खैर, खून, खाँसी, खुसी -रहीम
भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
खैर, खून, खाँसी, खुसी, बैर, प्रीति, मदपान।
रहिमन दाबे न दबै, जानत सकल जहान॥
- अर्थ
दुनिया जानती है कि खैरियत, खून, खांसी, खुशी, दुश्मनी, प्रेम और मदिरा का नशा छुपाए नहीं छुपता है।
रहीम के दोहे |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
संबंधित लेख