रेडक्रॉस
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उद्देश्य | रोगियों, घायलों तथा युद्धकालीन बंदियों की देखरेख करना है। |
स्थापना | 1919 |
संस्थापक | जीन हेनरी डयूनेन्ट और गस्टवे मोइनिए |
मुख्यालय | जेनेवा, स्विट्ज़रलैण्ड |
संबंधित लेख | विश्व रेडक्रॉस दिवस |
प्रकार | गैर सरकारी संगठन |
अन्य जानकारी | भारत में वर्ष 1920 में पार्लियामेंट्री एक्ट के तहत भारतीय रेडक्रॉस सोसायटी का गठन हुआ, तब से रेडक्रॉस के स्वंय सेवक विभिन्न प्रकार के आपदाओं में निरंतर निस्वार्थ भावना से अपनी सेवाएं दे रहे हैं। |
बाहरी कड़ियाँ | आधिकारिक वेबसाइट |
रेडक्रॉस एक राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय एजेन्सी है जिसका प्रमुख उद्देश्य रोगियों, घायलों तथा युद्धकालीन बंदियों की देखरेख करना है। रेडक्रॉस आंदोलन के विकास में, विशेषकर 1919 ई. से किसी भी प्रकार की मानव पीड़ा को कम करने की विश्वव्यापी प्रवृत्ति की गणना रेडक्रॉस क्षेत्र के अंतर्गत मानी जाने लगी।
आंदोलन का सूत्रपात
रेडक्रॉस से संबंधित आधारभूत भाव 1862 ई. मंश जेनोआ में जीन हेनरी डयूनेन्ट की सूवेनिर डी सफेरिनो नामक पुस्तिका में प्रकाशित हुआ। ड्यूनैंट ने इटली में युद्ध के दौरान रक्तपात का भयानक दृश्य देखा था। चिकित्सकीय सहायता के अभाव में युद्धक्षेत्र कालकवलित हो जाने के लिए छूटे हुए घायलों के कष्टों का हृदयविदारक विवरण उनकी पुस्तक में मिलता है। आहतों की सहायता के लिए उन्होंने स्थायी समितियों के निर्माण की आवश्यकता पर जोर दिया। ड्यूनैंट की अपील की प्रतिध्वनि शीघ्र सुनाई पड़ी। जेनोआ की सोसाइटी डी यूटिलिटी पब्लिक के अध्यक्ष श्री गस्टवे मोइनिए प्रस्तुत सुझावों के महत्व से बहुत प्रभावित थे। उनकी प्रार्थना पर ड्यूनैंट इस समिति की एक बैठक में सम्मिलित हुए तथा उसके सम्मुख अपने विचारों को स्पष्ट किया। तदुपरांत युद्ध में आहतों की स्थिति के सुधार के साधनों के अध्ययनार्थ एक आयोग मनोनीत किया गया। इस आयोग के मौलिक सदस्य जनरल डूफोर, स्विस सेना के सेनापति गस्टवे मोइनिए, हेनरी ड्यूनैंट, डाक्टर लुई एपिया और डाक्टर थियोडोर मोनोइ थे। इनका पहला काम ऐसी राष्ट्रीय समितियों के निर्माण के लिए एक प्रस्तावित समझौते का रूप तैयार करना था जितना उद्देश्य स्वयंसेवक सहायक दल बनाकर सैन्य चिकित्सा सेवाओं की सहायता करना था। उन्होंने एक अंतर्राष्ट्रीय बैठक भी बुलाई जो 26 अक्टूबर से 29 अक्टूबर सन् 1863 तक जेनेवा में हुई। वहाँ रेडक्रॉस के आधारभूत सिद्धांत निश्चित किए गए। इस अंतर्राष्ट्रीय समिति पर उस उद्देश्य को जारी रखने के लिए जोर दिया गया, जिसे इस अधिवेशन में निश्चित सिद्धांतों के संरक्षक के रूप में इसने स्वीकार किया था और इस बात पर भी जोर दिया गया कि रेडक्रॉस आंदोलन का विकास करने के लिए तथा आहत सैनिकों और युद्ध के अन्य पीड़ितों की सहायता संगठित करन के लिए सभी देशों में राष्ट्रीय समितियाँ बनाई जाएँ। वर्ष 1901 में हेनरी डयूनेंट को उनके मानव सेवा के कार्यों के लिए पहला नोबेल शांति पुरस्कार मिला
अंतर्राष्ट्रीय वैधानिक स्थिति
इस आंदोलन के लिए, जो इस प्रकार प्रारंभ हुआ था, अंतर्राष्ट्रीय वैधानिक स्थिति प्राप्त करना दूसरा प्रयास था, जिसमें एक स्वीकृत च्ह्रि के द्वारा सबकी रक्षा होते हुए आहत व्यक्तियों की सेवा तथा आहतों की देखरेख में लगे हुए कार्यकर्ताओं का आक्रमण से बचाव के लिए प्रयत्न करना तथा आवश्यकता के समय प्रयोग हेतु अलग रखी हुई चिकित्सा साम्रियों का निश्चित करना था।
मार्ग के विकट कठिनाइयाँ थीं, किंतु जनरल डूफोर के नाम की प्रसिद्धि, हेनरी ड्यूनैंट के जिन्होंने व्यक्तिगत रूप से अनेक विभिन्न देशों के अधिकारियों से बातचीत की) अथव कार्य और गस्टवे मोइनिए के विधिवत् संगठन कार्य के कारण ये कठिनाइयाँ सफलतापूर्व दूर हो गई। नैपोलियन तृतीय ने इस योजना के पक्ष में अपना व्यक्तिगत प्रभाव लगाया और अंतर्राष्ट्रीय समिति स्विस फेडेरल कौंसिल को 8 अगस्त, 1864 ई. को जेनोआ में सम्मेलन बुलाने के लिए राजी करने में सफल हुई। इस कूटनीतिक सम्मेलन में 26 सरकारों के प्रतिनिधि थे। इस सम्मेलन का परिणाम जेनोआ अधिवेशन हुआ, जिसमें सदा के लिए कुछ निश्चित सिद्धांत नियत हुए : आहतों का सम्मान होना चाहिए, सैनिक तटस्थ समझे जाने चाहिए, चिकित्सा सेवाओं की सामग्रियों तथा कर्मचारियों को सुरक्षा प्रदान की गई, और इस सुरक्षा का प्रतीक एक रेडक्रॉस वाला सफेद झंडा, जो आज सारे विश्व में रेडक्रॉस का चिह्न बन गया है। लगभग हुआ। सभी देश अब जेनोआ अधिवेशन के निर्णयों को स्वीकार करते हैं। एक नए कूटनीतिक सम्मेलन द्वारा 6 जुलाई, 1906 ई. को जेनोआ अधिवेशन के ये निर्णय संशोधित तथा पूर्ण किए गए। सन् 1899 तथा 1907 में हेग में होने वाले सम्मेलन ने जेनेवा अधिवेशन सन् 1864 तथा संशोधित अधिवेशन सन् 1906 के सिद्धांतों का सामुद्रिक युद्धों तक विस्तार कर दिया।
रेडक्रॉस के उद्देश्य
अंतर्राष्ट्रीय रेडक्रॉस के उद्देश्य ये माने जाते है :
- सभी देशों में रेडक्रॉस आंदोलन को फैलाना
- रेडक्रॉस के आधारभूत सिद्धांतों के संरक्षक के रूप में कार्य करना
- नई रेडक्रॉस समितियों के संविधान से वर्तमान समितियों को सूचित करना
- सभी सभ्य राज्यों को जेनोआ अधिवेशन स्वीकार करने के लिए राजी करना अधिवेशन के निर्णयों का पालन करना
- इसकी होने वाली अवहेलनाओं की भर्त्सना करना
- क़ानून बनाने के लिए सरकारों पर दबाव डालना तथा ऐसी अवहेलनाओं को रोकने के लिए सेना को आदेश देना
- युद्धकाल में बंदियों की सहायता तथा अन्य पीड़ितों की सहायता के लिए अंतर्राष्ट्रीय एजेन्सी का निर्माण करना
- बंदीशिविर की देखरेख, युद्धबंदियों को संतोष और आराम पहुँचना और सभी प्राप्य प्रभावों के प्रयोग से उनकी स्थिति सुधारने का प्रयत्न करना
- शांति तथा युद्ध के समय में भी सरकारों, राष्ट्रों तथा उपराष्ट्रों के बीच शुभचिंतक मध्यस्थ के रूप में कार्य करना
- युद्ध बीमारी अथवा आपत्ति से होने वाले कष्टों से मुक्ति का मानवोचित कार्य स्वयं करना अथवा दूसरों को ऐसा करने के लिए सहायता देना।
अंतर्राष्ट्रीय रेडक्रॉस समिति
अंतर्राष्ट्रीय रेडक्रॉस समिति के कार्यों के विस्तार का आभास कुछ उदाहरणों से हो जाएगा। प्रारंभ से ही स्वतंत्र रेडक्रॉस समिति के निर्माण तथा जेनोआ अधिवेशन के सदस्यों की स्वीकृति ने शीघ्र सफलता प्राप्त कराई। फ्रांसीसी और जर्मन आहतों तथा बीमार सैनिकों की भलाई के लिए बास्ले में 1870 ई. में एक सूचना एजेन्सी का निर्माण हुआ।
युद्धकाल में कार्य
1912 ई. में बालकान युद्ध के समय इसी तरह की एक ऐजेन्सी बेलग्रेड में बनी। 1914 ई. में प्रथम विश्वयुद्ध के समय युद्धबंदियों के लिए दो हज़ार व्यक्तियों की, जिनमें विशेषकर स्वयंसेवक थे, एक अंतर्राष्ट्रीय एजेन्सी जेनेवा में बनाई गई। इस एजेन्सी के 17 विभिन्न विभागों ने युद्धलिप्त 30 देशों से आनेवाले आवेदनों का निपटारा किया। दो हज़ार से 15 हज़ार तक प्रतिदिन पत्रव्यवहार किया और इसके यहाँ युद्ध समाप्त होन के पहले सूचना हेतु प्रार्थनाएँ 50 लाख से अधिक थीं।
इस एजेन्सी के कारण विभिन्न सेनाओं तथा जहाजी बेड़ों के हज़ारों खोए हुए मनुष्यों का पता लगाया गया, युद्धबंदियों को सहायता दी र्ग, 500 विभिन्न बंदी-शिविरों की नियमित देखरेख हुई और अधीन ज़िलों के नागरिकों को हटाने के लिए तथा स्वेदश आगमन के लिए अथवा अधिक आहतों, कुछ श्रेणी के रोगी बंदियों और चिकित्सा कर्मचारियों को तटस्थ भागों के बंदी शिविर में रखने के लिए अधिक सुविधाएँ प्राप्त की गई। अंतर्राष्ट्रीय एजेन्सी की वित्तीय सेवा ने 31 दिसंबर, 1917 ई. तक 71,500 पौंड से ऊपर की धनराशि नकद रू पए के रूप में भेजी।
अंतर्राष्ट्रीय समिति ने जेनोआ अधिवेशन के निर्णयों के विरुद्ध हुए कार्यों का प्रदर्शन प्राय: सरकारों के सम्मुख किया। इस प्रकार के कार्य चिकित्सालयों के बंद होने, बदला लिए जाने, चिकित्सा कर्मचारियों, या आहतों के साथ अनुचित व्यवहार, रेडक्रॉस से संबंधित चिकित्सा भंडारों को जब्त करने, रेडक्रॉस की निंदा की भर्त्सना करने आदि से संबंधित घटनाएँ थीं।
युद्धोत्तर कार्य
राष्ट्रसंघ लीग ऑव नेशन्स की कृपालु सहायता के कारण अंतर्राष्ट्रीय समिति सभी देशों के युद्धबंदियों के लिए जो रूस और सायबेरिया में रह गए थे, स्वदेशागमन की व्यवस्था कर सकने में समर्थ हुई और मध्य यूरोप के विभिन्न देशों ने रूसी बंदियों को वापस करने में भी सफल हुई। संबंधित सरकारों के यहाँ प्रदर्शन करने, सैनिकों को सुरक्षित जहाजों में ले जाने की व्यवस्था करने और उनकी पहचान करने, जहाज में उनकी देखरेख करने और रक्षित जहाजों को मास्को तथा बाल्टिक बंदरगाहों तथा ब्लाडीवास्टक, नोवरोसिस्क और ट्रिस्टे के बीच आने जाने का प्रबंध करने के लिए समिति के प्रतिनिधि बुलाए गए। इस प्रकार पाँच लाख बंदी स्वदेश पहुंचाए गए।
यूनान में नियमित स्थान पर बंदी व्यक्तियों की वापसी तथा यूनान और टर्की के बीच बंदियों का आदान प्रदान किया गया। कालांतर में अंतर्राष्ट्रीय समिति के सदस्यों का संबंध ऊपरी सिलेसिया में जर्मन और पोलैंड के शरीरबंधकों के आदान प्रदान से रहा।
जहाँ तक स्वास्थ्य संबंधी कार्यों का सवाल है, अंतर्राष्ट्रीय समिति के सदस्यों को मलेशिया, यूक्रेन तथा कृष्णसागर के क्षेत्र में उस समय फैले हुए टाइफस से बचने में सहायता देने का निर्देश मिला था। अप्रैल, 1918 ई. में इस महामारी का सामना करने के लिए मध्य और पूर्व यूरोप के विभिन्न देशों के प्रतिनिधियों के साथ केंद्रीय अध्ययन विभाग की स्थापना में इस समिति ने भाग लिया। सन् 1919 और 1923 के बीच चिकित्सालयों की कमियों को पूरा करने तथा अकाल पीड़ितों को भोजन की पूर्ति करने के लिए दो चिकित्सा मिशन यूक्रेन भेजे गए। पोलैंड में समिति के प्रतिनिधि वहाँ की महामारी को रोकने के अभियान में सम्मिलित हुए। सन् 1919 और 1923 के बीच बहुत से यक्ष्मा चिकित्सालय तथा साधारण कृष्ण सागरीय भाग में स्थापित किए गए तथा समिति ने उनके लिए आवश्यक सामान जुटाने में सहायता की।
युद्ध के आर्थिक परिणामों से बुरी तरह प्रभावित जनसंख्या को मुक्ति दिलाने के उद्देश्य से समिति ने आस्टिया और हंगरी में सहायता कार्यों का व्यवस्थित रूप से गठन किया। रूस के अकालग्रस्त ज़िलों की सहायता की व्यवस्था करने के लिए समिति ने 15 अगस्त, 1921 ई. को लीग ऑव रेडक्रॉस सोसायटी के साथ जेनोआ में अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलन बुलाने में हाथ बटाया। इस सम्मेलन में सरकारों तथा सहायता एजेन्सियों के 80 प्रतिनिधियों ने भाग लिया। एक रूसी सहायता समिति बनाई गई, जिसके हाई कमिश्नर डाक्टर नानसेन हुए। इस समिति ने 80,00,000 पौंड से अधिक धनराशि जनवरी, 1922 ई. तक अपने हाथ में रखी। समिति के प्रतिनिधियों ने 1923 ई. में जर्मनी तथा रूर की जनसंख्या की स्थिति की छानबीन भी की।
तत्पश्चात् द्वितीय विश्वयुद्ध में बड़ी तत्परता से काम किया। दोनों ओर के कैदियों को पत्र और भेंट से मदद पहुँचाई और रणक्षेत्र में स्थित अस्पतालों में निर्भीकतापूर्वक सेवा की।
भारतीय रेडक्रॉस
भारत का रेडक्रॉस के संबंध प्रथम विश्वयुद्ध से है। भारत में वर्ष 1920 में पार्लियामेंट्री एक्ट के तहत भारतीय रेडक्रॉस सोसायटी का गठन हुआ, तब से रेडक्रॉस के स्वंय सेवक विभिन्न प्रकार के आपदाओं में निरंतर निस्वार्थ भावना से अपनी सेवाएं दे रहे हैं। उस समय एक करोड़ रुपया, जो इस संस्था के लिए दान मिला था, इसका मूल धन बना। इस समय तक इसकी 18 प्रांतीय संस्थाएँ और 412 ज़िला शाखाएँ स्थापित हो चुकी हैं। बंगाल की भुखमरी से लेकर कई प्राकृतिक दुर्घटनाओं के समय इसने सहायता पहुँचाई है।
विश्व रेडक्रॉस दिवस
रेडक्रॉस अभियान को जन्म देने वाले महान् मानवता प्रेमी जीन हेनरी डयूनेन्ट का जन्म 8 मई 1828 में हुआ था। उनके जन्म दिवस 8 मई को विश्व रेडक्रॉस दिवस के रूप में पूरे विश्व में मनाया जाता है।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
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