कर्नाला क़िला

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कर्नाला क़िला
कर्नाला क़िले का मुख्य प्रवेश द्वार
कर्नाला क़िले का मुख्य प्रवेश द्वार
विवरण 'कर्नाला क़िला' महाराष्ट्र स्थित प्रसिद्ध पर्यटन स्थल है। यह क़िला 'कर्नाला पक्षी अभयारण्य' के अंतर्गत आता है।
राज्य महाराष्ट्र
ज़िला रायगढ़
निर्माण काल 1200 ई. से पूर्व
शिलालेख क़िले में मराठी और फ़ारसी भाषा के शिलालेख हैं। मराठी शिलालेख अस्पष्ट और बिना तारीख के हैं, जबकि फ़ारसी शिलालेख पर ‘सैयद नूरुद्दीन मोहम्मद ख़ान, हिजरी, एएच (1735 सीई)’ खुदा हुआ है।
अन्य जानकारी छत्रपति शिवाजी ने 1670 ई. में इस क़िले को पुर्तग़ालियों से छीन लिया था। उनकी मृत्यु के बाद 1680 ई. में यह क़िला मुग़ल शासक औरंगज़ेब के अधिकार में चला गया।

कर्नाला क़िला महाराष्ट्र में रायगढ़ ज़िले के कर्नाला शहर का आकर्षण और प्रसिद्ध ऐतिहासिक स्थान है। फन्नेल हिल के नाम से भी प्रसिद्ध यह क़िला 'कर्नाला पक्षी अभयारण्य' के अंतर्गत आता है और दो क़िलों से मिलकर बना है, जिसमें एक क़िला दूसरे से ऊंचा है। ऊँचे क़िले में 125 फुट ऊंचा स्तंभ है, जो बेसाल्ट से बना हुआ है और 'पांडु स्तंभ' के नाम से जाना जाता है। आसपास की गतिविधियों पर नज़र रखने के लिए इसका उपयोग किया जाता है।

इतिहास

क़िले के निर्माण की तिथि के बारे में इतिहासकारों में मतभेद देखा गया है, परन्तु इस क़िले को 1200 ई. से पहले का माना जाता है। 1248 ई. से 1318 ई. तक यह क़िला देवगिरि के यादव वंश और 1318 ई. से 1347 ई. तक तुग़लक़ वंश के अधिपत्य में था। कर्नाला उत्तरी कोंकण ज़िलों की राजधानी हुआ करता था। बाद में यह क़िला गुजरात के शासनकर्ताओं के अधिकार में आ गया, जिसे 1540 ई. में अहमदनगर के निज़ाम शाह ने जीत लिया। बाद में बसई के पुर्तग़ाली शासकों ने इसे जीत लिया और गुजरात की सल्तनत को दे दिया।

छत्रपति शिवाजी ने 1670 ई. में इसे पुर्तग़ालियों से छीन लिया और उनकी मृत्यु के बाद 1680 ई. में यह क़िला मुग़ल शासक औरंगज़ेब के अधिकार में चला गया। 1740 ई. में इसे फिर से पुणे के पेशवा शासकों ने जीता और 1818 ई. में ईस्ट इंडिया कंपनी ने इसे जीत लिया।

स्थिति

कर्नाला क़िला मुंबई के बहुत नजदीक रायगढ़ ज़िले में एक पहाड़ी के उपर बना हुआ है। इस पहाड़ी का चिमनी जैसा शिखर मुंबई-पुणे और मुंबई-गोवा राष्ट्रीय राजमार्ग से ही दिखाई देता है। यह क़िला 'कर्नाला पक्षी अभयारण्य' की सीमा के अन्दर है। क़िले के ट्रेक के साथ जंगल में तरह-तरह के पक्षियों को भी देखा जा सकता है। यह क़िला सुरक्षा की दृष्टि के बहुत महत्वपूर्ण क़िलों में माना जाता था। कोंकण के समुद्री किनारे से महाराष्ट्र के भीतरी हिस्सों[1] के लिए जाने वाले 'भोर घाट' के मुख्य व्यापारिक मार्ग पर नियंत्रण रखने के लिया यह क़िला बहुत महत्वपूर्ण था। क़िले पर नियंत्रण के लिए हुए युद्धों का इतिहास इसके महत्व को दर्शाता है।

शिलालेख

वर्तमान समय में कर्नाला क़िला जीर्णशीर्ण अवस्था में है। इस क़िले में मराठी और फ़ारसी भाषा के शिलालेख हैं। मराठी शिलालेख अस्पष्ट और बिना तारीख के हैं, जबकि फ़ारसी शिलालेख पर ‘सैयद नूरुद्दीन मोहम्मद ख़ान, हिजरी, एएच (1735 सीई)’ खुदा हुआ है। शायद यह मुग़ल काल का है। कर्नाला क़िले में पानी के कुंड हैं। इसके अलावा इस स्थान के ऊपर से देखने राजमाची किले और प्रबल्गढ़ किले का शानदार दृश्य दिखाई देता है।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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