भागवत धर्म सार -विनोबा भाग-125
भागवत धर्म मिमांसा
7. वेद-तात्पर्य
छह श्लोकों का यह छोटा-सा अध्याय है। इसमें मूल के तीन अध्यायों से चुने हुए श्लोक हैं। भगवान् वेद के बारे में जो भी कहना चाहते हैं, वह सारा उन्होंने यहाँ कह दिया है। गीता और उपनिषद् के अलावा मेरा सबसे अधिक अध्ययन वेदों का हुआ है। वैसे रामायण, महाभारत मैंने पढ़ा था, लेकिन मराठी में, संस्कृत में नहीं। मूल में मेरी अभिरुचि गीता के लिए ही है। गीता छोटा-सा ग्रन्थ है, लेकिन उस पर काफ़ी भाष्य लिखे गये हैं। वे सारे भाष्य मैंने पढ़े हैं। वेद का अध्ययन मेरी माँ मरी, उस दिन से मैंने आरम्भ किया और लगातार चालीस साल किया।
(21.1) स्वे स्वेऽधिकारे या निष्ठा स गुणः परिकीर्तितः ।
विपर्ययस्तु दोषः स्यात् उभयोरेष निश्चयः ।।[1]
स्वे स्वे अधिकारे या निष्ठा – अपने-अपने अधिकार में निष्ठा। यह एक गुण है। इससे उल्टा, ‘जहाँ अपना अधिकार नहीं, उसमें निष्ठा’ दोष है। मतलब यह कि अपने अधिकार में ध्यान न देना दोष और दूसरे के अधिकार में ध्यान देना भी दोष। दुनिया में किसी की बुद्धि कम होती है, तो किसी की ज्यादा। कम-बेशी शक्ति के लोग दुनिया में दीखते ही हैं। यद्यपि हम चाहते हैं कि सबकी बुद्धि-शक्ति बढ़े। फिर भी, कोशिश के बावजूद यह अन्तर मूल में ही होता है। भगवान् कहते हैं कि शक्ति भले कम हो, यदि पूरी निष्ठा है तो भगवान् की दृष्टि से शत-प्रतिशत पास हो गये। किसी का एक अधिकारी होगा, किसी का दूसरा। तरह-तरह के काम में हरएक की शक्ति लगेगी। अपने-अपने अधिकारी में हरएक शक्ति लगायेगा। यहाँ अधिकार का अर्थ है, कर्तव्य। अपने-अपने कर्तव्य में निष्ठा रखना ही गुण है, भगवान् यही कह रहे हैं। भगवान् ने समाज को पूरी ताकत दे दी है, ऐसा नहीं। वे अपने पास अधिक बुद्धि-शक्ति रखते हैं। समाज को उससे कम ही देते हैं – किसी को ज्यादा, तो किसी को कम। मान लीजिये, एक को भगवान् ने पाँच सेर ताकत दी और दूसरो को नब्बे सेर। नब्बे सेर ताकतवाला समाज का अधिक काम करेगा। पाँच सेरवाला उससे अधिक न कर सकेगा। फिर भी, पाँच सेरवाला पूरी निष्ठा से काम करेगा, तो वह नब्बे सेरवाले से अधिक श्रेष्ठ माना जायेगा, यही भगवान् के कहने का अर्थ है। तो, मनुष्य में बुद्धि-शक्ति के कारण ऊँच-नीच भेद नहीं मानना चाहिए। कम-बेशी बुद्धि-शक्ति भगवान् की देन है। उसका उपयोग किस तरह किया गया, इसी पर उसकी कीमत आँकी जाए। हम कहते हैं : ‘हमारे सिर पर चाँद है।’ मान लीजिये, चाँद पर मनुष्य है तो वह कहेगा : ‘हमारे सिर पर पृथ्वी है।’ वह चाँद पर उल्टा लटका हुआ है। लेकिन चाँदवाला मनुष्य कहता होगा कि ‘पृथ्वीवाले उल्टे लगत हैं।’ अमेरिका और भारत पृथ्वी के दो सिरे हैं। हमारे पाँव अमेरिका की तरफ हैं और अमेरिका के पाँव हमारी तरफ। हम कहेंगे कि ‘वे उल्टे लगते हैं, तो वे कहेंगे : ‘ये उल्टे लगते हैं’। मतलब यह कि कौन उल्टा, कौन सीधा, कौन ऊँचा, कौन नीचा? प्रत्येक अपने-अपने स्थान पर है। सेवा की कीमत निष्ठा से ही होगी, चाहे शक्ति उसके पास कम हो या अधिक। जिसके पास अधिक शक्ति है, वह अधिक सेवा करेगा और दुनिया कहेगी कि वह बहुत ऊँचा है। लेकिन भगवान के पास उसी की कीमत होगी, जिसके पास निष्ठा है। तो, ये दो वेद के निर्णय यानी निश्चय हैं। एक : शक्ति कम है, फिर भी पूरी निष्ठा हो और दूसरा : अपने-अपने अधिकार में निष्ठा रखें।
« पीछे | आगे » |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ 11.21.2
संबंधित लेख
-