गंगा का नामकरण

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गंगा किनारे स्थित मुन्शी घाट, वाराणसी

गंगा भारत की सबसे महत्त्वपूर्ण नदी है, उत्तर भारत के मैदानों की विशाल नदी है। गंगा भारत और बांग्लादेश में मिलकर 2,510 किलोमीटर की दूरी तय करती हुई उत्तरांचल में हिमालय से निकलकर बंगाल की खाड़ी में भारत के लगभग एक-चौथाई भू-क्षेत्र को अपवाहित करती है तथा अपने बेसिन में बसे विराट जनसमुदाय के जीवन का आधार बनती है। जिस गंगा के मैदान से होकर यह प्रवाहित होती है, वह इस क्षेत्र का हृदय स्थल है, जिसे हिन्दुस्तान कहते हैं। गंगा नदी को उत्तर भारत की अर्थव्यवस्था का मेरुदण्ड भी कहा गया है। यहाँ तीसरी सदी में अशोक महान के साम्राज्य से लेकर 16वीं सदी में स्थापित मुग़ल साम्राज्य तक सारी सभ्यताएँ विकसित हुईं। गंगा नदी अपना अधिकांश सफ़र भारतीय इलाक़े में ही तय करती है, लेकिन उसके विशाल डेल्टा क्षेत्र का अधिकांश हिस्सा बांग्लादेश में है। गंगा के प्रवाह की सामान्यत: दिशा उत्तर-पश्चिमोत्तर से दक्षिण-पूर्व की तरफ है और डेल्टा क्षेत्र में प्रवाह आमतौर से दक्षिण मुखी है।

नामकरण

भारतीय भाषाओं में तथा अधिकृत रूप से गंगा नदी को अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर इसके अंग्रेज़ीकृत नाम ‘द गैंगीज़’ से ही जाना जाता है। गंगा सहस्राब्दियों से हिन्दुओं की पवित्र तथा पूजनीय नदी रही है। अपने अधिकांश मार्ग में गंगा एक चौड़ी व मंद धारा है और विश्व के सबसे ज़्यादा उपजाऊ और घनी आबादी वाले इलाक़ों से होकर बहती है। इतने महत्व के बावज़ूद इसकी लम्बाई 2,510 किलोमीटर है, जो एशिया या विश्व स्तर की तुलना में कोई बहुत ज़्यादा नहीं है।

गंगोत्री

पतितपावनी नदी

भारत की पावन नदी, जिसकी जलधारा में स्नान से पापमुक्ति और जलपान से शुद्धि होती है। यह प्रसिद्ध नदी, हिमाचल प्रदेश में गंगोत्री से निकलकर मध्यदेश से होती हुई पश्चिम बंगाल के परे गंगासागर में मिलती है। गंगा की घाटी संसार की उर्वरतम घाटियों में से एक है और सरयू, यमुना, सोन आदि अनेक नदियाँ उससे आ मिलती हैं। उसकी घाटी भारतीय सभ्यता के विकास में अन्यतम रही हैं। गंगा को भारतीय संस्कृति में विशिष्ट योगदान के कारण ही उसे असाधारण महिमा मिली है, जिससे वह ‘पतितपावनी’ कहलाती है।

उद्गम स्थल

3900 मीटर ऊँचा गौमुख[1] गंगा का उदगम स्थल है। जो उत्तराखंड राज्य में स्थित है। गंगोत्री में गंगा का उदगम स्रोत यहाँ से लगभग 24 किलोमीटर दूर गंगोत्री ग्लेशियर में 4,225 मीटर की ऊँचाई पर होने का अनुमान है। गंगा की धारा, जो पहाड़ों में मंदाकिनी और अलकनन्दा की धाराओं के सम्मिलन से बनती है, हिमालय में अत्यन्त क्षीण है और हरिद्वार के ऊपर कनखल के समीप उत्तरी मैदान में प्रशस्त होकर बहती है और बरसात में उसके जल का वेग भयावह हो उठता है। गंगा नदी देश की प्राकृतिक संपदा ही नहीं, जन जन की भावनात्मक आस्था का आधार भी है। 2,071 किलोमीटर तक भारत तथा उसके बाद बांग्लादेश में अपनी लंबी यात्रा करते हुए यह सहायक नदियों के साथ दस लाख वर्ग किलोमीटर क्षेत्रफल के अति विशाल उपजाऊ मैदान की रचना करती है। सामाजिक, साहित्यिक, सांस्कृतिक और आर्थिक दृष्टि से अत्यंत महत्त्वपूर्ण गंगा का यह मैदान अपनी घनी जनसंख्या के कारण भी जाना जाता है। 100 फीट[2] की अधिकतम गहराई वाली यह नदी भारत में पवित्र मानी जाती है तथा इसकी उपासना माँ और देवी के रूप में की जाती है। अपने सौंदर्य और महत्त्व के कारण एक ओर जहाँ पुराण और साहित्य में इसका उल्लेख बार-बार मिलता है, वहीं विदेशी साहित्य में भी गंगा नदी के प्रति प्रशंसा और भावुकतापूर्ण वर्णनों की कमी नहीं।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. गंगोत्री
  2. 31 मीटर

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