मुंडा मानकी प्रथा

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मुंडा मानकी प्रथा झारखण्ड के मुण्डा जनजाति की पारम्परिक शासन व्यवस्था है, जिसमें परम्परागत रूप से मुण्डा लोग शासित होते थे। 'मुण्डा' का अर्थ 'गाँँव के मुखिया से होता है तथा जिसमें मानकी कुछ गाँँवों के प्रमुख को कहा जाता है। इनके गाँवो में एक सन्देश वाहक भी नियुक्त किया जाता है जिसे डकुवा (डाकिया) कहा जाता है।

  • मुंडा मानकी व्यवस्था में मुण्डा, डाकुआ, मानकी, तहसीलदार, ठाकुर, दीवान, पाण्डेय, बरकंदाज, दरोगा, लाल, मानकी, पाहन, पनभरा (या पुजारा), महतो, भूतखेता आदि पदाधिकारी होते थे।
  • यह कोल्हान के जनजातियों की पारंपरिक शासन व्यवस्था थी, जिसमें-
  1. मुंडा - मुंडा गांव का प्रधान होता है। इसे प्रशासन लेने का अधिकार है, परती भूमि का भी वह बंदोबस्ती कर सकता है।
  2. डाकुआं - डाकुआ मुंडा का सहायक होता है। डाकुआ के द्वारा ही मुंडा गांव वालों को बैठक की सूचना देता है।
  3. मानकी - 15-20 गांव के मुंडाओं के ऊपर एक मानकी होता है। वह पंचायतों का प्रमुख होता है। यह मुंडाओं से लगान वह सुनता था। मुंडाओं के द्वारा विवादों को नहीं समझा पाने की स्थिति में विवाद को मानकी के पास भेजा जाता था।
  4. तहसीलदार - यह मानकी का सहायक होता था, तहसीलदार के माध्यम से ही मुंडाओं सेे मालगुजारी वह सुनता था।


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