चेदि या चेति महाजनपद
पौराणिक 16 महाजनपदों में से एक था। यह शुक्तिमती नदी के पास का देश था, जिसमें बुंदेलखंड का दक्षिणी भाग और जबलपुर का उत्तरी भाग सम्मिलित था।[1] बौद्ध ग्रंथों में जिन सोलह महाजनपदों का उल्लेख है उनमें यह भी था। कलिचुरि वंश ने भी यहाँ राज्य किया। किसी समय शिशुपाल यहाँ का प्रसिद्ध राजा था। उसका विवाह रुक्मिणी से होने वाला था कि श्रीकृष्ण ने रूक्मणी का हरण कर दिया इसके बाद ही जब युधिष्ठर के राजसूय यज्ञ में श्रीकृष्ण को पहला स्थान दिया तो शिशुपाल ने उनकी घोर निंदा की। इस पर श्रीकृष्ण ने उसका वध कर डाला। मध्य प्रदेश का ग्वालियर क्षेत्र में वर्तमान चंदेरी क़स्बा ही प्राचीन काल के चेदि राज्य की राजधानी बताया जाता है।
तथ्य
- ऋग्वेद में चेदि नरेश कशुचैद्य का उल्लेख है ।[2]
- रैपसन के अनुसार कशु या कसु महाभारत में वर्णित चेदिराज वसु है [3] और इन्द्र के कहने से उपरिचर राजा वसु ने रमणीय चेदि देश का राज्य स्वीकार किया था।
- महाभारत में चेदि देश की अन्य कई देशों के साथ, कुरु के परिवर्ती देशों में गणना की गई है। [4]
- कर्णपर्व में चेदि देश के निवासियों की प्रशंसा की गई है । [5]
- महाभारत के समय[6] कृष्ण का प्रतिद्वंद्वी शिशुपाल चेदि का शासक था। इसकी राजधानी शुक्तिमती बताई गई है। चेतिय जातक[7] में चेदि की राजधानी सोत्थीवतीनगर कही गई है जो श्री नं0 ला. डे के मत में शुक्तिमती ही है[8] इस जातक में चेदिनरेश उपचर के पांच पुत्रों द्वारा हत्थिपुर, अस्सपुर, सीहपुर, उत्तर पांचाल और दद्दरपुर नामक नगरों के बसाए जाने का उल्लेख है।
- महाभारत[9] में शुक्तिमती को शुक्तिसाह्वय भी कहा गया है।
- अंगुत्तरनिकाय में सहजाति नामक नगर की स्थिति चेदि प्रदेश में मानी गई है।[10] सहजाति इलाहाबाद से दस मील पर स्थित भीटा है। चेतियजातक में चेदिनरेश की नामावली है जिनमें से अंतिम उपचर या अपचर, महाभारत आदि0 पर्व 63 में वर्णित वसु जान पड़ता है।
- वेदव्य जातक[11] में चेति या चेदि से काशी जाने वाली सड़क पर दस्युओं का उल्लेख है।
- विष्णु पुराण में चेदिराज शिशुपाल का उल्लेख है।[12]
- मिलिंदपन्हो[13] में चेति या चेदि का चेतनरेशों से संबंध सूचित होता है। सम्भवतः कलिंगराज खारवेल इसी वंश का राजा था। मध्ययुग में चेदि प्रदेश की दक्षिणी सीमा अधिक विस्तृत होकर मेकलसुता या नर्मदा तक जा पहुँची थी जैसा कि कर्पूरमंजरी से सूचित होता [14] कि नदियों में नर्मदा, राजाओं में रणविग्रह और कवियों में सुरानन्द चेदिमंडल के भूषण हैं।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ पौराणिक कोश |लेखक: राणा प्रसाद शर्मा |प्रकाशक: ज्ञानमण्डल लिमिटेड, वाराणसी |संकलन: भारत डिस्कवरी पुस्तकालय |पृष्ठ संख्या: 557, परिशिष्ट 'क' |
- ↑ 'तामे अश्विना सनिनां विद्यातं नवानाम्। यथा चिज्जेद्य: कशु: शतुमुष्ट्रानांददत्सहस्त्रा दशगोनाम्। यो में हिरण्य सन्दृशो दशराज्ञो अमंहत। अहस्पदाच्चैद्यस्य कृष्टयश्चर्मम्ना अभितो जना:। माकिरेना पथागाद्येनेमें यन्ति चेदय:। अन्योनेत्सूरिरोहिते भूरिदावत्तरोजन:' ऋग्वेद / 8,5,37-39 ।
- ↑ 'स चेदिविषयं रम्यं वसु: पौरवनन्दन: इन्द्रोपदेशाज्जग्राह रमणीयं महीपति:' महाभारत आदि पर्व 63,2
- ↑ 'सन्ति रम्या जनपदा बह्लन्ना: परित: कुरुन् पांचालाश्चेदिमत्स्याश्च शूरसेना: पटच्चरा:' महाभारत विराट0 पर्व / 1,12
- ↑ 'कौरवा: सहपांचाला: शाल्वा: मत्स्या: सनैमिषा: चैद्यश्च महाभागा धर्म जानन्तिशाश्वत्म' कर्णपर्व / 45,14-16
- ↑ सभा0 पर्व / 29,11-12
- ↑ कावेल सं 422
- ↑ ज्याग्रेफिकल डिक्शनरी / पृ0 7
- ↑ महाभारत आशवमेधिक0 / 83,2
- ↑ आयस्मा महाचुंडो चेतिसुविहरति सहजातियम्'। अंगुत्तरनिकाय 3,355
- ↑ वेदव्य जातक ( सं0 48 )
- ↑ पुनश्चेदिराजस्य दमघोषस्यात्मज शिशिशुपालनामाभवत्'। विष्णुपुराण / 4,14,50
- ↑ राइसडेवीज-पृ0 287
- ↑ 'नदीनां मेकलसुतान्नृपाणां रणविग्रह:, कवीनांच सुरानंदश्चेदिमंडलमंडनम्' कर्पूरमंजरी स्टेनकोनो पृ0 182