जीण माता
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राजस्थान के जनमानस में शक्ति के प्रतीक के रूप में लोक देवियों के प्रति अटूट श्रद्धा, विश्वास और आस्था है। साधारण परिवारों की इन कन्याओं ने कल्याणकारी कार्य किए और अलौकिक चमत्कारों से जनसाधारण के दु:खों को दूर किया। इसी से जन सामान्य ने इन्हें लोक देवियों के पद पर प्रतिष्ठित कर दिया। इन्हीं लोक देवियों में से एक हैं जीण माता।
- जीण माता का मंदिर सीकर जिले से 15 किलोमीटर दक्षिण में रेवासा नामक गांव के पास तीन छोटी पहाड़ियों के मध्य स्थित है।
- यह चौहान वंश की कुलदेवी है। इस मंदिर में जीण माता की अष्टभुजी प्रतिमा है।
- कहा जाता है कि जीण (धंध राय की पुत्री) तथा हर्ष दोनों भाई-बहन थे। जीण आजीवन ब्रह्मचारिणी रही और तपस्या के बल पर देवी बन गयी।
- यहां चैत्र व आसोज के महीने में शुक्ल पक्ष की नवमी को मेले भरते हैं।
- राजस्थानी लोक साहित्य में इस देवी का गीत सबसे लंबा है। इस गीत को कनपटी जोगी केसरिया कपड़े पहन कर, माथे पर सिंदूर लगाकर, डमरु एंव सारंगी पर गाते हैं। यह करुण रस से ओत-प्रोत है।
- जीण माता के मंदिर का निर्माण पृथ्वीराज चौहान प्रथम के शासनकाल में राजा हट्टड़ द्वारा करवाया गया था।
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