कोरोमंडल तट

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कोरोमंडल तट एक चौड़ा तटीय मैदान है, जो पूर्वी तमिलनाडु राज्य, दक्षिण भारत है और लगभग 22,800 वर्ग कि.मी. के क्षेत्र में विस्तृत है। यह तट पूर्व में 'बंगाल की खाड़ी', पश्चिम में पूर्वी घाट, दक्षिण में कावेरी नदी के डेल्टा और उत्तर में उत्कल मैदान से घिरा हुआ है।[1]

नामकरण

इस क्षेत्र के नाम की उत्पत्ति तमिल 'चोल मंडलम'[2] से हुई है। यह क्षेत्र प्राचीन काल से ही 'मंदिरों की भूमि' के रूप में जाना जाता रहा है, क्योंकि महाबलीपुरम और मामल्लपुरम जैसे स्थानों पर अनेक मंदिर बने हुए हैं।

भौगोलिक स्थिति

कोरोमंडल क्षेत्र की औसत ऊंचाई 80 मीटर है और यह पूर्वी घाट की निचली और समतलीय शिखर वाली पहाड़ियों की श्रृंखला से लगा हुआ है। कई रेतीले अवरोधकों और तट से कुछ दूर स्थित शैवाल द्वीपों की एक श्रृंखला के साथ इसकी तटरेखा अपेक्षाकृत सीधी है। पलार, पोन्नैयार और चेय्यर नदियों व उनकी सहायक नदियों पंबम और पोन्नई की निचली धाराएं, जिनका उद्गम घाट से हुआ है, पूरे वर्ष के अधिकांश हिस्से में सूखी ही रहती हैं।[1]

कृषि

यहाँ वनक्षेत्र कम ही हैं, लेकिन दलदल, नमभूमि, झाड़ीदार जंगल और कंटीले वृक्ष सामान्यत: पाए जाते हैं। तटीय अर्थव्यवस्था का मुख्य आधार कृषि है; चावल, दलहन, गन्ना, कपास और मूंगफली यहाँ उगाए जाते हैं। अंदरूनी हिस्सों में कम सिंचाई वाले क्षेत्रों में चावल के साथ सुपारी और केला भी उगाया जाता है। समुद्र तट के साथ-साथ नारियल और कैसुएरिना के पेड़ लगाए गए हैं।

उद्योग

बड़े उद्योग उर्वरक, रसायन, फ़िल्म प्रोजेक्टर, एंप्लीफ़ायर, ट्रक और वहनों का उत्पादन करते हैं। यहाँ आवडि में भारी वाहनों और बख़्तरबंद गाड़ियों के कारख़ाने और कल्पक्कम में नाभिकीय ऊर्जा केंद्र है। चेन्नई, कड्डलुरु, चिदंबरम, चिंगलपुट और पांडिचेरी रेल और सड़क मार्ग द्वारा जुड़े हुए हैं, जो समुद्र तट के समानांतर हैं।[1]


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. 1.0 1.1 1.2 भारत ज्ञानकोश, खण्ड-1 |लेखक: इंदु रामचंदानी |प्रकाशक: एंसाइक्लोपीडिया ब्रिटैनिका प्राइवेट लिमिटेड, नई दिल्ली और पॉप्युलर प्रकाशन, मुम्बई |संकलन: भारतकोश पुस्तकालय |पृष्ठ संख्या: 450 |
  2. 'चोल भूमि', एक प्राचीन राजवंश, जिसने नौवीं सदी के मध्य से 1279 ई. तक इस क्षेत्र में शासन किया

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