कोरकाई केरल के तिरुनेल्वेलि ज़िले में ताम्रपर्णी नदी के तट पर स्थित प्राचीन काल में एक प्रसिद्ध नगर था। बाद की शतियों में यह बड़ा और समृद्धिशाली बन्दरगाह बना। कोरकाई पांड्यों की प्राचीन राजधानी हुआ करती थी। तमिल ग्रंथों में इसे 'कोकोऊ' और संस्कृत ग्रंथों में 'कोरगाह' कहा गया है। पाण्ड्य नरेशों के समय मोतियों और शंखों के व्यापार के लिए कोरकाई प्रसिद्ध था।
- कोरकई बंदरगाह द्वारा दक्षिण भारत का रोम के साम्राज्य से भारी व्यापार होता था।
- यूनानियों ने भी इस स्थान का उल्लेख कोरकई नाम से ही किया है।
- पांड्य शासन काल में मोतियों और शंखों के व्यापार का केन्द्र भी इस नगर में था। इनसे पांड्य नरेशों को विशेष आय होती थी।
- दक्षिण भारत की अनुश्रुतियों के अनुसार पांड्य, चेर और चोल राज्यों के संस्थापक तीन भाई यहीं के निवासी थे।
- पांड्यकाल में राजधानी मदुरा में थी, फिर भी राज्य का उत्तराधिकारी राजकुमार कोरकई में ही रहता था, क्योंकि इस नगर का व्यापारिक महत्व बहुत अधिक था।
- पांड्य नरेशों का राज्य-चिन्ह 'परशु' और हाथी था।
- आजकल कोरकई ताम्रपर्णी नदी पर एक छोटा-सा ग्राम मात्र है।
- कोरकई बंदरगाह गुहाने के रेत से भर जाने के कारण बेकार हो गया और धीरे-धीरे सुदूर दक्षिण का व्यापार नए बंदरगाह 'कायल' में केन्द्रित हो गया।
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