नीलगिरी या 'यूकेलिप्टस' (अंग्रेज़ी: Eucalyptus) मुख्य रूप से ऑस्ट्रेलिया और तस्मानिया में पाया जाने वाला पौघा है। इसके अलावा भारत, उत्तरी और दक्षिणी अफ्रीका और दक्षिणी यूरोप में भी नीलगिरी के पौघों की खेती की जाती है। दुनिया भर में इसकी लगभग 300 प्रजातियां प्रचलन में हैं। यह पेड़ काफी लंबा और पतला होता है। इसकी पत्तियों से प्राप्त होने वाले तेल का उपयोग औषघि और अन्य रूप में किया जाता है। पत्तियां लंबी और नुकीली होती हैं जिनकी सतह पर गांठ पाई जाती है जिसमें तेल संचित रहता है। इस पौघे की पल्लवों पर फूल लगे होते हैं जो एक कप जैसी झिल्ली से अच्छी तरह ढंके होते हैं। फूलों से फल बनने की प्रक्रिया के दौरान यह झिल्ली स्वयं ही फट कर अलग हो जाती है। इसके फल काफी सख्त होते हैं जिसके अंदर छोटे-छोटे बीज पाए जाते हैं।
पर्यावरण के लिए मुसीबत
कभी दलदली जमीन को सूखी धरा में में बदलने के लिए अंग्रेजों के जमाने में भारत लाया गया यूकेलिप्टस का पेड़ आज पर्यावरण के लिए मुसीबतों का सबब बनता जा रहा है। यूकेलिप्टस के पेड़ो की बढ़ती संख्या से भूगर्भ के गिरते जलस्तर को थामने की कोशिशों पर भी खतरा मंडराने लगा है। आर्थिक रूप से काफी उपयोगी होने के कारण किसान अब आम, अमरूद, जामुन, शीशम के बजाय यूकेलिप्टस की बागवानी को अपना रहे हैं। हर प्रकार के मौसम में बढ़वार की क्षमता, सूखे की दशाओं को झेल लेने की शक्ति, कम लागत व आसानी से उपलब्ध हो जाने के कारण किसान तेजी से यूकेलिटस की बागवानी को अपनाते जा रहे हैं। निर्माण कार्यों की इमारती लकड़ी के अलावा फर्नीचर, प्लाईवुड, कागज, औषिधि तेल, ईंधन के रूप में यूकेलिप्टस की लकड़ी का प्रयोग किया जाता है। बाजार में अच्छी मांग होने के कारण लोग दूसरे फलदार पेंड के बागों के बजाय यूकेलिप्टस की खेती को तवज्जो दे रहे हैं।
बीते पांच सालों के दौरान ही सैकड़ों हेक्टेयर खेतों में यूकेलिप्टस के बाग लगाए जा चुके हैं। पेड़ सीधा ऊपर जाने से लोग खेतों की मेड़ों घरों के बगीचों आदि में इसे लगा देते हैं। इस कारण यूकेलिप्टस के पेड़ों की संख्या में तेजी से बढ़ोत्तरी हुई है। इसके चलते चंद पैसों का मुनाफा तो जरूर हो रहा है लेकिन पर्यावरण को होने वाली भारी नुकसान की अनदेखी की जा रही है।
पानी का खर्च
वैज्ञानिको के अनुसार यूकेलिप्टिस के पेड़ में दूसरे अन्य पेड़ों की अपेक्षा तीन गुना पानी अधिक सोखने की क्षमता होती है। इसके अलावा इनकी पत्तियों से वाष्पोत्सर्जन की प्रक्रिया भी तेजी से होती है। जड़े मिट्टी में सीधी बहुत गहराई तक जाकर पानी खींचती हैं। पेड़ों की संख्या अधिक होने पर क्षेत्र के भूगर्भ जलस्तर में कमी आ सकती है। इसके अलावा अनाज उत्पादन वाले खेतों में इसे लगाने से मिट्टी की उवर्रता को भी नुकसान पहुंचता है।
लाभ
यदि यूकेलिप्टिस के अधिक पानी सोखने वाली बात को छोड़ दें तो इससे इमारती लकड़ी, जलाऊ लकड़ी, औषधीय महत्व का तेल, रेजिन, टेनिन सहित बहुत ही उपयोगी चीजे प्राप्त होती हैं। इसके तैल का तो आयुर्वेद में बहुत ज्यादा महत्व बताया गया है।
- नीलगिरी के तेल में एंटीऑक्सीडेंट और एंटीबायोटिक गुण पाए जाते हैं। यह त्वचा के लिए बेहद फायदेमंद है। इसका उपयोग त्वचा की मालिश के लिए कर सकते हैं।
- नीलगिरी के तेल की मालिश अगर शाम को की जाए, तो यह सोने में मदद करता है और थकान को खत्म करके तरावट प्रदान करता है। इससे सर की मालिश भी की जा सकती है।
- नीलगिरी का तेल बालों के लिए सबसे बेहतरीन तेल है। यह रोमछिद्रों को खोलता है जिससे कि रक्त का संचालन सही होता है। इसमे एंटीफंगल गुण भी होते हैं जो कि सिर से डैंड्रफ आदि को खत्म करते हैं।
- अस्थमा के रोगियों के लिए इस तेल का प्रयोग फायदेमंद होता है और यह अस्थमा के दौरों को कम करने में सहायक होता है।
- यह सर्दी जुकाम ,खांसी आदि में भी रोगी को फायदा पहुंचाता है। यह तेल अपने मे जाने कितने ही गुण लिए हुए है ।
- अगर शरीर के किसी भी हिस्से में कोई कीड़ा मकोड़ा आदि काट ले, तब भी यह तेल जहर कम करने में सहायक है, और साथ ही यह घाव को जल्द भरने में सहायता करता है।
- नीलगिरि के तेल में थोड़ी मात्रा में नमक को मिलाकर, फिर इस को हाथों और पैरों में लगाने के बाद हाथ पैर धोने से थकान जल्दी खत्म होती है।
- इस तेल का प्रयोग घर की सफाई में भी कर सकते है। घर मे पोंछा लगाने वाले पानी मे इसे डालकर फिर पोंछा लगाए। घर से मक्खी, मच्छर आदि गायब हो जाते हैं।
- यह तेल चेहरे की भी सफाई कर सकता है। अगर चेहरे पर दाग धब्बे है तो उन पर इस तेल को लगाएं।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
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