कुक्कुट उत्पादन (पाल्ट्री फार्मिग) खाद्य पक्षी होने के कारण कुक्कुट को लोग पहले घरों में पालते थे किंतु अब कुक्कुट पालन ने एक उद्योग का रूप धारण कर लिया है और कुक्कुट, उनके चूजे तथा अंडे बाजार में बड़े पैमाने पर बिकते हैं। भारत में इसने पिछले दस बारह वर्षों में ही उद्योग का रूप धारण किया है किंतु अभी वह रूप प्राप्त नहीं कर सका है जो संसार में अन्यत्र देखने में आता है।
उद्योग के रूप में मांस और अंडे के लिए कुक्कुट के पालन के साथ साथ उनका अधिकधिक उत्पादन एक अनिवार्य आवश्यकता है और इसके लिए अच्छी नस्ल के कुक्कुट का चुनाव और सुव्यवस्था आवश्यक है। मांस के लिए उत्पादन किए जाने वाले कुक्कुटों के संबंध में आवश्यक है कि
- वे स्वस्थ और सशक्त हों।
- सेए जाने के काल में तेज़ीके साथ उनके पंख निकलें और दस दिन के होने पर तेज़ीसे उनकी पूँछ बढ़े।
- आठ सप्ताह की आयु होते होते पीठ पर पूरे पंख उग आएँ।
- बाजार जाने के समय तक उनकी बाढ़ तीव्र गति से होती रहे।
- सारे अवयव संतुलित हों
- सारे अवयव मांसल हों। इस प्रकार के कुक्कुट उत्पन्न करने के लिए उत्पादक संकर जाति और उपजाति के कुक्कुट उत्पन्न करने का प्रयास करते हैं।
अंडों के उत्पादन के लिए उपर्युक्त छह बातों के अतिरिक्त यह भी आवश्यक है कि
- उनका शीघ्रातिशीघ्र यौन विकास हो और 150 से 170 दिन में अंडे देने में सक्षम हो जाए।
- अंडे देनेवाली मुर्गियाँ कम से कम 15 अंडे प्रति मास दें।
- अंडा देना आरंभ करने के समय से निरंतर कम से कम दस मास तक अंडे देती रहें।
इन सब बातों पर ध्यान रखते हुए इस देश के कुक्कुट उत्पादक देशी कुक्कुटों की अपेक्षा हवाइट लेगहार्न और रोडे आइलैंड रेड जाति के कुक्कुटों का पालन और उत्पादन करते हैं और अंडें, चूजे तथा अंडे देनेवाली मुर्गियाँ प्राप्त करने के लिए उन्हीं का पालन और उत्पादन करते हैं। उत्पादन का यह कार्य अंडा सेने के कार्य से आरंभ होता है।
अंडों का सेना
इंक्युबेशन (Incubation) का अर्थ है अंडे से बच्चा निकलना। अंडे से 21 दिन के बाद बच्चा निकलता है। अंडे सेने की दो विधियाँ हैं :
- मुर्गी के नीचे रखकर प्राकृतिक ढंग से तथा
- मशीन द्वारा कृत्रिम रूप में। छोटे स्तर पर चलाए जाने वाले उद्योग में पहली विधि बरती जाती है और बड़े स्तर पर चलाने के हेतु मशीनों का उपयोग किया जाता है।
प्राकृतिक ढंग से बच्चे निकालने के लिए स्वच्छ, हवादार तथा शांत वातावरणवाले दरबे में साफ सुथरी, कुड़क मुर्गी के नीचे अंडे रखने चाहिए। बिठाने के लिए अंडों की संख्या मुर्गी के शारीरिक विस्तार और मौसम पर निर्भर है। गर्मी में एक साधारण मुर्गी के नीचे 15 अंडे तक तथा जाड़े में 10 अंडे तक रखने चाहिए।
कृत्रिम विधि में कृत्रिम सेने की मशीनों (इंक्युबेटरों) द्वारा कम व्यय तथा कम परिश्रम से अधिकाधिक मात्रा में बच्चे निकाले जा सकते हैं। सेने की मशीनें दो प्रकार की होती हैं : (1) छोटी, जिन्हें हवा, लैंप या पंखे द्वारा गर्म किया जाता है तथा (2) बड़ी, जिनमें गर्म हवा पंखे द्वारा फैलाई जाती है। प्राय: बड़ी सेन की मशीन में बिजली द्वारा हवा गर्म की जाती है और पंखे भी बिजली से ही चलते हैं।
सेने की मशीन रखने का स्थान, चलाने की विधि तथा ताप
ये मशीनें ऐसे स्थान पर रखी जानी चाहिए जहाँ ताप में अधिक परिवर्तन न होता हो; साथ ही वहाँ पर स्वच्छ वायु का आवागमन भी होता रहे। चलाने से पूर्व सेनियों (सेने की मशीनों) को किसी कीटाणुनाशक ओषधि से पूर्णत: स्वच्छ कर लेना चाहिए। अंडे रखने से दो दिन पूर्व मशीन को चलाकर तापनियंत्रण आदि का परीक्षण भी कर लेना चाहिए। छोटी सेनियों का ताप 1030 फा. तथा बड़ी पंखेवाली सेनियों का 99.50 फा. होना चाहिए। छोटी मशीनों में तापमापी का बल्ब अंडों से 118 इंच ऊपर रहना चाहिए। ऊँचा ताप 16 दिन के पश्चात् बड़ा हानिकारक सिद्ध होता है। सेनियों के भीतर 60 प्रतिशत सापेक्ष आर्द्रता भी अपेक्षित है। इसके अभाव में अंडे शीघ्र सूख जाते हैं और बच्चों को निकलने में कठिनाई होती है।
अंडों का उलटना पलटना
यदि अंडे पलटे न जायँ तो बनता हुआ बच्चा छिलके के भीतर चिपक जाता है, उसका विकास नहीं हो पाता और वह वहीं मर जाता है। इसलिए दिन में कम-से-कम तीन बार अंडों को पलटना चाहिए।
सेते हुए अंडों की जाँच
लैंप द्वारा की जाती है। सात दिन सेने के पश्चात् यह ज्ञात हो जाता है कि कौन से अंडे जीवरहित और कौन मृतक अवस्था में हैं। मृत अंडों को हटा देना चाहिए।
मशीन से तैयार बच्चों की निकालना
मशीन (इंक्युबेटर) से निकलने के बाद जब वह अच्छी तरह से सूख जाए तभी बच्चों को सेनी मशीन से निकालकर बाड़ों में सावधानी से ले जाना चाहिए।
मुर्गी के बच्चों (चुज्जों) का पालन
बच्चों को पालने के पहले पालनेवाली मशीन (शावजनक , Brooder) की ठीक से जांच कर लेनी चाहिए। बच्चा सेने की मशीन, बच्चों के लिए पर्याप्त सुखकर होनी चाहिए।
हर जाड़ों में उसमें ठंड आदि पहुँचने की संभावना न होनी चाहिए। यों यह मशीन मिट्टी के तेल या बिजली से गर्म की जाती है, पर किसी भी मशीन को चुनने से पूर्व यह देख लेना आवश्यक है कि उसमें पहुँचाने का ढंग ठीक है या नहीं। जाँच के लिए मशीन को एक दो तक चलाकर देख लेना चाहिए।
बच्चा पालने की सामान्य आवश्यकताएँ
बच्चों की आयु प्रति बच्चे के लिये खाने का स्थान प्रति 100 बच्चों के लिये पानी पीने का स्थान प्रति बच्चे के लिये भूमि की आवश्यकता पालन की मशीन का ताप
दिन से 2 सप्ताह तक 1 इंच एक गैलनवाले पानी के दो बर्तन 1।2 वर्ग फुट 90 से 95 फा0
से 6 सप्ताह तक 2 इंच तीन गैलनवाले पानी के दो बर्तन 3।4 वर्ग फुट प्रति सप्ताह 5 कम कीजिए
सप्ताह से 12 सप्ताह तक 3 इंच पांच गैलन पानी के दो बर्तन 1 वर्ग फुट प्रति सप्ताह 5 कम कीजिए
13 से 20 सप्ताह तक 4 इंच पांच गैलन पानी के दो बर्तन 2 से 3 वर्ग फुट प्रति पक्षी, जब मशीन बंद रखी जाय प्रति सप्ताह 5 कम कीजिए
जब बच्चे निकल आएँ तो यह देखना आवश्यक है कि बच्चों को गर्मी देनेवाली मशीन ठीक चले। मशीन के किनारे पर सतह से दो इंच ऊपर, या बिजली के लैंप के नीचे, पहले दो दिन तक ताप 90-950 फा. होना चाहिए, फिर प्रति सप्ताह 50 कम करते चलें। जब तक बच्चों के पंख ठीक से न निकल आएँ तब तक ताप 750 फा. से कम न होना चाहिए।
बच्चों का आहार
पालने की मशीन में रखे हुए बच्चों के लिये स्वच्छ जल और भोजन की व्यवस्था होनी चाहिए। पहले आठ सप्ताह तक बच्चों को ऐसा भोजन देना चाहिए जिसमें 18 से 22 प्रतिशत तक प्रोटीन हो। पहले एक दो दिन उन्हें दलिया दिया जाय ताकि उनको दस्त न आएँ। आठ सप्ताह के बाद, जब तक मुर्गियां अंडे न देने लगें, उनकी बाढ़ बढ़ानेवाला दूसरा आहार देना चाहिए। जब वे अंडे देने लगें तो दूसरे ढंग का भोजन देना चाहिए।
मुर्गियों को खिलाने के तीन ढंग होते हैं :
- केवल चूर्ण मिश्रण
- चूर्ण मिश्रण और दाना तथा
- चूर्ण मिश्रण की गोलियाँ बनाकर देना। भोजन भले ही किसी ढंग से खिलाया जाए, किंतु वह संतुलित एवं उपयुक्त होना चाहिए और जिस आयु के बच्चों को खिलाया तथा जिस हेतू खिलाया जा रहा हो उसके लिए उपयुक्त हो।
मुर्गियों को पालना-बच्चों को अच्छे अंडे देनेवाली मुर्गियां बनाने के हेतु 8 से 12 सप्ताह के पश्चात् उनके आहार और रहन-सहन में परिवर्तन करना पड़ता है। बढ़ती हुई मुर्गियों को पालने की दो विधियाँ हैं :
- बंद घरों में (Confinement Rearing) तथा
- बड़े बाड़ों में (Range Rearing)। बंद घरों में पालने से परिश्रम भी कम पड़ता है और मुर्गियां भी अधिक संख्या में पाली जा सकती है। इस ढंग से पाली जानेवाली मुर्गियों को संतुलित आहार देने की आवश्यकता पड़ती है। यथेष्ट सीपी का चूरा और स्वच्छ जल हर समय घर में रहना चाहिए।
- बड़े बाड़ों में खर्च कम पड़ता है। बाड़ों में उन्हें सस्ती किस्म के घरों में रखकर पाला जा सकता है। यदि बाड़ों में हरी घास हो तो इस ढंग से पाली गई मुर्गियाँ बंद घरों में पाली गई मुर्गियों से अधिक स्वस्थ होंगी। अच्छे बाड़े की पहचान है कि उसमें पर्याप्त घास हो, पानी बह जाने की व्यवस्था हो, भूमि बलुअर दोमट हो तथा छायादार पेड़ हों। इन सुविधाओं से संपन्न एक एकड़ आकार के बाड़े में 400-500 मुर्गियाँ रखी जा सकती हैं। इस तरह रखने से आहार में 5 प्रतिशत बचत हो सकती है।
छाँटना
अंडे देनेवाले घरों में ले जाने से पहले मुर्गियों को कम करने की आवश्यकता होती है। प्रजनन या अंडा देने वाली मुर्गियाँ बढ़िया होनी चाहिए। अत: कम बढ़नेवाली, थोड़े पंखों वाली या छोटी मुर्गियों को छाँट देते हैं।
अंडा देने वाली या प्रजनन मुर्गियों की व्यवस्था-अंडा देनेवाली मुर्गियाँ भी कम उम्र की मुर्गियों की भाँति ही पाली जाती हैं। यदि उन्हें बंद घरों में पालना हो तो प्रति 100 मुर्गियों के लिए 350-400 वर्ग फुट स्थान चाहिए। भोजन का 32 फुट लंबा स्थान, 50-60 फुट लंबे अड्डे 20 अंडा देने के कक्ष (Nests) और 25 पाशकक्ष (ट्रैपनेस्ट Trapnests), होने चाहिए। प्रति 100 मुर्गियों के लिए 3 या 5 ऐसे बर्तन होने चाहिए जिनमें प्रत्येक में 4 से 6 गैलन तक पानी आ सके।
ट्रैप-नेस्टिंग
यही एक ढंग है जिससे यह जाना जा सकता है कि हर मुर्गी ने कितने अंडे दिए। प्रतिदिन ट्रैपनेस्ट करने में बड़ा खर्च होता है, पर जहाँ बहुत शुद्धवंशीय मुर्गियाँ रखी जाती हैं वहाँ इसका करना ज़रूरी है। एक सप्ताह में पाँच दिन ट्रैपनेस्ट करने से भी काम चल सकता है, पर जहाँ यह संभव न हो वहाँ जाड़ों के पाँच महीनों में ही ट्रैपनेस्ट कर लेना चाहिए। इससे अनुमान हो जाता है कि मुर्गी साल भर में कितनी अंडे देगी।
वयस्क मुर्गियों का छाँटना-कम उम्र की मुर्गियाँ जब अपनी अधिकतम अंडा देने की सीमा पर पहुँच जाएँ तब जाँचकर कम अंडा देने वाली मुर्गियों को छाँट देना चाहिए।
अंडा देने वाली मुर्गियों का शरीर पूर्ण विकसित हो तथा वे चौड़ी और फुर्तीली हों, उनका अंडा देने का स्थान नम तथा फैला हुआ हो, चोंच और टाँगों का रंग सफेद हो, पंखे नुचे हुए मालूम हों और पर्याप्त अंडे देने के बाद पंख गिराएँ तथा उनमें पंख गिराने की अवधि बहुत कम हो, नए पर जल्दी निकालनेवाली हों, ऐसी मुर्गियों को रखना चाहिए।
जिन मुर्गियों का शरीर पतला और सुस्त हो, अंडा देने का स्थान सूखा, छोटा और गोल हो, चोंच और पैर गहरे पीले हों, देखने में साफ सुथरी, चमकीले पंखोंवाली हों और थोड़े ही अंडे देने के बाद देर तक पर गिराएँ, पेट सख्त तथा सिकुड़ा हुआ हो, उन्हें निकाल देना चाहिए।
प्राय: प्रजनन योग्य मुर्गियों में जातिविशेष के गुण होने चाहिए। वे शीघ्र अंडे देने लगें और बिना रु के अंडा देती रहें, कुड़क न होने पाएँ और उनके अंडे भी आकार में बड़े हों।
नर पक्षी-अंडा लेने से दो सप्ताह पहले नरों को मुर्गियों के साथ छोड़ देना चाहिए। इन मुर्गों की वंशावली अच्छी होनी चाहिए। मुर्गा स्वस्थ एवं फुर्तीला हो। एक मुर्गा हल्की किस्म की 12-15 मुर्गियों के लिये पर्याप्त है। यदि मुर्गियाँ भारी किस्म की हैं तो 10 से 12 मुर्गियों के लिए एक मुर्गा पर्याप्त है।
अंडे-दो प्रकार के होते हैं :
- सेने योग्य
- खाने योग्य।
सेने योग्य अंडे अच्छे प्रकार के होने चाहिए। खराब अंडों से कोई भी मशीन अच्छे बच्चे उत्पन्न नहीं कर सकती। अच्छे अंडे पाने के लिए मुर्गियाँ स्वस्थ हों तथा उन्हें अच्छा आहार देना चाहिए। सेने के लिए बड़े तथा साफ अंडे ही काम में लाने चाहिए। सेने योग्य अंडों को 500 से 600 फा. ताप पर रखना चाहिए तथा 80 प्रतिशत नमी (humidity) बनाए रखनी चाहिए। अच्छे फल प्राप्त करने के लिए अंडों को सात दिन में मशीन या मुर्गी के नीचे रख देना चाहिए।
खाने योग्य अंडे
जब सेने योग्य अंडे लेने हों तभी मुर्गे को मुर्गियों के साथ रखना चाहिए, क्योंकि उपजाऊ अंडों में गर्मी से बच्चा पड़ जाता है और वे खाने योग्य नहीं रहते। मुर्गे को साथ रखे बिना जो अंडे प्राप्त होते हैं वे अनुपजाऊ अंडे, या जिन्हें मशीन द्वारा अनुपजाऊ कर दिया जाता है वे, अधिक समय तक रखे जा सकते हैं। खाने योग्य अंडों को दुर्गंधरहित, ठंडी, नम तथा साफ जगह पर रखना चाहिए। अंडे का चौड़ा भाग ऊपर होना चाहिए। यदि अंडों को एक सप्ताह से अधिक रखना हो तो कभी-कभी पलटते रहना चाहिए।
सफाई तथा रोगों की रोकथाम
सफल मुर्गी उत्पादन के लिए सफाई बहुत आवश्यक है। दरबे, बाड़े तथा पानी आदि की सफाई पर पूरा ध्यान देना चाहिए ताकि किसी प्रकार की छूत की बीमारी न फैले।
दो प्रमुख रोगों, रानीखेत और मुर्गीचेचक, से बचाने के लिए मुर्गियों को छह से आठ सप्ताह की आयु पर इन रोगों का टीका लगवाना चाहिए। समय समय पर पेट के कीड़ों को मारने की दवाएँ देनी चाहिए और परों से तथा मुर्गियों मे से बाह्य परोपजीवियों को भी दवा से दूर करना चाहिए। समोनेल्ला रोग से बचाने के लिये समय समय पर खून की जाँच कराना भी आवश्यक है।[1]
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ हिन्दी विश्वकोश, खण्ड 3 |प्रकाशक: नागरी प्रचारिणी सभा, वाराणसी |संकलन: भारत डिस्कवरी पुस्तकालय |पृष्ठ संख्या: 55 |