रहिमन अँसुवा नयन ढरि -रहीम

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‘रहिमन’ अँसुवा नयन ढरि, जिय दु:ख प्रकट करेइ।
जाहि निकारो गेह तें, कस न भेद कहि देइ॥

अर्थ

आंसू आंखों में ढुलक कर अन्तर की व्यथा प्रकट कर देते हैं। घर से जिसे निकाल बाहर कर दिया, वह घर का भेद दूसरों से क्यों न कह देगा?


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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