लुई ब्रेल
लुई ब्रेल
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पूरा नाम | लुइस ब्रेल |
जन्म | 4 जनवरी 1809 |
जन्म भूमि | ग्राम- कुप्रे, फ्रांस |
मृत्यु | 6 जनवरी 1852 |
मृत्यु स्थान | फ्रांस |
अभिभावक | पिता- साइमन रेले ब्रेल |
विशेष योगदान | ब्रेल लिपि का आविष्कार |
नागरिकता | फ्रांसीसी |
संबंधित लेख | लुई ब्रेल दिवस, ब्रेल लिपि, अंधों का प्रशिक्षण और कल्याण |
सम्मान | भारत सरकार ने सन 2009 में लुइस ब्रेल के सम्मान में डाक टिकट जारी किया है। |
अन्य जानकारी | ब्रेल लिपि की असीम क्षमता और प्रबल प्रभाविकता के कारण सन् 1950 के विश्व ब्रेल सम्मेलन में ब्रेल को 'विश्व ब्रेल' का स्थान मिल गया। |
लुई ब्रेल (अंग्रेज़ी: Louis Braille, जन्म: 4 जनवरी 1809; मृत्यु - 6 जनवरी 1852) नेत्रहीनों के लिये ब्रेल लिपि का निर्माण करने के लिये प्रसिद्ध हैं। ब्रेल लिपि के निर्माण से नेत्रहीनों के पढ़ने की कठिनाई को मिटाने वाले लुई स्वयं भी नेत्रहीन थे। लुई ब्रेल का जन्म फ्रांस के छोटे से ग्राम कुप्रे में एक मध्यम वर्गीय परिवार में हुआ था। कालान्तर में स्वयं लुई ब्रेल ने आठ वर्षो के परिश्रम से ब्रेल लिपि में अनेक संशोधन किये और अंततः 1829 में छह बिन्दुओं पर आधारित ऐसी लिपि बनाने में सफल हुये। लुई ब्रेल के वजह से नेत्रहीनों को पढ़ने का मौक़ा मिला। 1837 में फ्रांस का सक्षिप्त इतिहास नामक पुस्तक भी ब्रेल लिपि में छापी गई थी, परन्तु फिर भी संसार ने इसे मान्यता देने में बहुत समय लगाया। सन 1854 में लुई ब्रेल की मृत्यु के दो वर्ष पश्चात् फ्रांसीसी सरकार ने इसे सरकारी मान्यता प्रदान की। ब्रेल लिपि की असीम क्षमता और प्रबल प्रभाविकता के कारण सन् 1950 के विश्व ब्रेल सम्मेलन में ब्रेल को 'विश्व ब्रेल' का स्थान मिल गया। सन 2009 में 4 जनवरी को जब लुई ब्रेल के जन्म को पूरे दो सौ वर्षों का समय पूरा हुआ तो लुई ब्रेल जन्म द्विशती के अवसर पर भारत ने उन्हें पुनः पुर्नजीवित करने का प्रयास किया जब इस अवसर पर उनके सम्मान में डाक टिकट जारी किया गया।
जीवन परिचय
लुइस ब्रेल का जन्म 4 जनवरी 1809 में फ्रांस के छोटे से ग्राम कुप्रे में एक मध्यम वर्गीय परिवार में हुआ था। इनके पिता साइमन रेले ब्रेल शाही घोड़ों के लिये काठी और जीन बनाने का कार्य किया करते थे। पारिवारिक आवश्यकताओं के अनुरूप पर्याप्त आर्थिक संसाधन नहीं होने के कारण साइमन को अतिरिक्त मेहनत करनी होती थी इसीलिये जब बालक लुइस मात्र तीन वर्ष के हुये तो उनके पिता ने उसे भी अपने साथ घोड़ों के लिये काठी और जीन बनाने के कार्य में लगा लिया। अपने स्वभाव के अनुरूप तीन वर्षीय बालक अपने आस पास उपलब्ध वस्तुओं से खेलने में अपना समय बिताया करता था इसलिये बालक लुइस के खेलने की वस्तुएं वही थीं जो उसके पिता द्वारा अपने कार्य में उपयोग की जाती थीं जैसे कठोर लकड़ी, रस्सी, लोहे के टुकड़े, घोड़े की नाल, चाकू और काम आने वाले लोहे के औजार। एक दिन काठी के लिये लकड़ी को काटते में इस्तेमाल की जाने वाली चाकू अचानक उछल कर इस नन्हें बालक की आंख में जा लगी और बालक की आँख से खून की धारा बह निकली। साधारण जडी लगाकर उसकी आँख पर पट्टी कर दी गयी। धीरे धीरे वह नन्हा बालक आठ वर्ष का पूरा होने तक पूरी तरह दृष्टि हीन हो गया। रंग बिरंगे संसार के स्थान पर उस बालक के लिये सब कुछ गहन अंधकार में डूब गया। अपने पिता के चमड़े के उद्योग में उत्सुकता रखने वाले लुई ने अपनी आँखें एक दुर्घटना में गवां दी। यह दुर्घटना लुई के पिता की कार्यशाला में घटी।
ब्रेल लिपि का आविष्कार
बालक लुई बहुत जल्द ही अपनी स्थिति में रम गये थे। बचपन से ही लुई ब्रेल में गजब की क्षमता थी। हर बात को सीखने के प्रति उनकी जिज्ञासा को देखते हुए, चर्च के पादरी ने लुई ब्रेल का दाखिला पेरिस के अंधविद्यालय में करवा दिया। बचपन से ही लुई ब्रेल की अद्भुत प्रतिभा के सभी कायल थे। उन्होंने विद्यालय में विभिन्न विषयों का अध्ययन किया। लुई ब्रेल की जिन्दगी से तो यही सत्य उजागर होता है कि उनके बचपन के एक्सीडेंट के पीछे ईश्वर का कुछ खास मकसद छुपा हुआ था। 1825 में लुई ब्रेल ने मात्र 16 वर्ष की उम्र में एक ऐसी लिपि का आविष्कार कर दिया जिसे ब्रेल लिपि कहते हैं। इस लिपि के आविष्कार ने दृष्टिबाधित लोगों की शिक्षा में क्रांति ला दी। गणित, भूगोल एवं इतिहास विषयों में प्रवीण लुई की अध्ययन काल में ही फ्रांस की सेना के कैप्टन चार्ल्स बार्बियर से मुलाकात हुई थी। उन्होंने सैनिकों द्वारा अंधेरे में पढ़ी जाने वाली नाइट राइटिंग व सोनोग्राफ़ी के बारे में बताया। ये लिपि उभरी हुई तथा 12 बिंदुओं पर आधारित थी। यहीं से लुई ब्रेल को आइडिया मिला और उन्होने इसमें संशोधन करके 6 बिंदुओं वाली ब्रेल लिपि का इज़ाद कर दिया। प्रखर बुद्धिवान लुई ने इसमें सिर्फ अक्षरों या अंकों को ही नहीं बल्कि सभी चिन्हों को भी प्रर्दशित करने का प्रावधान किया।
ब्रेल अपनी दृष्टिहीनता की वजह से अन्धों के लिये एक ऐसे सिस्टम का निर्माण करना चाहते थे जिससे उन्हें लिखने और पढ़ने में आसानी हो और आसानी से वे एक-दूजे से बात कर सके। “बातचीत करना मतलब एक-दूजे के ज्ञान हो समझना ही है और दृष्टिहीन लोगों के लिये ये बहुत महत्वपूर्ण है और इस बात को हम नजर अंदाज़ नहीं कर सकते। उनके अनुसार विश्व में अन्धों को भी उतना ही महत्त्व दिया जाना चाहिए जितना साधारण लोगों को दिया जाता है।” लेकिन जीते जी उनके इस आविष्कार का महत्त्व लोगों को पता नहीं चला लेकिन उनकी मृत्यु के बाद केवल पेरिस ही नहीं बल्कि पूरे विश्व के लिये उनका आविष्कार सहायक साबित हुआ।[1]
भारत सरकार द्वारा सम्मानित
भारत सरकार ने सन 2009 में लुई ब्रेल के सम्मान में डाक टिकट जारी किया है। लुई द्वारा किये गये कार्य अकेले किसी राष्ट्र के लिये न होकर सम्पूर्ण विश्व की दृष्ठिहीन मानव जाति के लिये उपयोगी थे। अतः सिर्फ एक राष्ट्र के द्वारा सम्मान प्रदान किये जाने भर से उस महात्मा को सच्ची श्रद्वांजलि नहीं हो सकती थी। उम्र के दसवें वर्ष में उनके पिता ने उन्हें पेरिस के रॉयल नेशनल इंस्टीट्यूट फॉर ब्लाइंड चिल्डे्रन में भर्ती करवा दिया। उस स्कूल में "वेलन्टीन होउ" द्वारा बनाई गई लिपि से पढ़ाई होती थी, पर यह लिपि अधूरी थी। लुई ने यहाँ इतिहास, भूगोल और गणित में प्रावीण्य प्राप्त किया। इसी स्कूल में एक बार फ्रांस की सेना के एक अधिकारी कैप्टन चार्ल्स बार्बियर एक प्रशिक्षण के सिलसिले में आए और उन्होंने सैनिकों द्वारा अँधेरे में पढ़ी जाने वाली "नाइट राइटिंग" या "सोनोग्राफी" लिपि के बारे में बताया। यह लिपि काग़ज़ पर अक्षरों को उभारकर बनाई जाती थी और इसमें 12 बिंदुओं को 6-6 की दो पंक्तियों को रखा जाता था, पर इसमें विराम चिह्न, संख्या, गणितीय चिह्न आदि का अभाव था।[1]
मृत्यु
प्रखर बुद्धि के लुई ने इसी लिपि को आधार बनाकर 12 की बजाय मात्र 6 बिंदुओं का उपयोग कर 64 अक्षर और चिह्न बनाए और उसमें न केवल विराम चिह्न बल्कि गणितीय चिह्न और संगीत के नोटेशन भी लिखे जा सकते थे। यही लिपि आज सर्वमान्य है। लुई ने जब यह लिपि बनाई तब वे मात्र 15 वर्ष के थे। सन् 1824 में बनी यह लिपि दुनिया के लगभग सभी देशों में उपयोग में लाई जाती है। सन् 1851 में उनकी तबियत बिगड़ने लगी और 6 जनवरी 1852 को मात्र 43 वर्ष की आयु में उनका निधन हो गया। उनकी मृत्यु के 16 वर्ष बाद सन् 1868 में 'रॉयल इंस्टिट्यूट फॉर ब्लाइंड यूथ' ने इस लिपि को मान्यता दी।
महत्त्वपूर्ण तथ्य
- आंखों की रोशनी चली जाने के बाद भी लुई ब्रेल ने हिम्मत नहीं हारी। वे ऐसी चीज बनाना चाहते थे, जो उनके जैसे दृष्टिहीन लोगों की मदद कर सके। इसीलिए उन्होंने अपने नाम से एक राइटिंग स्टाइल बनाई, जिसमें सिक्स डॉट कोड्स थे। वही स्क्रिप्ट आगे चलकर 'ब्रेल लिपि' के नाम से जानी गई।
- ब्रेल लिपि के तहत बिंदुओं को जोड़कर अक्षर, अंक और शब्द बनाए जाते हैं। इस लिपि में पहली किताब 1829 में प्रकाशित हुई।
- लुई ब्रेल को संगीत में काफी दिलचस्पी थी और वह कई तरह के यंत्र बजा लेते थे।
- लुई ब्रेल ने नेत्रहीनों के लिए 1829 में छह बिन्दुओं वाली ब्रेल लिपि बनाई थी। इस लिपि को बनाने में लुई ब्रेल को आठ वर्ष का समय लगा
- लुइस की मृत्यु 43 साल की कम उम्र में 6 जनवरी 1852 को टी.बी. की बीमारी से हुई थी।
- लुई ब्रेल की मृत्यु के 100 बर्ष के बाद फ्रांस ने 20 जून 1952 का दिन उनके सम्मान का दिन निर्धारित किया।
- इस दिन फ्रांस सरकार ने लुई ब्रेल के 100 वर्ष पूर्व दफनाये गए उनके शरीर को पूरे राजकीय सम्मान के साथ निकला गया। इस दिन पूरे राष्ट्र ने लुई ब्रेल के पार्थिव शरीर के सामने अपनी ग़लती के लिए माफी मांगी। लुई ब्रेल के शरीर को राष्ट्रीय ध्वज में लपेटकर पूरे राजकीय सम्मान से दोबारा दफनाया गया।[1]
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ 1.0 1.1 1.2 लुई ब्रेल की जीवनी (हिंदी) जीवनी डॉट ऑर्ग। अभिगमन तिथि: 5 जनवरी, 2018।