तेजाजी
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विवरण | 'तेजाजी' राजस्थान में लोक देवता के रूप में पूजे जाते हैं। गायों की रक्षा करने वाले वीर पुरुष के रूप में वे जाने जाते हैं। |
जन्म | 29 जनवरी, 1074 |
जन्म स्थान | खड़नाल ग्राँव, नागौर, (राजस्थान) |
धारण शस्त्र | भाला |
वाहन | घोड़ा |
पूजन तिथि | भादों शुक्ल दशमी को तेजाजी का पूजन होता है। |
संबंधित लेख | भारत में वीर तेजाजी के अनेक मंदिर हैं। राजस्थान, मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश, गुजरात तथा हरियाणा में उनके मंदिर हैं। |
तेजाजी राजस्थान, मध्य प्रदेश और गुजरात में लोक देवता के रूप में पूजे जाते हैं। किसान वर्ग अपनी खेती की खुशहाली के लिये तेजाजी को पूजता है। तेजाजी के वंशज मध्य भारत के खिलचीपुर से आकर मारवाड़ में बस गए थे। तेजाजी ने ग्यारवीं सदी में गायों की डाकुओं से रक्षा करने में अपने प्राण दांव पर लगा दिये थे। वे खड़नाल गाँव के निवासी थे। भादों शुक्ल दशमी को तेजाजी का पूजन होता है। भारत के जाट समुदाय में तेजाजी का महत्त्वपूर्ण स्थान है।
परिचय
तेजाजी के बुजुर्ग उदयराज ने खड़नाल पर अधिकार कर उसे अपनी राजधानी बनाया था। तत्कालीन समय में खड़नाल परगने में 24 गांव थे। लोक देवता तेजाजी का जन्म नागौर में खड़नाल गाँव में ताहरजी और रामकुंवरी के घर माघ शुक्ल, चौदस संवत 1130 यथा 29 जनवरी, 1074 को जाट परिवार में हुआ था। तेजाजी के जन्म के बारे में मत है-
जाट वीर धौलिया वंश गांव खरनाल के मांय।
आज दिन सुभस भंसे बस्ती फूलां छाय।।
शुभ दिन चौदस वार गुरु, शुक्ल माघ पहचान।
सहस्र एक सौ तीस में प्रकटे अवतारी ज्ञान।।
भारत में वीर तेजाजी के अनेक मंदिर हैं। राजस्थान, मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश, गुजरात तथा हरियाणा में उनके मंदिर हैं।
कथा
बचपन में ही तेजाजी के साहसिक कारनामों से लोग आश्चर्यचकित रह जाते थे। एक बार अपने साथी के साथ तेजा अपनी बहन पेमल को लेने उसकी ससुराल गए। बहन पेमल की ससुराल जाने पर वीर तेजा को पता चलता है कि मेणा नामक डाकू अपने साथियों के साथ पेमल की ससुराल की सारी गायों को लूट ले गया।
वीर तेजा अपने साथी के साथ जंगल में मेणा डाकू से गायों को छुड़ाने के लिए गए। रास्ते में एक बांबी के पास भाषक नामक सांप घोड़े के सामने आ जाता है एवं तेजा को डँसना चाहता है। तब तेजा उसे वचन देते हैं कि अपनी बहन की गाएं छुड़ाने के बाद मैं वापस यहीं आऊंगा, तब मुझे डँस लेना।
अपने वचन का पालन करने के लिए डाकू से अपनी बहन की गाएं छुड़ाने के बाद लहुलुहान अवस्था में तेजा नाग के पास आते हैं। तेजा को घायल अवस्था में देखकर नाग कहता है कि तुम्हारा तो पूरा शरीर कटा-पिटा है। मैं दंश कहाँ मारूँ। तब वीर तेजा उसे अपनी जीभ पर काटने के लिए कहते हैं।
वीर तेजा की वचनबद्धता को देखकर नाग उन्हें आशीर्वाद देते हुए कहता है कि "आज के दिन (भाद्रपद शुक्ल दशमी) से पृथ्वी पर कोई भी प्राणी, जो सर्पदंश से पीडि़त होगा, उसे तुम्हारे नाम की ताँती बाँधने पर जहर का कोई असर नहीं होगा।" उसके बाद नाग तेजाजी की जीभ पर दंश मारता है। तभी से भाद्रपद शुक्ल दशमी को तेजाजी के मंदिरों में श्रृद्धालुओं की भीड़ उमड़ती है और सर्पदंश से पीडि़त व्यक्ति वहाँ जाकर तांती खोलते हैं।[1]
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ तेजाजी व उनकी कथा (हिन्दी) दैनिक भास्कर। अभिगमन तिथि: 22 फरवरी, 2015।
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