कर्ण संदर्भ

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कर्ण महाभारत के प्रसिद्ध योद्धा, अर्जुन के प्रतिद्वंदी और युद्ध के अंतिम दिनों में कौरवों की सेना के सेनापति कर्ण कुंती के कुमारी अवस्था में उत्पन्न हुए थे। कुंती की सेवा से प्रसन्न दुर्वासा ऋषि ने उसे एक मंत्र दिया था जिससे वह किसी का भी आह्वान करके उसे अपने पास बुला सकती थी। उत्सुकतावश कुंती ने सूर्य का आह्वान किया और उसके सहवास से कर्ण गर्भ में आ गया। लोकलाज के भय से शिशु को उसने एक पिटारी में रखकर नदी में बहा दिया। वह पिटारी सूत अधिरथ और उसकी पत्नी राधा को मिली और उन्होंने पुत्रवत बालक का लालन-पालन किया। इसी कारण कर्ण को 'सूत-पुत्र और 'राधेय' भी कहा गया है। इनके अतिरिक्त कर्ण को 'वसुषेण' तथा 'वैकर्तन' नाम से भी जाना जाता है।

कर्ण पर्व महाभारत

कर्ण पर्व महाभारत के अन्तर्गत द्रोणाचार्य की मृत्यु के पश्चात् कर्ण को कौरवों का सेनापति बनाया गया। कर्ण ने प्रतिज्ञा की कि मैं पूरी शक्ति से पांडवों का संहार करूँगा। महाभारत युद्ध के सोलहवें दिन कर्ण ने अपनी सेना का व्यूह रचा। इसी समय नकुल कर्ण के सामने आए। कर्ण ने नकुल को घायल कर दिया। किंतु कुंती को दी हुई अपनी प्रतिज्ञा को याद करके नकुल का वध नहीं किया। दूसरी ओर अर्जुन संसप्तकों से लड़ रहे थे। कृष्ण ने अर्जुन से कहा कि तुम्हें कर्ण से युद्ध करना है। तभी सूर्यास्त हो गया तथा युद्ध बंद हो गया। रात्रि में कर्ण ने दुर्योधन से कहा कि अर्जुन के पास विशाल रथ, कुशल सारथी, गांडीव, अक्षय तूणीर आदि हैं। हमें इन सबकी चिंता नहीं, पर हमें एक कुशल सारथी की ज़रूरत है। कृष्ण की ज़रूरत है। कृष्ण के समान ही महाराज शल्य इस कला में निपुण हैं। यदि वे मेरे रथ का संचालन करें तो युद्ध में अवश्य सफलता मिलेगी। शल्य ने कर्ण का सारथी बनना स्वीकार कर लिया, पर कहा कि मुझे अपनी जुबान पर भरोसा नहीं है। कहीं कर्ण मेरी बात से नाराज़ होकर कुछ उलटा न कर बैठे, मुझे इसी बात का डर है। शल्य ने कर्ण का सारथी होना स्वीकार कर लिया। सत्रहवें दिन के युद्ध में प्रातःकाल कर्ण और अर्जुन आमने-सामने आ डटे। इसी समय कर्ण ने देखा कि भीम कौरव सेना का संहार कर रहे हैं। भीम ने कर्ण पर भी एक बाण छोड़ा, जिससे कर्ण को मूर्च्छा आ गई। यह देख शल्य रथ को भगा ले गए।

कर्ण का निधन

अर्जुन ने कर्ण के सारथी शल्य को घायल कर दिया। कर्ण ने अग्नि-बाण छोड़ा तो अर्जुन ने जल-बाण। कर्ण ने वायु-अस्त्र चलाकर बादलों को उड़ा दिया। अर्जुन ने नागास्त्र छोड़ा, जिसके उत्तर में कर्ण ने गरुड़ास्त्र। कर्ण के इस अस्त्र की काट अर्जुन के पास "नारायणास्त्र" थी, परंतु मनुष्य-युद्ध में वर्जित होने के कारण अर्जुन ने उसे नहीं छोड़ा। कर्ण ने एक दिव्य बाण छोड़ा तो कृष्ण ने घोड़ों को घुटनों के बल झुका दिया। इसी समय कर्ण के रथ का पहिया ज़मीन में धँस गया। कर्ण ने धर्म युद्ध के अनुसार कुछ देर बाण न चलाने की प्रार्थना की, मगर अर्जुन ने कहा कि अभिमन्यु को मारते समय तुम्हारा धर्म कहाँ गया था। कर्ण ने अर्जुन की छाती में एक ऐसा बाण मारा जिससे वे अचेत से हो गए तथा इसी बीच अपने रथ का पहिया निकालने लगे। थोड़ी देर में अर्जुन को होश आया। कर्ण को निहत्था देखकर कृष्ण ने अर्जुन से कहा कि यही समय है कर्ण पर बाण चलाओ नहीं तो कर्ण का वध नहीं कर पाओगे। अर्जुन ने वैसा ही किया। कर्ण का सिर धड़ से अलग हो गया। कर्ण के मरते ही कौरवों में हाहाकार मच गया।


टीका टिप्पणी और संदर्भ

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