गुदना
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गुदना अर्थात 'शरीर में घाव करके रंगीन आकृतियां बनाना'। इसे 'अंकन' भी कहते हैं।[1]
- संसार भर की प्राचीन जातियों में किसी-न-किसी रूप में गुदना का प्रचलन पाया जाता है। अधिकांशतः यह रंगीन अंकन महिलाओं के अंगों पर बनता है।
- अनेक स्थानों में गुदना का विवाह से निकट का संबंध है।
- सोलोमन द्वीप में चेहरे और वक्ष स्थल में गुदने के बाद ही लड़कियों का विवाह होता है। न्यूगिनी में भी यही प्रथा है।
- न्यूजीलैंड की मोओरी जाति ने गुदना को उच्च कला का रूप दिया है।
- अनेक पुरुष भी गुदने से हाथ पर अपना या किसी प्रियजन का नाम अंकित करा लेते हैं।
- गुदने की प्रथा का आरंभ कुछ विद्वान् वस्त्रों के आविष्कार से पहले का मानते हैं। कुछ का मत है कि इसका संबंध जादू-टोने से हो सकता है।[1]
- मलय जाति में गुदनों को पुरस्कार स्वरूप ग्रहण किया जाता है और केवल सफल तथा प्रमुख शिकारी ही गुदने गुदवाने के अधिकारी होते हैं।
- सभ्य देशों के नाविक भी बहुधा किसी एक रंग के गुदने अपने हाथों और छातियों पर गुदवाते हैं जिनकी आकृति प्राय: तारे या ध्वज की होती है।
- भारत की स्त्रियाँ भी गुदनों की शौकीन होती हैं लेकिन पुरुषों में वैष्णव लोग शंख, चक्र, गदा, पद्म विष्णु के चार आयुधों के चिह्न छपवाते हैं और दक्षिण के शैव लोग त्रिशूल या शिवलिंग के।
- रामानुज संप्रदाय के सदस्यों में इसका चलन अधिक है। द्वारिका इसके लिए प्रसिद्ध स्थान है।
- 'ओम' का चिह्न भी लोग हाथों पर बनवाते हैं और बहुत-सी स्त्रियाँ पति का नाम ही बाहों पर गुदवा लेती हैं।
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