दांडपट्टा
दांडपट्टा (अंग्रेज़ी: Dandpatta) भारतीय इतिहास में मराठा शासन काल के समय प्रयोग किया जाने वाला एक हथियार था। मराठा योद्धाओं को क्षमता से अधिक ताक़तवर बनाने वाला हथियार था दांडपट्टा। इस ख़ास तरह की तलवार को ‘पाटा’ भी कहा जाता है। ये किसी ज़माने में मराठा योद्धाओं का पसंदीदा हथियार हुआ करता था। ये दिखने में एक साधारण सी तलवार लगती है, लेकिन इसके काम होश उड़ा देने वाले थे।
मराठा हथियार
भारतीय इतिहास में जितने भी महान मराठा या राजपूत योद्धा हुए हैं, युद्ध में इस्तेमाल होने वाले उनके हथियार भी उतने ही मशहूर हुए हैं। भारत में उस दौर में एक से बढ़कर एक हथियार बने थे। आज भले ही बम और मिसाइल के दम पर किसी सेना की ताक़त आंकी जाती हो, लेकिन पहले के जमाने में वही सेना ज़्यादा ताक़तवर मानी जाती थी, जिसके पास अस्त्र-शस्त्र चलाने में माहिर योद्धा होते थे। महाराणा प्रताप की तलवार से लेकर छत्रपति शिवाजी महाराज के वाघ नख तक, इन ख़ास हथियारों ने कई योद्धाओं का युद्ध में अंत तक साथ निभाया था। दांडपट्टा घातक तलवार मुग़ल काल के दौरान बनाई गई थी। इसे 17वीं व 18वीं शताब्दी के दौरान हुए युद्धों में मराठा योद्धाओं द्वारा सबसे अधिक इस्तेमाल किया गया था।
क्या था दांडपट्टा?
अगर भारतीय युद्ध इतिहास के हथियारों को देखें तो दांडपट्टा मुगलों से लेकर राजपूतों तक सभी के पास मौजूद था। लेकिन इस पर जितना नियंत्रण मराठा योद्धाओं का था, उतना किसी का भी नहीं था। दरअसल, मराठा योद्धाओं के पास इस शस्त्र को चलाने का एक ख़ास कौशल थी। वो इसे चलाने में अन्य योद्धाओं से ज़्यादा कुशल थे। इस तलवार की ब्लेड आम तलवारों से ज़्यादा लंबी और लचीली होती है, जिसे मोड़ना बहुत ही कौशल का काम है। केवल मराठा योद्धाओं के पास ही इस ब्लेड को ठीक से मोड़ने का कौशल था।
दरअसल, मराठी भाषा में ‘पटाईत’ नाम का एक शब्द होता है, जिसका मतलब ‘कौशल’ होता है। इसी ‘पटाईत’ शब्द को ‘पट्टा’ भी कहा जाता है। मराठी में कुशल व्यक्ति को ‘धारकरी’ भी कहा जाता है। इसका मतलब एक ऐसे व्यक्ति से है जो तलवार के साथ-साथ भाला, धनुष और तीर समेत 5 से 6 हथियारों को चलाने में निपुण माना हो। लेकिन ‘पट्टा’ चलाने वाले कुशल व्यक्ति को ‘पट्टेकरी’ कहा जाता था, जिसे ’10 धारकरी’ के बराबर माना जाता था। इससे अंदाज़ा लगा सकते हैं कि ‘दांडपट्टा’ कितना महत्वपूर्ण हथियार था।
अनोखी बनावट
इस तलवार की अधिकतम लंबाई क़रीब 5 फ़ीट तक, जबकि इसकी ब्लेड की लंबाई 4 फ़ीट तक होती थी। इसमें एक अनोखी बनावट वाला ‘हैंडल’ भी लगा होता था, जो एक फ़ीट लंबा होता था। इसकी ब्लेड लचीला होने के बावजूद काफ़ी तेज़ होती थी। इस तलवार को ख़ास बनाने का काम इसका अनोखा ‘हैंडल’ करता था। आम तलवारों में जहां हत्थे की तरफ़ हाथ बिना ढके होते हैं वहीं इसका हत्था पूरी से ढका हुआ होता था। इसकी वजह से युद्ध के दौरान दुश्मन के वार से हाथ पर हमला होने का ख़तरा भी नहीं रहता था।
शिवाजी महाराज का पसंदीदा हथियार
ऐतिहासिक कहानियों के मुताबिक़, छत्रपति शिवाजी का पसंदीदा हथियार दांडपट्टा ही हुआ करता था। जब मुग़ल सम्राट अफ़ज़ल ख़ान के अंगरक्षक बड़ा सैयद ने प्रतापगढ़ की लड़ाई में शिवाजी महाराज पर तलवारों से हमला किया था तो इस दौरान उनके प्रमुख अंगरक्षक जिवा महाला ने सैयद का एक हाथ धड़ से अलग कर उसे मार गिराया था। छत्रपति शिवाजी महाराज ने अपने एक अन्य सेनापति बाजी प्रभु देशपांडे को भी ‘पाटा’ के उपयोग में प्रशिक्षित किया था। बाजी प्रभु देशपांडे ने भी पावनखिंड में लूटपाट को रोकने के लिए ‘दांडपट्टा’ तलवार का ही इस्तेमाल किया था।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
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