दिनशा वाचा का परिचय
दिनशा वाचा का परिचय
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पूरा नाम | दिनशा इडलजी वाचा |
अन्य नाम | दिनशा वाचा |
जन्म | 1844 |
मृत्यु | 1936 |
नागरिकता | भारतीय |
पार्टी | भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस |
संबंधित लेख | दादाभाई नौरोजी, फ़िरोजशाह मेहता, मुंबई, सुरेंद्रनाथ बनर्जी |
अन्य जानकारी | दिनशा इडलजी वाचा भारत में ब्रिटिश शासन के विशेषत: ब्रिटेन द्वारा भारत के आर्थिक शोषण के अत्यंत कटु आलोचक थे। वे इस विषय के विभिन्न पहलुओं पर लेख लिखकर और भाषण देकर लोगों का ध्यान आकर्षित करते थे। |
अद्यतन | 04:42, 4 जून 2017 (IST) |
दिनशा इडलजी वाचा का जन्म 1844 में हुआ था। दिनशा आर्थिक और वित्तीय मामलों के विशेषज्ञ थे और इन विषयों में उनकी सूझ बड़ी ही पैनी थी। ये भारत में ब्रिटिश शासन के विशेषत: ब्रिटेन द्वारा भारत के आर्थिक शोषण के अत्यंत कटु आलोचक थे। दिनशा वाचा इस विषय के विभिन्न पहलुओं पर लेख लिखकर और भाषण देकर लोगों का ध्यान आकर्षित करते थे। भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की स्थापना में प्रमुख योगदान देने वाले मुंबई के तीन मुख्य पारसी नेताओं में से एक थे। अपने अन्य दोनों साथी पारसी नेताओं, फ़िरोजशाह मेहता तथा दादा भाई नौरोजी के सहयोग से सर दिनशा वाचा ने भारत की ग़रीबी और ग़रीब जनता से सरकारी करों के रूप में वसूल किए गए धन के अपव्यय के विरुद्ध स्वदेश में और शासक देश ब्रिटेन में लोकमत जगाने के लिए अथक परिश्रम किया।
कांग्रेस के प्रथम अधिवेशन
कांग्रेस के प्रथम अधिवेशन में ही दादाभाई नौरोजी ने देश की वित्तीय स्थिति और प्रकासकीय व्यय के संबंध में एक प्रस्ताव प्रस्तुत करके इस विषय की जाँच कराए जाने का अनुरोध किया कि भारत के प्रशासन तथा सेना में होने वाले व्यय का कितना भार भारतीय जनता वहन करे और कितना शासक देश ब्रिटेन के जिम्मे हो। इस विषय का आंदोलन दस वर्ष से अधिक समय तक लगातार जारी रहा और दादाभाई नौरोजी ने ब्रिटिश पार्लमेंट में भी इसे विवाद के लिए प्रस्तुत किया। फलत: 24 मई, 1895 को राजकीय घोषणा द्वारा एक जाँच कमीशन नियुक्त हुआ जिसे भारत में होने वाले सैनिक और प्रशासकीय व्यय की जाँच करके इस निर्णय का काम सौंपा गया कि उस व्यय का कितना अंश भारत वहन करे और कितना ब्रिटेन।
इस जाँच कमीशन के सामने भारत की ओर से साक्ष्य प्रस्तुत करने को दो भारतीय नेता अप्रैल, 1817 में लंदन भेजे गए। इनमें से एक थे सर दिनशा इडलजी वाचा और दूसरे थे गोपाल कृष्ण गोखले। इन दोनों तथा सक्ष्य के लिए गए दो अन्य भारतीय नेताओं सुरेंद्रनाथ बनर्जी तथा सुब्रह्मण्य अय्यर के सहयोग से दादाभाई नौरोजी ने भारतीय जनता की ग़रीबी और आर्थिक तबाही का सही चित्र ब्रिटिश जनता के सामने प्रस्तुत करने के लिए धुँआधार प्रचार का आयोजन किया।
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