सुन्दरलाल शर्मा
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पूरा नाम | सुन्दरलाल शर्मा |
जन्म | 21 दिसम्बर, 1881 |
जन्म भूमि | राजिम, छत्तीसगढ़ |
मृत्यु | 28 दिसम्बर, 1940 |
नागरिकता | भारतीय |
प्रसिद्धि | स्वतन्त्रता सेनानी, सामाजिक कार्यकर्ता |
धर्म | हिन्दू |
जेल यात्रा | आप 'असहयोग आन्दोलन' के दौरान छत्तीसगढ़ से जेल जाने वाले व्यक्तियों में प्रमुख थे। |
भाषा ज्ञान | संस्कृत, बांग्ला तथा उड़िया आदि। |
रचनाएँ | पण्डित सुन्दरलाल शर्मा ने हिन्दी तथा छत्तीसगढ़ी में लगभग 18 ग्रंथों की रचना की थी, जिसमें 'छत्तीसगढ़ी दान-लीला' उनकी चर्चित कृति थी। |
अन्य जानकारी | छत्तीसगढ़ शासन ने सुन्दरलाल शर्मा की स्मृति में साहित्य/आंचिलेक साहित्य के लिए 'पण्डित सुन्दरलाल शर्मा सम्मान' स्थापित किया है। |
सुन्दरलाल शर्मा (अंग्रेज़ी: Sundarlal Sharma, जन्म- 21 दिसम्बर, 1881, राजिम, छत्तीसगढ़; मृत्यु- 28 दिसम्बर, 1940) बहुमुखी प्रतिभा के धनी, सामाजिक क्रांति के अग्रदूत तथा छत्तीसगढ़ राज्य में जनजागरणकर्ता थे। वे एक कवि, सामाजिक कार्यकर्ता, समाज सेवक, इतिहासकार तथा स्वतंत्रता-संग्राम सेनानी थे। उन्हें 'छत्तीसगढ़ का गाँधी' की उपाधि दी गई है। छत्तीसगढ़ में इनके नाम पर ही 'पण्डित सुन्दरलाल शर्मा मुक्त विश्वविद्यालय' की स्थापना की गई है।
जन्म तथा शिक्षा
बहुमुखी प्रतिभा के धनी सुन्दरलाल शर्मा जी का जन्म 21 दिसम्बर, 1881 ई. को छत्तीसगढ़ की धार्मिक नगरी राजिम के निकट महानदी के तट पर बसे ग्राम चंद्रसूर में हुआ था। इनकी स्कूली शिक्षा प्राथमिक स्तर तक हुई। आगे की शिक्षा इन्होंने घर पर ही स्वाध्याय से प्राप्त की थी। सुन्दरलाल शर्मा ने संस्कृत, बांग्ला तथा उड़िया आदि भाषाएं भी सीख ली थीं।[1]
लेखन कार्य
सुन्दरलाल शर्मा अपनी किशोरावस्था से ही कविता, लेख तथा नाटक आदि की रचना करने लगे थे। वे भारतीय समाज में व्याप्त कुरीतियों को मिटाने के लिए शिक्षा के प्रचार-प्रसार को आवश्यक समझते थे। वे हिन्दी भाषा के साथ छत्तीसगढ़ी को भी काफ़ी महत्व देते थे। पण्डित सुन्दरलाल शर्मा ने हिन्दी तथा छत्तीसगढ़ी में लगभग 18 ग्रंथों की रचना की, जिसमें 'छत्तीसगढ़ी दान-लीला' उनकी चर्चित कृति थी।
योगदान
19वीं सदी के अंतिम चरण में देश में राजनैतिक और सांस्कृतिक चेतना की लहरें उठ रही थीं। समाज सुधारकों, चिंतकों तथा देशभक्तों ने परिवर्तन के इस दौर में समाज को नयी सोच और दिशा दिलाने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। छत्तीसगढ़ में सुन्दरलाल शर्मा ने सामाजिक चेतना का स्वर घर-घर पहुंचाने में अविस्मरणीय कार्य किया। वे 'राष्ट्रीय कृषक आंदोलन', 'मद्यनिषेध', 'आदिवासी आंदोलन', 'स्वदेशी आंदोलन' से जुड़े और स्वतंत्रता के यज्ञवेदी पर अपना सर्वस्व न्यौछावर कर दिया।[1]
छत्तीसगढ़ के ग्रामीण अंचलों में व्याप्त रुढ़िवादिता, अंधविश्वास, अस्पृश्यता तथा कुरीतियों को दूर करने के लिए पण्डित सुन्दरलाल शर्मा ने अथक प्रयास किया। उनके हरिजनोद्धार कार्य की प्रशंसा महात्मा गाँधी ने मुक्त कंठ से करते हुए इस कार्य में इन्हें अपना गुरू माना था। 1920 ई. में धमतरी के पास 'कंडेल नहर सत्याग्रह' इनके नेतृत्व में ही सफल रहा था। इनके प्रयासों से ही महात्मा गाँधी 20 दिसम्बर, 1920 को पहली बार रायपुर आए थे।
जेलयात्रा
पण्डित सुन्दरलाल शर्मा 'असहयोग आन्दोलन' के दौरान छत्तीसगढ़ से जेल जाने वाले व्यक्तियों में प्रमुख थे।
निधन
सुन्दरलाल शर्मा जीवन-पर्यन्त सादा जीवन, उच्च विचार के आदर्श का पालन करते रहे। सदैव समाज सेवा में रत रहने और अत्यधिक परिश्रम के कारण शरीर क्षीण हो गया और 28 दिसम्बर, 1940 को इनका देहावसान हुआ। छत्तीसगढ़ शासन ने उनकी स्मृति में साहित्य/आंचिलेक साहित्य के लिए 'पण्डित सुन्दरलाल शर्मा सम्मान' स्थापित किया है।[1]
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ 1.0 1.1 1.2 पण्डित सुन्दरलाल शर्मा सम्मान (हिन्दी) सीजीसीकल्चर.इन। अभिगमन तिथि: 09 दिसम्बर, 2014।
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