धनि रहीम जल पंक को -रहीम

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धनि ‘रहीम’ जल पंक को, लघु जिय पियत अघाय।
उदधि बड़ाई कौन हैं, जगत् पियासो जाय ॥

अर्थ

कीचड़ का भी पानी धन्य है, जिसे पीकर छोटे-छोटे जीव-जन्तु भी तृप्त हो जाते हैं। उस समुद्र की क्या बड़ाई, जहां से सारी दुनिया प्यासी ही लौट जाती है?


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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