मधु गोस्वामी
भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
मधु गोस्वामी का नाम भगवान श्रीकृष्ण के भक्तों में लिया जाता है। वे बंगाल के रहने वाले थे, किंतु श्रीकृष्ण की कथाएँ सुनकर वे वृन्दावन आ गए थे। बंसीवट के समीप ही उन्हें ठाकुर जी के दर्शन हुए थे।
- मधु गोसाईं बंगाल से[1] वृन्दावन आये थे। यहाँ आने पर इनके मन में यह चाह बढ़ी कि इन नेत्रों से श्रीश्यामसुंदर के त्रिभुवन मोहन स्वरूप को देखना चाहिए तथा यह देखना चाहिए कि भगवान का वह अचिन्त्यानन्त सौंदर्य स्वरूप कैसा है?[2]
- अपने मन में ठाकुर जी के दर्शन की लालसा लिये मधु गोस्वामी वृन्दावन के वन-वन, वृक्ष-लता-कुंजों में भगवान को ढूँढ़ते फिरते। दर्शन की चटपटी में इनकी भूख-प्यास मर गई। ऐसे बेसुध हुए कि इन्हें छाया-धूप का भी किंचित भान न रहा।
- एक बार बंसीवट के निकट यमुना के तट पर (पीठ देकर) बैठे हुए थे। उस समय यमुना जी में बाढ़ आई हुई थी, वे ऊपर चढ़ रही थीं। उनका तीव्र वेग बड़े वेग से करारों को काट-काटकर गिरा रहा था। उसी समय उन्हें बंसीवट के समीप अनूप रूपसिन्धु श्रीठाकुर जी के दर्शन हुए। उन्होंने दौड़कर श्रीठाकुर जी को गोद में उठा लिया। आज भी वे शिरमौर श्रीठाकुर जी 'श्रीगोपीनाथ जी' के रूप में विराजमान हैं। बड़भागी जन आज भी उनका दर्शन कर कृतार्थ होते हैं।[3]
|
|
|
|
|