तै रहीम अब कौन है -रहीम
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तै ‘रहीम’ अब कौन है, एतो खैंचत बाय।
जस कागद को पूतरा, नमी माहिं घुल जाय॥
- अर्थ
काग़ज़ के बने पुतले के जैसा यह शरीर है। नमी पाते ही यह गल-घुल जाता है। समझ में नहीं आता कि इसके अन्दर जो साँस ले रहा है, वह आखिर कौन है?
रहीम के दोहे |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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