नाणेघाट
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विवरण | 'नाणेघाट' पश्चिमी घाट पर्वत श्रेणी में स्थित एक ऐतिहासिक स्थान तथा दर्रा है। यहाँ समीप ही एक गुफ़ा में रानी नायानिका (नागानिका) का एक अभिलेख है। |
स्थिति | पुणे, महाराष्ट्र |
पर्वत श्रृंखला | पश्चिमी घाट पर्वत श्रेणी |
संबंधित लेख | महाराष्ट्र, महाराष्ट्र का इतिहास, सातवाहन साम्राज्य |
अन्य जानकारी | यहाँ की गुफ़ा से प्राप्त अभिलेख में द्वितीय शताब्दी के लगभग बौद्धमत के उत्कर्ष काल के पश्चात् हिन्दू धर्म के पुनरुत्थान की प्रथम झलक मिलती है। |
नाणेघाट महाराष्ट्र के पुणे ज़िले में स्थित एक ऐतिहासिक स्थान और दर्रा है। इसके समीप एक गुफ़ा में सातवाहन नरेश शातकर्णि द्वितीय की रानी नायानिका (नागानिका) का एक अभिलेख है, जिसमें उसके द्वारा अश्वमेध, राजसूय यज्ञों सहित कई यज्ञ किये जाने तथा ब्राह्मणों को विभिन्न दान दिये जाने के उल्लेख हैं।
- यहाँ के अभिलेख में इन्द्र, संकर्षण, वासुदेव, चन्द्र सूर्य, यम, वरुण तथा कुबेर का देवताओं के रूप मे आह्वान किया गया है।
- इस अभिलेख में द्वितीय शताब्दी के लगभग बौद्धमत के उत्कर्ष काल के पश्चात् हिन्दू धर्म के पुनरुत्थान की प्रथम झलक मिलती है।
- अभिलेख में शातकर्णि की सफलताओं और विजयों का वर्णन किया गया है उसे 'सिमुक वंश का धन'[1] कहा गया है। उसे 'अप्रतिहत चकदक्षिणापथपति' कहा गया है।
- पुष्यमित्र शुंग की भाँति शातकर्णि ने भी दो बार अश्वमेध यज्ञ का अनुष्ठान किया और ब्राह्मण धर्म के प्रति अपनी श्रद्धा प्रकट की। नाणेघाट का अभिलेख इस विषय का साक्ष्य प्रस्तुत करता है, जिसमें उसके लिए 'अश्वमेध यज्ञ द्वितीय इष्ट' कहा गया है।
- नाणेघाट के अभिलेख से यह भी ज्ञात होता है कि शातकर्णि की मृत्यु के अनंतर उसकी रानी नायानिका, जो अंगीय कुलीन महारथी त्रणकयिरो की दुहिता थी, उसने राजकार्य सम्भाला। उसके दो पुत्र 'शाक्तिश्री' और 'वेदश्री' अभी अल्पवयस्क थे, अत: रानी ने उनकी संरक्षिका के रूप में शासन की बागडोर सम्भाली।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ सिमुक सिमुक सातवाहनस वंशवधनस्