजा था। लेकिन मोबाइल फ़ोन से निकलने वाले इस पहले एसएमएस को इस मुकाम तक पहुँचने में लंबा सफर तय करना पड़ा।[1]
- पहले संदेश को लगे 12 साल
एसएमएस की कहानी 1980 के दशक से शुरू होती है। ब्रिटेन की मोबाइल कम्युनिटी ने पहली बार इस बात पर विचार किया कि मोबाइल के जरिए कैसे लिखित संदेश भेजे जा सकते हैं। यह कवायद जीएसएम कंपनियों ने मिलकर शुरू की। फ़रवरी 1985 तक आते-आते यह विचार तेज़ीसे उभरने लगा था। जीएसएम सब ग्रुप डब्ल्यूपी 3 के चेयरमैन जे. ऑडेस्टेड ने नए डिजिटल सेल्यूलर सिस्टम के लिए एसएमएस की पूरी अवधारणा तैयार की। उन्होंने एक जीएसएम दस्तावेज 'सर्विस एंड फेसिलिटी टू बी प्रोवाइडेड इन द जीएसएम सिस्टम' तैयार किया जिसे बहस के लिए जीएमएस ग्रुप आईडीईजी के पास भेजा। यहाँ से इस दस्तावेज को मई 1987 में फेरडहेल्म हिलिब्रांड की अध्यक्षता वाली तकनीकी कमेटी के पास भेजा गया। तकनीकी कमेटी ने पहलुओं का अध्ययन करने और ज़रूरी फेरबदल के बाद इसे हरी झंडी दिखा दी। 3 दिसंबर 1992 को वोडाफ़ोन नेटवर्क से दुनिया का पहला कमर्शियल एसएमएस भेजा गया, जिसकी सफल डिलीवरी के बाद एसएमएस सेवा मोबाइल फ़ोन पर शुरू हो गई। पहला संदेश कम्प्यूटर से मोबाइल फ़ोन पर भेजा गया था। इसमें लिखा था 'मैरी क्रिसमस'।
- धीमी थी रफ्तार
1995 तक इसमें लोगों की कोई ख़ास दिलचस्पी नहीं थी। ब्रिटेन में हर महीने उपभोक्ता औसतन 0.4 मैसेज भेजते थे। नेटवर्क प्रदाता कंपनियों की धीमी चाल से मैसेज डिलीवर होने में देरी के कारण भी लोगों ने इसमें रुचि नहीं ली। अत्याधुनिक तकनीकों के बाद एसएमएस सर्विस तेज़ हुई।
- भारत में ऐसा
1990 में निजी फ़ोन कंपनियों के आने के बाद भारत में सूचना क्रांति का सूत्रपात हुआ। वर्ष 2000 से भारत में मोबाइल का क्रेज शुरू हुआ और मात्र चार साल में मोबाइल फ़ोन उपभोक्ताओं ने लैंडलाइन उपभोक्ताओं को पछाड़ दिया। भारत में इस दीपावली पर हर घंटे 40 लाख एसएमएस भेजे गए।[1]
एस एम एस और मार्केट की दुनिया
भारत देश में अभी क़रीब सत्ताईस करोड़ मोबाइल हैं। यह संख्या आस्ट्रेलिया की जनसंख्या की क़रीब तेरह गुनी है। यूरोप के कई सारे देशों की कुल जनसंख्या मिला दी जाये, तो भी इतना आंकड़ा नहीं बनेगा। सत्ताईस करोड़ मोबाइलों पर औसतन दो मैसेज मार्केटिंग के आ ही जाते हैं। दो का औसत बहुत ही कम करके लगाया गया औसत है। मोबाइल धारियों को इससे भी ज़्यादा मार्केटिंग मैसेज रोज़ मिलते हैं। पर सोचिये दो मैसेज रोज़ एक मोबाइल पर यानी 54 करोड़ मैसेज रोज़ सीधे मोबाइल पर आ धमकते हैं। सत्ताईस करोड़ लोगों तक बात पहुंचाना आसान नहीं है। ख़ासा खर्चीला है। पर एसएमस के ज़रिये बहुत आसानी से हो रहा है। कोई अपनी नयी रिंगटोन बेचना चाहता है, मोबाइल कंपनियां ही रिंगटोन के कारोबार में लगी हैं और यह कारोबार मोटा कारोबार है। यह इतना बड़ा कारोबार है आने वाले दिनों में तमाम मोबाइल कंपनियां अपनी कारोबारी योजनाओं में रिंगटोन से होने वाली कमाई और उसकी तैयारियों के लिए अलग से बजट बना रही हैं।[2]
रिंगटोनों की सूचना देने के अलावा कोई आपको बताना चाहता है फुटबाल मैच की नवीनतम खबरें आप तक पहुंच जायेंगी, इतने पैसे लगेंगे। स्टाक बाज़ार में दिलचस्पी रखने वालों को भी एसएमएस से उनके पसंदीदा शेयरों के भाव लगातार बताये जा सकते हैं। शेयर दलाल अपने ग्राहकों को शेयर खऱीदने-बेचने की सलाह एसएमएस के द्वारा दे रहे हैं। एसएमएस बतौर मीडिया धीमे-धीमे उभर रहा है और अपने प्रभाव डाल रहा है।
ऐसे विज्ञापन तमाम वैबसाइटों पर देखने को मिल रहे हैं, जिसमें विज्ञापन दाता यह दावा करता है कि साठ पैसे प्रति एसएमएस के हिसाब से वह ढेर सारे एसएमएस भेज सकता है। बहुत जल्दी विश्व के तमाम विकसित देशों की एसएमएस मार्केटिंग आउटसोर्सिंग भारत से होने लगेगी। साठ पैसे प्रति एसएमएस के हिसाब से भेजने का दावा अमेरिका और ब्रिटेन का कोई एसएमएस मार्केटर नहीं कर सकता।
एसएमएस मार्केटिंग (विपणन) के अलावा आपसी संदेश आदान-प्रदान में भी बखूबी प्रयुक्त हो रहा है, ख़ास तौर पर नौजवानों द्वारा। इसका प्रभाव नंबर एक तो यह है कि इसने भाषा और ख़ासतौर पर अंग्रेज़ी की हालत खऱाब कर दी है। संदेश को संक्षिप्त रखने के लिए कई शब्दों का अति संक्षिप्तीकरण हो जाता है। एसएमएस की दुनिया में यह चलन स्वीकृत चलन है। यू की पूरी स्पेलिंग वाईओयू के बजाय सिर्फ़ यू लिखा जाये, तो चलेगा। फार को पूरी स्पेलिंग एफओआर के बजाय सिर्फ़ अंगरेजी का 4 लिखा जाये, तो चलेगा। ईलू का एसएमएसी मतलब आई लव यू होता है।
टैक्सास विश्वविद्यालय अमेरिका में एसएमएस मार्केटिंग पर क़रीब कुछ साल पहले हुए एक सर्वेक्षण में पाया गया था कि क़रीब 94 प्रतिशत लोगों ने अपने फ़ोन पर एसएमएस विज्ञापनों के प्रति अपना नकारात्मक रुख़ ज़ाहिर किया था। पर भारत के नौजवानों का रुख़ इससे अलग है। लिंटास मीडिया सर्विसेज के एक सर्वैक्षण में साफ़ हुआ है कि क़रीब 66 प्रतिशत युवा एसएमएस के ज़रिये विज्ञापनों को स्वीकृत करते हैं। अधिकांश उत्पादों की मार्केटिंग युवाओँ का ख़ास ख्याल करके ही हो रही है, सो एसएमएस मार्केटिंग आने वाले दिनों में व्यापक ही होगी। कुछ मोबाइलधारियों को यह परेशान भले ही करे, पर आज का सच यह है कि मौत और मार्केटिंग से अब कोई बच नहीं सकता, मोबाइलधारी तो बिलकुल नहीं। [2]
विश्व के नए सात आश्चर्य से लेकर इंडियन आइडल और संगीत का विश्वयुद्ध तक सबमें एसएमएस के व्यापार का अच्छा-ख़ासा गणित था। बेचारे उपभोक्ता को बहला कर, फुसला कर, बेवकूफ़ बना कर, उसकी भावनाओं को उकसा कर एसएमएस करने को उद्वेलित किया गया और नतीजतन करोड़ों एसएमएस किए गए। इस किस्म के एसएमएस प्रीमियम एसएमएस होते हैं जिसमें महज चार शब्दों के एसएमएस भेजने के लिए प्रत्येक एसएमएस संदेश प्रेषण के लिए तीन रुपए तक लिए जाते हैं। इससे अंदाज़ा लगाया जा सकता है कि किस तरह करोड़ों के कारोबार का खेल चल रहा है।
मगर, हम सभी, भले ही कुछ मार्केटिंग करने वाले एसएमएस संदेशों से चिढ़ते हों आमतौर पर मनोरंजक एसएमएस संदेश जिसे आए दिन लोगबाग अपने मित्रों परिचितों व रिश्तेदारों को आँखें मूँद कर फ़ॉरवर्ड करते फिरते हैं, क्षणिक ही सही, हमारा मनोरंजन करने में अच्छे-ख़ासे समर्थ होते हैं। एसएमएस संदेशों में प्रायः हास्य का पुट होता है, मगर कई संदेश जीवन के फ़लसफ़े को गहराई से प्रतिबिंबित करते हैं।
एस एम एस और भाषा की दुनिया
U r Gr 8 जैसे संक्षिप्त शब्दों व गूढ़ार्थों वाले अक्षरों को मिलाकर जब एसएमएस का फंडा जाने अनजाने रचा गया था, तब मोबाइल डिवाइसों और चैट स्क्रीनों पर तीव्रता से और सही तरीके से टाइप करने में समस्या ही मुख्य वजह रही होगी। तब किसी को सपने में भी यह भान नहीं रहा होगा कि किसी दिन हर कोई एक दूसरे को एसएमएस संदेश भेजता फिरेगा और एसएमएस संदेशों के कारोबार भी करोड़ों अरबों रुपयों के होंगे। एसएमएस के माध्यम से कम शब्दों में लिखने की कला आ जाती है। वैसे इसे भाषा की टांग तोड़ना कह सकते हैं। मगर यह आज के युवा वर्ग की भाषा है। उनकी अपनी। उसके अपने सिद्धांत हैं। यह दीगर बात है कि युग बदलने पर भी कुछ एक संदर्भ और चुटकुलों का मूल अर्थ नहीं बदला। तुकबंदी की शायरी आज भी कॉलेज के छात्रों में जमकर चलती है। इंजीनियर छात्रों के बीच प्रचलित शायराना एसएमएस यहां पढ़ा जाना चाहिए- ‘इंजीनियर मरते नहीं ज़िंदा दफनाए जाते हैं, हर छह महीने में तड़पाए जाते हैं, कफ़न खोलकर देखो, वो क़ब्र में भी एसाइनमेंट लिखते पाए जाते हैं।’ यहां हर छह महीने में होने वाले सेमेस्टर के लिए लिखे जाने वाले सैकड़ों पेज के एसाइनमेंट (होमवर्क), जिसे अकसर एक-दूसरे से नकल करके लिखा जाता है, का दर्द दिखाया गया है।
यहां कभी-कभी व्याकरण के जंजाल से भाषा छूटती प्रतीत होती है। डरने की आवश्यकता नहीं, यह आम बोलचाल की भाषा बनती जा रही है। फिर भाषा और लिपि में बंटे समाज को एक सूत्र में जोड़ने का कितना जबरदस्त काम हुआ कि हिन्दी, पंजाबी, हरियाणवी के जोक्स रोमन में भी लिखे जाने लगे। परिभाषाएं आसान हुई हैं। कल एक सरकारी अधिकारी मित्र ने एसएमएस भेजा था। ‘सरकारी नौकरी में फार्मूला नं. 1. बने रहो पगला, काम करेगा अगला। 2. मत लो टेंशन नहीं तो फैमिली पाएगी पेंशन। 3. काम से डरो नहीं और काम करो नहीं। 4. और अंत में, हे एम्प्लाई! तू काम न कर, काम की फ़िक्र कर और उस फ़िक्र का सबसे ज़िक्र कर।’
एस एम एस और चुटकुले की दुनिया
युवा पीढ़ी में चूंकि एसएमएस बहुत पापुलर हैं, इसलिए लगभग हर अखबार को रोज़ एक एसएमएस चुटकुला छापना पड़ता है। इस समय बाज़ार में सौ से ज़्यादा किताबें सिर्फ़ और सिर्फ़ एसएमएस चुटकुलों की हैं। एसएमएस चुटकुले एक नयी विधा हैं, जिसमें सिर्फ़ तेज़ और संक्षिप्त में सोचने वाले ही सफल हो सकते हैं। कुछेक सालों बाद चार-पांच लाइन से ज़्यादा लंबे चुटकुले बाज़ार से बाहर हो जायेंगे।
सुबह-सुबह मोबाइल पर एक मैसेज आया था। लिखा था - आप अच्छे, ईमानदार, संस्कारी, सुशील, समझदार, प्यारे से, ख़ूबसूरत और दिमाग वाले इंसान हैं…। एसएमएस एक पुराने सहपाठी द्वारा भेजा गया था। वह आज कल कार्पोरेट दुनिया में किसी महत्त्वपूर्ण पद पर है। बहुत सालों बाद हमने पिछली रात होटल में इकट्ठे भोजन किया था। एसएमएस पढ़कर लगा कि दोस्त मेरी तारीफ कर रहा है। आगे पढ़ने की उत्सुकता जागी थी मगर अगली ही पंक्ति ने झटका दिया था आगे लिखा था… पता करो ये अफवाह कौन फैला रहा है। अंतिम वाक्य पढ़कर एक मिनट तो अजीब लगा फिर हंसी छूट पड़ी थी। ऐसा मजाक असल दोस्त ही कर सकते हैं। और फिर इस तरह का कथन बोला या सुनाया नहीं जा सकता। यह सिर्फ़ और सिर्फ़ एसएमएस पर ही भेजा और पढ़ा जा सकता है। इसमें हास्य व्यंग्य था। यह है एसएमएस की निराली दुनिया। इसके माध्यम से चुटकुला, जोक्स, कथन, लघुकथा से लेकर कविता, शायरी और जन्मदिन / शादी की वर्षगांठ की बधाई, त्योहार की शुभकामनाएं और अंत में प्रेमपत्र, क्या नहीं भेजे जा सकते? डरावने बॉस से बात करने से बचने के लिए भी तो इसका प्रयोग कर सकते हैं। इतने सब के बाद कौन कह सकता है कि यह शॉर्ट मैसेज सर्विस है?
एसएमएस / ईमेल ने चुटकुलों की दुनिया आबाद की है। विज्ञान का यह चमत्कार सस्ता व सरल है। एक चुटकुला अब किसी छोटे ग्रुप का मोहताज नहीं, मिनटों में लाखों लोगों तक पहुंच जाता है और पलक झपकते ही समुद्र व देश की सीमाओं को पार कर पूरी दुनिया में घूम जाता है। स्वयं का भेजा एसएमएस लौट कर उसी दिन फिर से खुद को पढ़ने को मिल जाए तो कोई आश्चर्य नहीं। यह समय और स्थान नहीं देखता। कभी भी आपके मोबाइल पर पहुंच सकता है और आपके मूड को बदल सकता है। चुटकुले मुझे बहुत हंसाते हैं। मैं अक्सर अपने साथियों को चुटकुला बोलने के लिए प्रेरित करता हूं। मगर मेरे लिये चुटकुला बोलना असंभव है। वैसे भी यह काम सब नहीं कर सकते। यह भी एक कला है। मगर एसएमएस ने यह काम आसान कर दिया है। अब हर कोई अपनी बात रख सकता है। इसमें अब वाक् कला में निपुण होना आवश्यक नहीं। अब पति भी अपनी पत्नी को चुटकुला भेजकर ताने मार सकता है। यहां एक उदाहरण काफ़ी होगा। ‘एक व्यक्ति अपनी पत्नी का दाह-संस्कार करके श्मशान से लौट रहा था कि अचानक बरसात शुरू हो गई। तेज़ बिजली कड़की तो आदमी मन ही मन बुदबुदाया कि लगता है पहुंच गई।’ इसमें हास्यरस के पीछे छुपे व्यंग्य को समझना कोई ख़ास मुश्किल नहीं। मगर यह चुटकुला क्या आप सामान्य रूप में अपनी पत्नी को सुना सकते हैं? नहीं। मगर एसएमएस भेजेंगे तो वो अवश्य हंस देंगी।
चुटकुले संस्कृति व सभ्यता के अभिन्न अंग हैं। हर भाषा में यह अपने रंग-ढंग में मिल जाएंगे। मगर किसी-किसी भाषा व वर्ग में इसकी विशिष्ट पहचान है। उनका अपना विशेष प्रभाव है। स्थानीय भाषा के चुटकले न समझते हुए भी सुनने वाला हंसकर लोटपोट हो सकता है। शब्दों में यहां लय व कलात्मकता होती है। सरदार और जाट इसमें खुद बढ़-चढ़कर हिस्सा लेते हैं। इनके बिना भारतीय चुटकला अर्थहीन और प्रभावहीन है। यह दोनों ऐसी ज़िंदादिली कौम है जो अपने ऊपर बनाये गये चुटकलों पर आज भी खुलकर हंसती है। चौधरी की तरह संता और बंता आज तक चुटकुलों के संसार के मुख्य किरदार हैं। सिंधी और पारसी भी इस क्षेत्र में ज़्यादा पीछे नहीं। इन सभी को समाज में विशिष्ट दर्जा प्राप्त होना चाहिए। अन्यथा आमजन आजकल न तो दूसरों को हंसाते हैं और न ही खुद हंसते हुए पाये जाते हैं। लेकिन ये सभी मदमस्त होते हैं। अब इस एसएमएस को पढ़कर क्या कहेंगे। ‘सरदार- ओए पुत्तर तेरे रिजल्ट दा की होया? पुत्तर- पापा इस क्लास विच एक साल होर लगेगा। सरदार- कोई बात नहीं पुत्तर, दो लगे या तीन, मगर तू फेल मत होना।’
विज्ञान की उन्नति के साथ औद्योगिकीकरण के आते ही आदमी अपने दैनिक जीवन में अतिव्यस्त होता चला गया। हास्यरस के सूख जाने से मानो उसके अंदर की आत्मा तो जीवित है मगर शरीर मशीन बन चुका है। साधन-सुविधा के बावजूद वो खुश नहीं है। असल में तो समय नहीं है उसके पास। सुनने और सुनाने के लिए कोई नहीं। वह एकदम अकेला है। भीड़ में अकेला। ऐसे में चुटकलों के लिए बोलने और सुनने वाले कहां से मिल पाएंगे? वैसे भी ताली के साथ ठहाके लगाने वाले दो-चार हों तभी महफिल रंगीन हो पाती है। मगर अब वो बात कहां? ऐसे में एसएमएस ने अचानक इस रिक्त स्थान को भरने की कोशिश की है। अकेलेपन में उपजी व्यग्रता का नतीजा है कि चुटकलों और जोक्स का आदान-प्रदान बड़ी तीव्र गति से बड़े पैमाने पर बड़ी संख्या में हो रहा है। इसमें कई बार सेक्स की विकृति भी देखी जा सकती है। पुरुष-स्त्री के बीच प्राकृतिक आकर्षण का सामाजिक विरोध सर्वाधिक चुटकुले पैदा करता है। इसके अतिरिक्त फ़िल्म की अभिनेत्रियां और ख़ास नौटंकीबाज राजनेताओं के बारे में भी कुछ ऐसे प्रभावशाली चुटकुले होते हैं कि इनको पढ़कर हंसी को रोका नहीं जा सकता। ऐसा नहीं कि सब कुछ यहां हल्का ही है। चंद शब्दों में दर्शन भी यहां देखा जा सकता है। इन उदाहरणों को पढ़कर भारीपन का अहसास होगा।
एसएमएस के माध्यम से प्राचीन भारतीय संस्कृति व सभ्यता एक बार फिर प्रचलन में है। विक्रम संवत् की शुभकामनाओं वाले एसएमएस का फैशन है। संदेश वाहक धर्मोपदेश की भी कमी नहीं है। हताशा की अवस्था में इस तरह के एसएमएस ईश्वर पर विश्वास जगाते हैं। ‘एक आदमी हिल रहे कमज़ोर पुल पर से जा रहा था, डरकर उसने सहायता के लिए पुकारा तो देखा दूसरे छोर पर ईश्वर थे। उसने तुरंत उन्हें पास आने के लिए कहा मगर जब वो आये नहीं तो वो गुस्से में धीरे-धीरे बड़ी मुश्किल से दूसरी ओर पहुंचा तो देखता है कि ईश्वर ने पुल की टूटी हुई रस्सी को अपने हाथों से पकड़े रखा था।’
अब इस श्रीमान का क्या करोगे जो लिखते हैं- ‘आपका भविष्य आपके सपनों पर निर्भर करता है इसलिए आपको सो जाना चाहिए।’ बहरहाल, ऐसे हज़ारों जोक्स की हज़ारों वेबसाइट उपलब्ध हैं। इनमें से ढूंढ़-ढूंढ़कर अपने मन अनुसार निकालना थोड़ा मुश्किल है। समय बर्बाद होता देख पिता के डांटने पर उन्हें हंसाने के लिए अपने पिता से ये सवाल तो आप पूछ ही सकते हैं। ‘बेटा- पापा आप इजिप्ट गए थे? पापा- नहीं। मगर क्यूं? बेटा- तो फिर ये ममी कहां से लाए।’
मुझे मालूम है अब आप भी एसएमएस भेजने के लिए उत्सुक हो रहे होंगे। मगर चार्ली चेपलिन के बिना हास्य-व्यंग्य की दुनिया अधूरी है। उनका यह लोकप्रिय कथन ‘मुझे बरसात में चलना अच्छा लगता है क्योंकि कोई मेरे आंसू नहीं देख सकता’, रूला देता है। इस एसएमएस पर ज़्यादा मत सोचिए उसी ट्रेजेडी किंग के इन शब्दों को मान लीजिए, ‘सबसे बेकार दिन वही होता है जिस दिन मैं हंसता नहीं।’ इसलिए अगर हंसते हुए ज़िंदा रहना चाहते हैं तो तुरंत एक चुटकुला किसी को भेजें। वो मैं भी हो सकता हूं।
एस एम एस और हम
आप भी यदा-कदा एसएमएस भेजते होंगे। बहुत संभव है आप अपने पास आए संदेशों को फ़ॉरवर्ड करते होंगे। मोबाइल उपकरणों के छोटे और अजीब किस्म के कुंजीपटों में संदेश चाहे जितने छोटे हों, टाइप करने में पसीना आता तो है। फिर भी, यदि कुछ नया सा एसएमएस संदेश आप अपने मित्रों को भेजें तो उन्हें भी मज़ा आए।
अब सवाल ये है कि मौक़े व नज़ाकत के अनुरूप फिट होने वाले नए, बढ़िया एसएमएस संदेश आख़िर कहाँ से मिलेंगे। आपकी सुविधा के लिए बाज़ार में एसएमएस की कई किताबें उपलब्ध हैं। इन किताबों में हिन्दी – रोमन हिन्दी में एसएमएस संदेश होते हैं। ये किताबें 5 रुपए मूल्य से लेकर 50 रुपए तक की हो सकती हैं, और छोटी-सी गुटिका की शक्ल से लेकर पॉकेट बुक आकार में भी मिल सकती हैं। और आपको आश्चर्य नहीं होना चाहिए कि ऐसी किताबों के प्रकाशकों में कुछ बड़े संस्थान भी हैं – ज़ाहिर है, एसएमएस के बड़े धंधे को हर कोई कैश कराना चाहता है।
इसी तरह हिन्दी / रोमन हिन्दी में एसएमएस के लिए कई जाल स्थल भी हैं जहाँ से आपको सैकड़ों एसएमएस संदेश मुफ़्त में मिल सकते हैं। जिन्हें आप अपने मोबाइल सिंक सॉफ़्टवेयर के जरिए कॉपी पेस्ट कर भी प्रयोग कर सकते हैं। ध्यान रखें कि आमतौर पर रोमन हिन्दी ही मोबाइल फ़ोनों में प्रचलित है। यदि आप यूनिकोड हिन्दी में किसी को एसएमएस संदेश भेजते हैं तो इस बात की पूरी संभावना है कि पाठ बिगड़ जाए और मज़ा किरकिरा हो जाए।
हिन्दी एस एम एस
दिवाली के एस एम एस |
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होली के एस एम एस |
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ 1.0 1.1 एसएमएस पंद्रह वर्षों में हर दिल अजीज (हिन्दी) (एच.टी.एम.एल) वेब दुनिया। अभिगमन तिथि: 16 जनवरी, 2011।
- ↑ 2.0 2.1 ईलू उर्फ एसएमएस भाषा (हिन्दी) अलोक पुराणिक। अभिगमन तिथि: 16 जनवरी, 2011।