तारकुंडे समिति
तारकुंडे समिति (1974-1975) का गठन स्वतंत्र संस्था 'सिटिजंस ऑफ़ डेमोक्रेसी' की ओर से जयप्रकाश नारायण ने चुनावी सुधार के लिए किया था। इस समिति की सबसे प्रमुख सिफ़ारिश यह थी कि एक ऐसा क़ानून होना चाहिए, जिसके तहत सभी मान्यता प्राप्त राजनीतिक दलों द्वारा अपने खातों, आय के स्नोतों और खर्च के ब्यौरे का पूरा हिसाब दिया जाए। यदि खाते में गड़बड़ी आदि पाई जाए तो इसे दंडनीय अपराध माना जाए।
समिति गठन का कारण
भारत में चुनाव की व्यवस्था करना और उसकी कार्यविधि को सुचारू रूप से संचालित करने के लिए संविधान के अनुसार एक 'चुनाव आयोग' की स्थापना की गई है। चुनाव स्वतंत्र और निष्पक्ष हो, इस बात का आयोग द्वारा विशेष ध्यान रखा जाता है। पीछे के कुछ वर्षों में चुनाव पद्धति में कुछ ऐसी विसंगतियाँ उत्पन्न होने लगी हैं, जिन्होंने जनता की चुनावों में आस्था को कम किया है। हिंसा, फर्जी मतदान, मतदान केंद्रों पर क़ब्ज़ा, काले धन का प्रयोग आदि कुछ ऐसी ही विसंगतियाँ हैं, जिनकी प्रवृत्ति निरंतर बढ़ती ही जा रही है। इस कारण आज चुनाव व्यवस्था के महत्त्व में कमी आई है और जनता द्वारा भी उसे शंका की दृष्टि से देखा जाता रहा है। इस कारण सरकार को चुनाव प्रणाली में सुधारों के प्रति सचेत होना पड़ा और समय-समय पर इसके लिए आयोगों और समितियों की स्थापना की गई है, जिनका मुख्य उद्देश्य चुनाव व्यवस्था में सुधार लाने के लिए विभिन्न सिफ़ारिशें प्रस्तुत करना था। इस श्रेणी में मुख्यत: ‘तारकुंडे समिति’ और 1990 में दिनेश गोस्वामी की अध्यक्षता में गठित 'गोस्वामी समिति' रहीं, जिनके द्वारा चुनाव सुधार सम्बंधी अनेक महत्त्वपूर्ण सिफ़ारिशें प्रस्तुत की गई थीं।
सुझाव
चुनाव व्यवस्था में सुधार करने के लिए इस समिति द्वारा जिन सुझावों को प्रस्तुत किया गया, उनमें से प्रमुख इस प्रकार थे-
- आय के स्रोतों का उल्लेख तथा आय-व्यय का पूरा हिसाब लिखना, समस्त राजनीतिक दलों के लिए अनिवार्य कर दिया जाए और निर्वाचन आयोग इसकी जाँच कराये।
- प्रत्येक उम्मीदवार को सरकार की ओर से छपे हुए मतदान कार्ड नि:शुल्क दिये जाएँ तथा प्रत्येक मतदाता के नाम का कार्ड बिना टिकट लगाये डाक से भेजने की छूट की जाए।
- निर्वाचन क्षेत्र के मतदाताओं की सूचियों की 12 प्रतियाँ प्रत्येक उम्मीदवार को सरकार की ओर से नि:शुल्क दी जाए।
- लोक सभा अथवा विधान सभा के विघटन और नये चुनावों की घोषणा के बाद से सरकार काम चलाऊ सरकार की तरह से काम करे। वह न तो नयी नीतियों की घोषणा करे और न ही उन्हें लागू करे। न नयी परियोजनाएँ चालू करे और न ही उनका वादा करे। न नये ऋण अथवा भत्ते दे और न वेतन वृद्धि की घोषणा करे तथा ऐसे सरकारी समारोह आयोजित न करे, जिनमें मंत्री, राज्यमंत्री, उपमंत्री अथवा संसदीय सचिव भाग लें।
- चुनाव के दौरान मंत्रिमण्डल के सदस्य सरकारी खर्च पर यात्रा न करें। सरकारी सवारी और विमान प्रयोग में न लायें। उनके दौरों के समय सरकारी कर्मचारी तैनात न किये जाएँ।
- जमानत की रकम लोक सभा के उम्मीदवारों के लिए 500 से बढ़ाकर 2000 रुपये और विधान सभाओं के उम्मीदवारों के लिए 200 से बढ़ाकर 1000 रुपये कर दी जाए।
- राज्यों में निर्वाचन आयोग स्थापित किये जाएँ। 'केंद्रीय निर्वाचन आयोग' में एक के बजाय तीन सदस्य हों तथा उनकी नियुक्ति राष्ट्रपति केवल प्रधानमंत्री के परामर्श पर नहीं, अपितु तीन व्यक्तियों की एक समिति की सिफ़ारिशों पर करे। सर्वोच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश तथा लोक सभा में विरोध पक्ष का नेता प्रतिनिधि हो।
- मताधिकार की आयु 21 वर्ष के स्थान पर 18 वर्ष कर दी जाए।
- आकाशवाणी के सम्बंध में ‘चंदा समिति’ की रिपोर्ट पर अमल किया जाए तथा आकाशवाणी को निगम का रूप दिया जाए।
- निर्वाचन आयोग की सहायता के लिए केंद्र और राज्यों में निर्वाचन परिषदें बनायी जाएँ, जो उसे सलाह दे। इन परिषदों में विभिन्न राजनीतिक दलों के प्रतिनिधि हों। इनके अतिरिक्त मतदाता परिषदें भी बनायी जाएँ, जो निर्वाचन के समय होने वाली बुराइयों पर निगाह रखे तथा निर्वाचकों की निष्पक्षता की जाँच करे।
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