मध्य पाषाण काल (अंग्रेज़ी: Mesolithic Age) मनुष्य के विकास का वह अध्याय है, जो पुरा पाषाण काल और नव पाषाण काल मे मध्य में आता है। इतिहासकार इस काल को 12,000 साल पूर्व से लेकर 10,000 साल पूर्व तक मानते हैं। पुरा पाषाण काल लगभग एक लाख वर्ष तक रहा। उसके बाद मध्य पाषाण या मेसोलिथिक युग आया।
भारत में मध्य पाषाण काल का आरम्भ
बदले हुए युग में कई परिवर्तन हुए। जीवन शैली में बदलाव आया। तापमान में भी वृद्धि हुई। साथ-साथ पशु और वनस्पति में भी बदलाव आये। इस युग को मध्य पाषण युग इसलिए कहा जाता है, क्योंकि यह युग पुरा पाषाण युग और नव पाषाण युग के बीच का काल है। भारत में इस युग का आरम्भ 8000 ई.पू. से माना जाता है। लगभग 4000 ई.पू. के आस-पास उच्च पुरा पाषाण युग का अंत हो गया और जलवायु उष्ण और शुष्क हो गई। परिणामस्वरूप बहुत सारे मौसमी जलस्रोत सूख गए होंगे और बहुत सारे जीव-जन्तु दक्षिण अथवा पूर्व की ओर प्रवास कर गए होंगे, जहाँ कम से कम मौसमी वर्षा के कारण लाभकारी और उपयुक्त घनी वनस्पति बनी रह सकती थी। जलवायु में परिवर्तनों के साथ-साथ वनस्पति व जीव-जन्तुओं में भी परिवर्तन हुए और मानव के लिए नए क्षेत्रों की ओर आगे बढ़ना संभव हुआ।
मुख्य तथ्य
- तापमान में बदलाव आया और गर्मी बढ़ी। गर्मी बढ़ने के कारण जौ, गेहूँ, धान जैसी फसलें उगने लगीं।
- इस समय के लोग भी गुफाओं में रहते थे।
- पुरातत्त्वविदों को कई स्थलों से मेसोलिथिक युग के अवशेष मिले हैं।
- पश्चिम, मध्य भारत और मैसूर (कर्नाटक) में इस युग की कई गुफाएँ मिलीं हैं।
- मध्य पाषाण युग में लोग मुख्य रूप से पशुपालक थे। मनुष्यों ने इन पशुओं को चारा खिलाकर पालतू बनाया। इस प्रकार मध्य पाषाण काल में मनुष्य पशुपालक बना।
- इस युग में मनुष्य खेती के साथ-साथ मछली पकड़ना, शहद जमा करना, शिकार करना आदि कार्य करता था।
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