मद्रास

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मद्रास
श्रीरंगम का एक दृश्य
श्रीरंगम का एक दृश्य
विवरण मद्रास अथवा मद्रास प्रेसीडेंसी जिसे आधिकारिक तौर पर फोर्ट सेंट जॉर्ज की प्रेसीडेंसी तथा मद्रास प्रोविंस के रूप में भी जाना जाता है।
स्थापना सन् 1639 ई. में ईस्ट इंडिया कंपनी के कर्मचारी फ़्रांसिस डे ने विजयनगर के राजा से कुछ भूमि लेकर इस नगर की स्थापना की थी।
सीमा दक्षिण भारत के अधिकांश हिस्सों सहित वर्तमान भारतीय राज्य तमिल नाडु, उत्तरी केरल का मालाबार क्षेत्र, लक्षद्वीप द्वीपसमूह, तटीय आंध्र प्रदेश और आंध्र प्रदेश के रायलसीमा क्षेत्र, गंजाम, मल्कानगिरी, कोरापुट, रायगढ़, नवरंगपुर और दक्षिणी उड़ीसा के गजपति जिले और बेल्लारी, दक्षिण कन्नड़ और कर्नाटक के उडुपी जिले शामिल थे।
धार्मिक महत्त्व मद्रास के उपनगर मायलापुर में कपालीश्वर शिव का प्राचीन मंदिर है। मायलापुर का शाब्दिक अर्थ मयूरनगर है। पौराणिक जनश्रुति के अनुसार पार्वती ने मयूर का रूप धारण करके शिव जी की इस स्थान पर पूजा की थी। इसी कथा का अंकन इस मंदिर की मूर्तिकारी में है। मंदिर के पीछे एक पवित्र ताल है। ट्रिप्लीकेन में पार्थसारथी का मंदिर भी उल्लेखनीय है।
अन्य जानकारी हिंदू, मुसलमान और ईसाई आम तौर पर एक संयुक्त परिवार प्रणाली का अनुसरण करते थे। समाज मोटे तौर पर पितृसत्तात्मक था जिसमें सबसे ज्येष्ठ पुरुष सदस्य परिवार का मुखिया होता था। प्रेसीडेंसी के अधिकांश भाग में विरासत की पितृवंशीय प्रणाली का अनुसरण किया जाता था।

मद्रास (अंग्रेज़ी: Madras) अथवा मद्रास प्रेसीडेंसी जिसे आधिकारिक तौर पर फोर्ट सेंट जॉर्ज की प्रेसीडेंसी तथा मद्रास प्रोविंस के रूप में भी जाना जाता है। मद्रास, ब्रिटिश भारत का एक प्रशासनिक अनुमंडल था। अपनी सबसे विस्तृत सीमा तक प्रेसीडेंसी में दक्षिण भारत के अधिकांश हिस्सों सहित वर्तमान भारतीय राज्य तमिल नाडु, उत्तरी केरल का मालाबार क्षेत्र, लक्षद्वीप द्वीपसमूह, तटीय आंध्र प्रदेश और आंध्र प्रदेश के रायलसीमा क्षेत्र, गंजाम, मल्कानगिरी, कोरापुट, रायगढ़, नवरंगपुर और दक्षिणी उड़ीसा के गजपति जिले और बेल्लारी, दक्षिण कन्नड़ और कर्नाटक के उडुपी जिले शामिल थे। मद्रास का वर्तमान नाम चेन्नई है। सन् 1639 ई. में ईस्ट इंडिया कंपनी के कर्मचारी फ़्रांसिस डे ने विजयनगर के राजा से कुछ भूमि लेकर इस नगर की स्थापना की थी। उस समय का बना हुआ क़िला अभी तक विद्यमान है। मद्रास के उपनगर मायलापुर में कपालीश्वर शिव का प्राचीन मंदिर है। मायलापुर का शाब्दिक अर्थ मयूरनगर है। पौराणिक जनश्रुति के अनुसार पार्वती ने मयूर का रूप धारण करके शिव जी की इस स्थान पर पूजा की थी। इसी कथा का अंकन इस मंदिर की मूर्तिकारी में है। मंदिर के पीछे एक पवित्र ताल है। ट्रिप्लीकेन में पार्थसारथी का मंदिर भी उल्लेखनीय है। मद्रास के स्थान पर प्राचीन समय में चेन्नापटम नामक ग्राम बसा हुआ था। हिंदू, मुसलमान और ईसाई आम तौर पर एक संयुक्त परिवार प्रणाली का अनुसरण करते थे। समाज मोटे तौर पर पितृसत्तात्मक था जिसमें सबसे ज्येष्ठ पुरुष सदस्य परिवार का मुखिया होता था। प्रेसीडेंसी के अधिकांश भाग में विरासत की पितृवंशीय प्रणाली का अनुसरण किया जाता था।

इतिहास

1683 और 1686 के चार्टर

9 अगस्त, 1683 को इंग्लैंड के सम्राट चार्ल्स द्वितीय ने न्याय प्रशासन को सक्षम बनाने के लिए एक चार्टर जारी किया। इससे भारत में अंग्रेजों और अन्य यूरोपीय व्यक्तियों द्वारा किए जाने वाले अनधिकृत व्यापार को नियंत्रित करने के लिए कुछ प्रतिबंध लगाए गए थे। इस के द्वारा कंपनी को जहाँ आवश्यक हो वहां नौकाधिकरण स्थापित करने का अधिकार दिया गया था। अधिकरण में एक सिविल विधि के विशेषज्ञ सहित दो सहायकों की नियुक्ति की जा सकती थी। इस न्यायालय को जलयानों की जब्ती, जलदस्युता, अतिचार, क्षति, सदोष कार्यों आदि के व्यापारिक और सामुद्रिक कार्यों की शक्ति दी गई। इस के उपरांत 12 अप्रॅल 1686 को सम्राट जेम्स द्वितीय द्वारा जारी चार्टर के द्वारा कंपनी को जलयान के लिए नौसेनाध्यक्ष, उप-नौसेनाध्यक्ष, सह-नौसेनाध्यक्ष, कप्तान और अन्य अधिकारियों को नियुक्त करने और सेना विधि को प्रवर्तित करने के अधिकार भी दे दिए गए। मद्रास में 10 जुलाई 1686 को पहला नौकाधिकरण स्थापित किया और सेण्टजॉन को इस का प्रमुख नियुक्त किया। इस न्यायालय को सामुद्रिक विवादों के साथ दीवानी और अपराधिक मामलों के निपटारे का अधिकार भी दिया गया था। इन अधिकारों के मिल जाने से यह न्यायालय एक कोर्ट ऑफ जुडिकेचर के रूप में काम करने लगा।

मद्रास विश्वविद्यालय
1687 का चार्टर मद्रास का पहला नगर निगम

मद्रास की जनसंख्या में लगातार वृद्धि हो रही थी। एक निश्चित न्याय पद्धति और युक्तिसंगत प्रशासनिक व्यवस्था के न होने से यहाँ के निवासी और विभिन्न समुदाय प्रशासन और न्याय से वंचित रहे थे और असंतोष बढ़ रहा था। कंपनी द्वारा गृहकर लगाने पर उसे जनता के तीव्र जनविरोध का सामना करना पड़ा। कंपनी अपने प्रभुत्व को स्थायित्व प्रदान करने में असफल हो रही थी। इस कारण से कंपनी ने 1600 के चार्टर के अधीन प्राप्त अधिकारों के अंतर्गत 30 दिसंबर 1687 को एक चार्टर जारी किया जिसमें जन प्रतिनिधि शासन की स्थापना, सुचारू न्यायिक पद्धति का विकास और करारोपण अधिकारों का उल्लेख किया गया। इस चार्टर के उपबंधों के अनुसार 29 सितंबर 1688 को मद्रास के पहले नगर निगम की स्थापना की गई।

कोयंबतूर रेलवे स्टेशन, मद्रास

नगर निगम में एक मेयर (केवल अंग्रेज़), तीन वरिष्ठ अंग्रेज़, एक फ्रांसिसी, दो पुर्तग़ाली, तीन हिन्दू तीन आर्मेनियन तथा यहूदी व्यापारियों सहित बारह एल्डरमेन तथा 8 से 120 तक नागरिक प्रतिनिधियों के लिए प्रावधान किया गया था। नागरिक प्रतिनिधियों में 30 जातीय प्रतिनिधि सम्मिलित थे। नागरिक प्रतिनिधियों की नियुक्ति मेयर और ऐल्डरमेन द्वारा चुनाव के जरिए तथा कुछ की मनोनयन के जरिए की जाती थी। प्रारंभिक नियुक्तियाँ कंपनी द्वारा की गई थीं। मेयर का कार्यकाल एक वर्ष का होने के कारण ऐल्डरमेनों द्वारा प्रतिवर्ष किसी को मेयर चुनने का प्रावधान बाद में कर दिया गया। एक व्यक्ति एकाधिक बार मेयर रह सकता था। ऐल्डरमेन आजीवन या मद्रास में निवास करने तक अपने पदों पर बने रहते थे। ऐल्डर मेन का पद रिक्त होने पर नागरिक प्रतिनिधियों में से चुनाव के आधार पर उस की पूर्ति कर ली जाती थी। मेयर और ऐल्डरमेनों को भवन निर्माण का कर लगाने और कर्मचारियों के वेतन का भुगतान करने का अधिकार दिया गया था।[1]

अंग्रेज़ी बस्ती

सूरत में व्यापारिक केन्द्र मजबूत हो जाने के बाद ईस्ट इंडिया कंपनी ने अन्य महत्वपूर्ण स्थानों पर अपनी फैक्ट्रियाँ स्थापित करने का निर्णय किया जिस के परिणाम स्वरूप मद्रास, कोलकाता और मुम्बई की अंग्रेज़ी बस्तियाँ अस्तित्व में आईं जिन्हें प्रेसीडेंसी नगर कहा गया। मद्रास इन में पहला और महत्वपूर्ण था। 1639 में चंन्द्रगिरी के हिन्दू राजा से कंपनी प्रतिनिधि फ्रासिंस डेविस ने एक छोटा भू-भाग अनुदान में प्राप्त किया और 1640 में वहाँ फैक्ट्री कायम की। जिस का नाम फोर्ट सेंट जॉर्ज रखा गया। कंपनी ने राजा से सिक्के ढालने और प्रचलन का अधिकार प्राप्त करने के साथ ही निकटस्थ ग्राम मद्रासपट्टनम् का प्रशासनिक नियंत्रण भी अपने हाथों में ले लिया। जिसके बदले बंदरगाह से प्राप्त होने वाले राजस्व का आधा भाग राजा को देने का समझौता संपन्न हुआ। फैक्ट्री के कारण कुछ ही वर्षों में वहाँ विकास दिखाई देने लगा। यह इलाका दो भागों में बंटा था। पहला फैक्ट्री के अंदर का भाग जहाँ अंग्रेज रहते थे जो व्हाइट सिटी कहा जाता था और दूसरा निकटवर्ती क्षेत्र जहाँ स्थानीय निवासी रहते थे और जिसे ब्लेक सिटी कहा जाता था। दोनों के एकीकरण से मद्रास नगर बना।

न्याय प्रशासन

बस, मद्रास (1932)

आरंभ में यहाँ का प्रशासन सूरत फैक्ट्री के अधीन था और इसे ऐजेंट स्तर प्रदान किया गया था। मुख्य प्रशासक ऐजेंट कहलाता था जो अपनी परिषद के सहयोग से व्यापारिक, प्रशासनिक और नौसैनिक गतिविधियों का संचालन करता था। प्रारंभ में ऐजेंट को व्हाइट सिटी में रहने वाले अंग्रेजों से सम्बंधित सामान्य प्रकृति के दीवानी और अपराधिक मामले निपटाने के लिए प्राधिकार दिया गया था। लेकिन उन की शक्तियां और अधिकारिता स्पष्ट नहीं थी। गंभीर प्रकृति और मृत्युदंड के मामले इंग्लेंड में उच्चाधिकारियों को प्रेषित किए जाते थे जिस से न्याय में बहुत देरी होती थी और बहुत समय नष्ट होता था। 1600 और 1623 के चार्टरों में यह स्पष्ट नहीं था कि ऐजेंट को भारतीयों के मामलों में भी न्यायिक प्राधिकार था या नहीं इस कारण से भारतीयों के मामले आ जाने पर उन के साथ कोई न्याय नहीं हो पाता था। एक महिला से बलात्संग का आरोप होने पर एक भारतीय को बिना कोई न्यायिक प्रक्रिया पूरी हुए ही उसे फाँसी पर लटका दिया गया था। एक भारतीय की एक अंग्रेज की लापरवाही के कारण हुई दुर्घटना में मृत्यु हो जाने पर यह कह कर कि यह दुर्घटना संयोग थी, अपराधी को बरी कर दिया गया। व्हाइट सिटी के बाहर के क्षेत्रों के लिए राजा ने न्यायालय स्थापित किए हुए थे लेकिन उन में न्याय भारतीय विधि से होता था। प्रारंभिक अवस्था में न्याय के लिए प्रक्रिया में अस्पष्टता के कारण भारतीयों को पक्षपात का भागी बनना पड़ता था। भारतीयों को कठोर दंड दिए जाते थे वहीं अंग्रेजों को अपेक्षाकृत हलके दंडों से दंडित कर छोड़ दिया जाता था। 1661 के चार्टर के द्वारा प्रेसीडेंसी के गवर्नर और उस की परिषद को न्यायिक शक्तियाँ प्रदान कर दी गईं और कंपनी के कर्मचारियों तथा प्रेसीडेंसी में निवास करने वाले सभी भारतीयों पर अधिकारिता प्रदान कर अंग्रेजी विधि के अनुसार निर्णय देने का अनुमोदन कर दिया गया।[1]

चित्र वीथिका


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

बाहरी कड़ियाँ

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