टाटा परिवार
टाटा परिवार भारतीय उद्योगपतियों और लोक हितैषियों का परिवार है, जिसने लोहा और इस्पात के कारख़ानों, सूती कपड़ों की मिलों और पनबिजली संयत्रों की स्थानपना की, जो भारत के औद्योगिक विकास में महत्त्वपूर्ण साबित हुए।
उद्योग-ऐश्वर्य की नींव
'टाटा परिवार' मूलत: पूर्व बड़ौदा रियासत[1] का पारसी पुरोहित परिवार है। इस परिवार के उद्योग-ऐश्वर्य की नींव जमशेदजी नौशेरवानजी टाटा (1839-1904 ई.) ने रखी थी। बंबई (वर्तमान मुंबई) में 'एल्फ़िंसटन कॉलेज' में शिक्षा प्राप्त करने के बाद 1858 ई. में वह अपने पिता की निर्यात व्यापार कंपनी में शामिल हुए और जापान, चीन, यूरोप व अमेरिका में इसकी शाखाओं की स्थापना में मदद की। 1872 में उन्होंने वस्त्र निर्माण पर ध्यान केंद्रित किया और 1877 में नागपुर तथा बाद में बंबई और कुर्ला में मिलों की स्थापना की। उनके उद्यम कार्यकुशलता, श्रमिक संरक्षण नीतियों और उत्कृष्ट क्षेणी के रेशों के उपयोग के लिए विख्यात थे। उन्होंने भारत में कच्चे रेशम के उत्पादन की भी शुरुआत की और बंबई क्षेत्र के पनबिजली संयंत्रों की भी योजना बनाई, जो उनकी मृत्यु के बाद 'टाटा पावर कंपनी' बनी।[2]
कारख़ानों का गठन
टाटा ने 1901 में भारत में पहले बड़े पैमाने के लोहे के कारख़ानों का गठन शुरू किया और 1907 में इन्हें 'टाटा आयरन ऐंड स्टील कंपनी' के रूप में संगठित किया गया। उनके पुत्रों, सर दोराबजी जमशेदजी टाटा (1859-1932) और सर रतनजी टाटा (1871-1932) के निर्देशन में 'टाटा इंडियन स्टील कंपनी' भारत में इस्पात बनाने वाली निजी स्वामित्व की सबसे बड़ी कंपनी तथा ऐसे कंपनी समूह का केंद्र बन गई, जो न सिर्फ़ कपड़ा, इस्पात और बिजली उत्पादन करती थी, बल्कि रसायन, कृषि संयंत्र, ट्रक, रेल के इंजन और सीमेंट का भी निर्माण करती थी। इस परिवार की औद्योगिक इकाइयां झारखंड[3] के नगर जमशेदपुर में केंद्रित हैं।
वर्ष 1898 में टाटा ने बंगलोर में एक शोध संस्थान के लिए भूमि दान की, जिसे बाद में 'इंडियन इंस्टिट्यूट ऑफ़ साइंस' के रूप में उनके बेटों द्वारा स्थापित किया गया। टाटा परिवार भारत में तकनीकी शिक्षा और वैज्ञानिक अनुसंधान के लिए धन उपलब्ध कराने वाला शायद महत्त्वपूर्ण निजी स्रोत बन गया।
टाटा एयरलाइंस की स्थापना
1932 में दोराबजी की मृत्यु के बाद संस्थापक के भतीजों में से एक सर नौरोजी सकलातवाला टाटा कॉर्पोरेट समूह के अध्यक्ष बने। 1938 में उनकी मृत्यु के बाद जहांगीर रतनजी दादाभाई टाटा (1904-1993), जिनके पिता आर. डी. टाटा संस्थापक के चचेरे भाई और हिस्सेदार थे, अध्यक्ष बने। जे. आर. डी. टाटा ने 'टाटा एयरलाइंस' (1932) की स्थापना की, जिसका 1953 में अंतर्राष्ट्रीयकरण हो गया और इसका विभाजन करके भारत की प्रमुख घरेलू तथा अंतर्राष्ट्रीय हवाई सेवा, 'इंडियन एयरलांस कॉर्पोरेशन' और 'एयर इंडिया' का स्वरूप दिया गया। जे. आर. डी. टाटा को 1992 में देश का सर्वोच्च नागरिक सम्मान 'भारत रत्न' प्रदान किया गया।[2]
1950 के दशक के उत्तरार्ध में टाटा कंपनी समूह भारतीय उद्योगों में अकेले सबसे बड़े समूह पर नियंत्रण रखता था, जिसमें साज़-सामान, इंजीनियरिंग, ऊर्जा, रसायन, उपभोक्ता वस्तु, संचार और सूचना प्रणाली सेवाओं समेत सात व्यापारिक क्षेत्रों की लगभग 80 कंपनियां शामिल थीं। जे. आर. डी. टाटा के भतीजे रतन नवल टाटा 1962 में टाटा उद्योग समूह में शामिल हुए। 1991 में उन्होंने जे. आर. डी. टाटा के उत्तरधिकारी के रूप में टाटा समूह की मुख्य कंपनी 'टाटा संस लिमिटेड' का अध्यक्ष पद संभाला। भारतीय उद्योगों के विकास में उनकी भागीदारी के लिए रतन टाटा को भारत सरकार ने वर्ष 2000 में 'पद्म भूषण' से सम्मानित किया था।
इन्हें भी देखें: जमशेद जी टाटा, जे. आर. डी. टाटा एवं रतन टाटा
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
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