नव पाषाण काल अथवा 'उत्तर पाषाण काल' की साधारणत: काल सीमा 3500 ई. पू. से 1000 ई. पू. के बीच मानी जाती है। यूनानी भाषा का 'निओ' (Neo) शब्द नवीन के अर्थ में प्रयुक्त होता है। इसलिए इस काल को ‘नवपाषाण काल‘ कहा जाता है।
मुख्य स्थल
इस काल की सभ्यता भारत के विशाल क्षेत्र में फैली हुई थी। सर्वप्रथम 1860 ई. में 'ली मेसुरियर' (Le Mesurier) ने इस काल का प्रथम प्रस्तर उपकरण उत्तर प्रदेश की टौंस नदी की घाटी से प्राप्त किया। इसके बाद 1872 ई. में 'निबलियन फ़्रेज़र' ने कर्नाटक के बेलारी क्षेत्र को दक्षिण भारत के उत्तर पाषाण कालीन सभ्यता का मुख्य स्थल घोषित किया। इसके अतिरिक्त इस सभ्यता के मुख्य केन्द्र बिन्दु थे- कश्मीर, सिंध प्रदेश, बिहार, झारखंड, बंगाल, उत्तर प्रदेश, आंध्र प्रदेश, छत्तीसगढ़, असम आदि।
मानव द्वारा कृषि का प्रारम्भ
इस समय प्राप्त प्रस्तर औज़ार गहरे ट्रेप (Dark Traprock) के बने थे, जिन पर एक विशेष प्रकार की पॉलिश लगी होती थी। नव पाषाण काल में चावल की खेती का प्राचीनतम साक्ष्य इलाहाबाद के नज़दीक ‘कोल्डिहवा‘ नामक स्थान से मिलता है, जिसका समय 7000-6000 ई. पू. माना जाता है। धान के अतिरिक्त महगड़ा में भी खेती का साक्ष्य मिलता है। महगड़ा में एक पशुवाड़ा भी मिला है। इस समय तक पाषाणकालीन सभ्यता काफ़ी विकसित हो गयी थी। अब मनुष्य आखेटक, पशुपालक से आगे निकल कर खाद्य पदार्थों का उत्पादक एवं उपभोक्ता भी बन गया था। अब वह ख़ानाबदोश वाले जीवन को त्याग कर स्थायित्वपूर्ण जीवन की ओर आकर्षित होने लगा था। उसे बर्तन बनाने की तकनीक का भी ज्ञान हो गया था। सम्भवतः वस्त्रों की जगह जानवरों की खालों का प्रयोग करते थे। नव पाषाण काल की प्राप्त कुछ पर्वत कन्दराओं और बर्तनों से चित्रकारी का आभास होता है।
कृषि कर्म का प्रारम्भ तो नव पाषाण काल में अवश्य हुआ, पर सर्वप्रथम किस स्थान पर कृषि कर्म प्रारम्भ हुआ, यह विवाद का विषय है। 1977 से चल रही खुदाई में अब तक प्राप्त साक्ष्यों से ऐसा अनुमान लगाया जाता है कि सिंध और बलूचिस्तान की सीमा पर स्थित 'कच्छी मैदान' में बोलन नदी के किनारे मेहरगढ़ नामक स्थान पर कृषि कर्म का प्रारम्भ हुआ। इस सभ्यता के लोगों ने अग्नि का प्रयोग प्रारम्भ कर दिया था। कुम्भकारी सर्वप्रथम इसी काल में दृष्टिगोचर होती है। नव पाषाणकालीन महत्त्वपूर्ण स्थल हैं-
स्थल | क्षेत्र |
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1- गुफकराल और बुर्ज़होम | कश्मीर |
2- महगड़ा, चोपनी माण्डो और कोल्डिहवा | उत्तर प्रदेश की वेलन घाटी |
3- चिरांद |
नव पाषाण काल की महत्त्वपूर्ण विशेषता पॉलिशदार कुल्हाड़ी है। इस काल का नाम सर्वप्रथम जॉन ल्यूवाक ने अपनी पत्रिका 'न्यू हिस्टोरिका' में दिया। भारत में नव पाषाण काल के उपकरण की खोज 1860 ई. में मन्सूरर द्वारा की गई, उन्होंने उत्तर प्रदेश के टोन्स घाटी में उत्खनन कार्य किया। इस युग से प्राचीन कृषक समुदायों का बसना प्रारम्भ हुआ। ई. काल में प्राचीनतम फ़सल के साक्ष्य नील नदी की घाटी में मिले हैं। प्राचीनतम फ़सल गेहूँ को माना जाता है, चावल को नहीं। 7000 बी.सी. के आसपास भारतीय उपमहाद्वीप में गेहूँ के साक्ष्य बलूचिस्तान के मेहरगढ़ में मिले है। 6000 बी.सी. में विश्व में प्राचीनतम चावल के साक्ष्य बेलन घाटी में कोल्डीहवा, इलाहाबाद में मिले हैं। दक्षिण भारत में बाजरे एवं रागी के साक्ष्य मिले हैं। विश्व में प्राचीनतम कपास के साक्ष्य 7000 बी.सी. के आस.पास मेहरगढ़ में मिले हैं। इस समय के मानव ने समय के महत्व को समझते हुए कृषि की तकनीकी को विकसित कर लिया, जिससे उत्पादन बढ़ा।
अर्थव्यवस्था तथा युद्ध
इस युग से बचत की अर्थव्यवस्था का प्रारम्भ हुआ। संभवतः अन्न के लिए लोगों के मध्य युद्ध हुआ। इस पूरे काल मे अर्थव्यवस्था के कारण युद्ध जैसी स्थिति अक्सर बनी रहती थी। इसी कारण प्रारंभिक समाज और राजनीति के प्रथम चरण दिखने लगे। युद्ध के कारण इस काल में छोटे-छोटे समूह में नेतृत्वकर्ता या नेता का उदय हुआ। भविष्य में यही मुखिया या राजा बना। युद्ध के कारण युद्ध कला और उससे सम्बन्धित लोगों का समूह बनने लगा, लेकिन इस समय के समाज को कार्य के आधार पर विभाजित नहीं मान सकते हैं। समाज विभाजन महिला और पुरुष में हुआ। इस समय युद्ध के कारण मुद्रा सील्स का प्रयोग प्रारम्भ हुआ। यह मुद्राएं वास्तव मे स्वामित्व को बताती थीं। युद्ध के कारण समूहों में आपसी एकता के लिए जाति देवता जैसी अवधारणा विकसित हुई। ग्रामीण समाज में 'टोटम' कुल जाति चिन्ह का प्रयोग हुआ। पशुपालन के कारण मानव पशुओं के करीब आया। माना जाता है कि जीव विज्ञान का प्रयोग शुरू हुआ। खाद्यान्न को रखने के लिए बडे़-बड़े बर्तनों का प्रयोग हुआ। माना जाता है कि रसायन विज्ञान का प्रयोग शुरू हुआ। अर्थव्यवस्था में वर्षा का महत्त्व बढ़ा, जिससे ज्योतिषशास्त्र का प्रयोग प्रारम्भ हुआ। इस काल में मानव ने सुई धागे का प्रयोग प्रारम्भ किया। पहिए का आविष्कार हुआ, परन्तु इसका प्रयोग यातायात में नहीं, बर्तन बनाने में हुआ, जैसे कुम्हार का चाक आदि। इस काल में मानव ने नाव जैसी चीज का निर्माण किया, परन्तु यातायात में प्रयोग नही किया। मानव की मूलभूत आवश्यकताएं रोटी, कपड़ा और मकान की पूर्ति हुई।[1]
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ पाषाणकाल से सम्बंधित कुछ तथ्य (हिन्दी) आईसीएसलखनऊ.इन। अभिगमन तिथि: 21 नवम्बर, 2014।