गुन सील कृपा परमायतनं
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गुन सील कृपा परमायतनं
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| कवि | गोस्वामी तुलसीदास |
| मूल शीर्षक | रामचरितमानस |
| मुख्य पात्र | राम, सीता, लक्ष्मण, हनुमान, रावण आदि |
| प्रकाशक | गीता प्रेस गोरखपुर |
| शैली | सोरठा, चौपाई, छन्द और दोहा |
| संबंधित लेख | दोहावली, कवितावली, गीतावली, विनय पत्रिका, हनुमान चालीसा |
| काण्ड | उत्तरकाण्ड |
गुन सील कृपा परमायतनं। प्रनमामि निरंतर श्रीरमनं॥ |
- भावार्थ
आप गुण, शील और कृपा के परम स्थान हैं। आप लक्ष्मीपति हैं, मैं आपको निरंतर प्रणाम करता हूँ। हे रघुनन्दन! (आप जन्म-मरण, सुख-दुःख, राग-द्वेषादि) द्वंद्व समूहों का नाश कीजिए। हे पृथ्वी का पालन करने वाले राजन। इस दीन जन की ओर भी दृष्टि डालिए॥10॥
| गुन सील कृपा परमायतनं |
छन्द- शब्द 'चद्' धातु से बना है जिसका अर्थ है 'आह्लादित करना', 'खुश करना'। यह आह्लाद वर्ण या मात्रा की नियमित संख्या के विन्याय से उत्पन्न होता है। इस प्रकार, छंद की परिभाषा होगी 'वर्णों या मात्राओं के नियमित संख्या के विन्यास से यदि आह्लाद पैदा हो, तो उसे छंद कहते हैं'। छंद का सर्वप्रथम उल्लेख 'ऋग्वेद' में मिलता है। जिस प्रकार गद्य का नियामक व्याकरण है, उसी प्रकार पद्य का छंद शास्त्र है।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
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