केशव बलिराम हेडगेवार
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पूरा नाम | केशव बलिराम हेडगेवार |
अन्य नाम | डॉक्टर जी |
जन्म | 1 अप्रैल, 1889 |
जन्म भूमि | नागपुर, महाराष्ट्र |
मृत्यु | 21 जून, 1940 |
मृत्यु स्थान | नागपुर |
अभिभावक | पिता- पंडित बलिराम पंत हेडगेवार, माता रेवतीबाई |
नागरिकता | भारतीय |
प्रसिद्धि | स्वतंत्रता सेनानी और 'राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ' के संस्थापक |
धर्म | हिन्दू |
जेल यात्रा | सन 1921 के असहयोग आंदोलन में हिस्सा लिया और एक साल जेल में बिताया। |
अन्य जानकारी | केशव बलिराम हेडगेवार ने राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की स्थापना देश की स्वाधीनता तथा इसे परम वैभव पर पहुंचाने के उद्देश्य से की थी। उनका अरविंद घोष, भाई परमानंद, सुखदेव एवं राजगुरु आदि महान क्रांतिकारियों से संपर्क था। |
केशव बलिराम हेडगेवार (अंग्रेज़ी: Keshav Baliram Hedgewar, जन्म- 1 अप्रैल, 1889; मृत्यु- 21 जून, 1940) भारत के महान स्वतंत्रता सेनानी थे, जिन्होंने अपना समूचा जीवन हिन्दू समाज व राष्ट्र के लिए समर्पित कर दिया था। डॉ. हेडगेवार पहले क्रांतिकारी थे, किंतु बाद में हिन्दू संगठनवादी बन गए। वे जीवन के अंतिम समय तक हिंदुओं को एकता के सूत्र में बांधने के लिए अथक प्रयत्न करते रहे। उन्होंने हिंदुओं के संगठन के लिए ही 'राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ' की स्थापना की थी। केशव बलिराम हेडगेवार अपने जीवन के प्रारंभ और मध्य काल में क्रांतिकारी थे। उनका अरविंद घोष, भाई परमानंद, सुखदेव एवं राजगुरु आदि महान क्रांतिकारियों से संपर्क था। विद्यार्थी जीवन में उन्होंने 'वन्दे मातरम्' आंदोलन चलाया था।
परिचय
डॉ. केशव बलिराम हेडगेवार का जन्म 1 अप्रैल, 1889 को नागपुर के एक ब्राह्मण परिवार में हुआ था। जब वह महज 13 साल के थे, तभी उनके पिता पंडित बलिराम पंत हेडगेवार और माता रेवतीबाई का प्लेग से निधन हो गया। उसके बाद उनकी परवरिश दोनों बड़े भाइयों महादेव पंत और सीताराम पंत ने की। शुरुआती पढ़ाई नागपुर के नील सिटी हाईस्कूल में हुई। लेकिन एक दिन स्कूल में 'वंदे मातरम्' गाने की वजह से उन्हें निष्कासित कर दिया गया। उसके बाद उनके भाइयों ने उन्हें पढ़ने के लिए यवतमाल और फिर पुणे भेजा। मैट्रिक के बाद हिंदू महासभा के राष्ट्रीय अध्यक्ष बी. एस. मूंजे ने उन्हें मेडिकल की पढ़ाई के लिए सन 1910 में कलकत्ता (वर्तमान कोलकाता) भेज दिया। पढ़ाई पूरी करने के बाद वह 1915 में नागपुर लौट आए।[1]
क्रांतिकारी गतिविधियाँ
कलकत्ता में रहते हुए डॉ. केशव बलिराम हेडगेवार ने अनुशीलन समिति और 'युगांतर' जैसे विद्रोही संगठनों से अंग्रेजी सरकार से निपटने के लिए विभिन्न विधाएं सीखीं। अनुशीलन समिति की सदस्यता ग्रहण करने के साथ ही वह रामप्रसाद बिस्मिल के संपर्क में आ गए। केशब चक्रवर्ती के छद्म नाम का सहारा लेकर डॉ. हेडगेवार ने काकोरी कांड में भी भागीदारी निभाई थी, जिसके बाद वह भूमिगत हो गए थे। इस संगठन में अपने अनुभव के दौरान डॉ. हेडगेवार ने यह बात जान ली थी कि स्वतंत्रता के लिए अंग्रेजी सरकार से लड़ रहे भारतीय विद्रोही अपने मकसद को पाने के लिए कितने ही सुदृढ क्यों ना हों, लेकिन फिर भी भारत जैसे देश में एक सशस्त्र विद्रोह को भड़काना संभव नहीं है। इसीलिए नागपुर वापस लौटने के बाद उनका सशस्त्र आंदोलनों से मोह भंग हो गया। नागपुर लौटने के बाद डॉ. हेडगेवार समाज सेवा और तिलक के साथ कांग्रेस पार्टी से मिलकर कांग्रेस के लिए कार्य करने लगे थे। कांग्रेस में रहते हुए वह डॉ. मुंज के और नजदीक आ गए थे, जो जल्द ही डॉ. हेडगेवार को हिंदू दर्शनशास्त्र में मार्गदर्शन देने लगे थे।[2]
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की स्थापना
उन दिनों देश में आजादी की लड़ाई चल रही थी और सभी सचेत युवा उसमें अपनी सोच और क्षमता के हिसाब से भागीदारी निभा रहे थे। हेडगेवार भी शुरुआती दिनों में कांग्रेस में शामिल हो गए। सन 1921 के असहयोग आंदोलन में हिस्सा लिया और एक साल जेल में बिताया, लेकिन मिस्र के घटनाक्रम के बाद भारत में शुरू हुए धार्मिक-राजनीतिक ख़िलाफ़त आंदोलन के बाद उनका कांग्रेस से मन खिन्न हो गया। 1923 में सांप्रदायिक दंगों ने उन्हें पूरी तरह उग्र हिंदुत्व की ओर ढकेल दिया। वह हिंदू महासभा के राष्ट्रीय अध्यक्ष बी. एस. मुंजे के संपर्क में शुरू से थे। मुंजे के अलावा हेडगेवार के व्यक्तित्व पर बाल गंगाधर तिलक और विनायक दामोदर सावरकर का बड़ा प्रभाव था। सावरकर ने ही हिंदुत्व को नए सिरे से परिभाषित किया था। वह मानते थे कि सिंधु नदी से पूर्व की ओर लोगों की विका़स यात्रा के दौरान सनातनी, आर्यसमाजी, बौद्ध, जैन और सिक्ख धर्म समेत जितने भी धर्मों और धार्मिक धाराओं का जन्म हुआ, वह सभी हिंदुत्व के दायरे में आते हैं। उनके मुताबिक़ मुसलमान, ईसाई और यहूदी इस मिट्टी की उपज नहीं है और इसलिए इस मिट्टी के प्रति उनके मन में ऐसी भावना नहीं है, जो हिंदुओं के मन में होती है।
इसी परिभाषा के आधार पर केशव बलिराम हेडगेवार ने हिंदू राष्ट्र की परिकल्पना की और उस परिकल्पना को साकार करने के लिए 1925 में 'विजयदशमी' के दिन संघ की नींव रखी। वह संघ के पहले सरसंघचालक बने। संघ की स्थापना के बाद उन्होंने उसके विस्तार की योजना बनाई और नागपुर में शाखा लगने लगी। भैय्याजी दाणी, बाबासाहेब आप्टे, बालासाहेब देवरस और मधुकर राव भागवत इसके शुरुआती सदस्य बने। इन्हें अलग-अलग प्रदेशों में प्रचारक की भूमिका सौंपी गई।
आरएसएस को राजनीति से दूर रखना
केशव बलिराम हेडगेवार ने शुरू से ही संघ को सक्रिय राजनीति से दूर रखा और सिर्फ सामाजिक-धार्मिक गतिविधियों तक ही सीमित रखा। इसके पीछे एक सोची-समझी रणनीति थी। वह ऐसा नहीं चाहते थे कि संघ शुरुआत में ही ब्रितानी हुकूमत की नजरों में खटकने लगे और उसका विस्तार न हो सके। इसी से बचने के लिए उन्होंने संघ को राजनीतिक गतिविधियों में शामिल होने से रोका और उस पर सख्ती से अमल किया, लेकिन 1930 में जब महात्मा गांधी ने सविनय अवज्ञा आंदोलन छेड़ा तो हेडगेवार ने संघ की सभी शाखाओं को पत्र लिखकर सूचित किया कि संघ आंदोलन में शामिल नहीं होगा। साथ ही यह भी कहा कि अगर कोई व्यक्ति निजी हैसियत में इस अंदोलन में शामिल होना चाहता है तो हो सकता है। हेडगेवार खुद भी निजी तौर पर उसमें शामिल हुए थे।
डॉ. हेडगेवार का मानना था कि संगठन का प्राथमिक काम हिंदुओं को एक धागे में पिरो कर एक ताकतवर समूह के तौर पर विकसित करना है। हर रोज सुबह लगने वाली शाखा में कुछ खास नियमों का पालन होता। शरीर को फिट रखने के लिए व्यायाम और शारीरिक श्रम पर जोर दिया जाता। हिंदुत्व और हिंदू राष्ट्रवाद पर चर्चा होती। शिवाजी और मंगल पांडे जैसे हिंदू नायकों की कहानियां सुनाई जातीं। लक्ष्य साफ था संगठन के विस्तार के लिए आचार-विचार एक होना चाहिए।
व्यक्तित्व
डॉ. हेडगेवार के व्यक्तित्व को समग्रता व संपूर्णता में ही समझा जा सकता है। उनमें देश की स्वाधीनता के लिए एक विशेष आग्रह, दृष्टिकोण और दर्शन बाल्यकाल से ही सक्रिय थे। ऐसा लगता है कि जन्म से ही वे इस देश से, यहां की संस्कृति व परंपराओं से परिचित थे। यह निर्विवाद सत्य है कि उन्होंने संघ की स्थापना देश की स्वाधीनता तथा इसे परम वैभव पर पहुंचाने के उद्देश्य से ही की थी। इस कार्य के लिए उन्होंने समाज को वैसी ही दृष्टि दी, जैसी 'गीता' में श्रीकृष्ण ने अर्जुन को दी थी। हेडगेवार ने देश को उसके स्वरूप का बोध कराया। उन्होंने उस समय भी पूर्ण स्वाधीनता और पूंजीवाद से मुक्ति का विषय रखा था, जबकि माना जाता है कि कांग्रेस में वैसी कोई सोच नहीं थी।
डॉ. केशव बलिराम हेडगेवार ने संघ शाखा के माध्यम से राष्ट्र भक्तों की फौज खड़ी की। उन्होंने व्यक्ति की क्षमताओं को उभारने के लिए नए तौर-तरीके विकसित किए। सारी जिन्दगी लोगों को यही बताने का प्रयास किया कि नई चुनौतियों का सामना करने के लिए हमें नए तरीकों से काम करना पड़ेगा, स्वयं को बदलना होगा, पुराने तरीके काम नहीं आएंगे। उनकी सोच युवाओं के व्यक्तित्व, बौद्धिक एवं शारीरिक क्षमता का विकास कर उन्हें एक आदर्श नागरिक बनाती है।
मृत्यु
21 जून, 1940 को केशव बलिराम हेडगेवार का नागपुर में निधन हुआ। उनकी समाधि रेशम बाग़, नागपुर में स्थित है, जहाँ उनका अंत्येष्टि संस्कार हुआ था।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ क्या आप RSS के संस्थापक हेडगेवार के बारे में ये जानते हैं? (हिन्दी) hindi.thequint। अभिगमन तिथि: 31 जुलाई, 2018।
- ↑ प. पू. डॉ. केशव बलिराम हेडगेवार (हिन्दी) vskgujarat। अभिगमन तिथि: 31 जुलाई, 2018।
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