लोरिकायन

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(वीर लोरिक पत्थर से अनुप्रेषित)
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लोरिकायन भोजपुरी की सबसे प्रसिद्ध लोकगाथा है। इसका नायक लोरिक है। वीर रस से परिपूर्ण इस लोकगीत में नायक लोरिक के जीवन-प्रसंगों का जिस भाव से वर्णन करता है, वह देखते-सुनते ही बनता है।

वीर लोरिक पत्थर

कथा

उत्तर प्रदेश के सोनभद्र ज़िले की सोन नदी के किनारे खड़ा बीर लोरिक का पत्थर सतयुग की एक प्रेम कथा को अपने में समेटे है। कहानी है कि इस नदी के किनारे सतयुग में अगोरी नाम का एक राज्य था। उस राज्य के राजा का नाम मोलागत था। मोलागत वैसे तो बहुत अच्छे राजा थे लेकिन उनके ही राज्य में रहने वाला मेहरा नाम का एक यादव युवक उन्हें पसंद नहीं आता था। क्योंकि मेहरा बलशाली था।
राजा की हुकूमत की उसे परवाह नहीं थी और अपने इलाके में उसकी अपनी हुकूमत चलती थी। राजा हमेशा मेहरा को फंसाने की तरकीब खोजते रहते थे। एक दिन उन्होंने मेहरा को जुआ खेलने की दावत दी। प्रस्ताव ये रखा गया कि जुए में जो जीतेगा वही इस राज्य पर राज करेगा।
मेहरा ने राजा के प्रस्ताव को मान लिया। जुआ शुरू हुआ। राजा को उम्मीद थी कि वो जीत जाएंगे। लेकिन ऐसा होता नहीं है। एक एक कर राजा सबकुछ हारने लगते हैं। और एक वक्त वह भी आता है जब राजा सबकुछ हार जाते हैं। शर्त के हिसाब से राजा को अब अपना राज पाट छोड़ना है।
राज पाट छोड़कर वो पश्चिम दिशा की ओर निकल पड़ते हैं। राजा की ऐसी दुर्दशा देखकर भगवान ब्रह्मा साधु के वेश में उनके पास आते हैं और कुछ सिक्के देकर कहते हैं कि जाओ एक बार जुआ खेलो, तुम्हारा राज-पाट वापस हो जाएगा।
राजा ऐसा ही करते हैं। इस बार मेहरा हारने लगता है। वह छह बार हारता है। अब उसके पास हारने के लिए कुछ भी नहीं बचा है। पत्नी को भी हार चुका है। लेकिन उसकी पत्नी गर्भवती है। और सातवीं बार वो अपनी पत्नी का गर्भ भी हार जाता है।
बड़ी विचित्र बात है। लेकिन राजा उदारता दिखाते हैं। कहते हैं कि अगर बेटा हुआ तो अस्तबल में काम करेगा। अगर बेटी हुई तो उसे रानी की सेवा में नियुक्त कर दिया जाएगा। हारा हुआ मेहरा कुछ नहीं कर पाता। लेकिन कहानी यहां एक अजीब मोड़ पर आती है।
मेहरा के सातवीं संतान के रूप में एक बड़ी ही अद्भुत बच्ची का जन्म होता है। नाम रखा जाता है मंजरी। राजा को जब पता चलता है तो वो मंजरी को लिवाने के लिए सिपाही को भेजते हैं। पर मंजरी की माँ उसे भेजने से मना कर देती है।
मंजरी की माँ राजा को संदेश भिजवाती है कि जब मंजरी की शादी हो जाएगी तो उसके पति को मारकर मंजरी को ले जाना। राजा ये बात मान लेते हैं। देखते ही देखते मंजरी जवान भी हो जाती है। फिर माता पिता को उसकी शादी की चिंता सताने लगती है।
मंजरी को पता है कि उसका वर कौन है। वो कौन है जो शादी के बाद राजा को हरा सकेगा। मंजरी अपने माँ बाप से कहती है कि आप लोग बलिया नाम की जगह पर जाओ। वहां लोरिक नाम का एक नौजवान मिलेगा। उससे मेरे जन्मों का नाता है और वही राजा को हरा भी सकेगा।
मंजरी के पिता लोरिक के घर जाते हैं और दोनों का रिश्ता तय हो जाता है। लोरिक डेढ़ लाख बारातियों को लेकर मंजरी से शादी करने निकलता है। सोन नदी के इस किनारे आता है लेकिन राजा अपने सैनिकों के साथ उससे लड़ने पहुंच जाते हैं।
युद्ध में लोरिक हारने लगता है। मंजरी एक असाधारण लड़की है। वो लोरिक के पास जाती है। उससे कहती है कि अगोरी के इस किले के पास ही गोठानी नाम का एक गांव है। वहां भगवान शिव का एक मंदिर है। तुम जाओ भगवान की उपासना करो। इस युद्ध में जीत तुम्हारी ही होगी। लोरिक जीतता है। दोनों की शादी होती है। मंजरी की विदाई हो जाती है। लेकिन गांव की दहलीज छोड़ने से पहले वो लोरिक से कहती है कि कुछ ऐसा करो जिससे यहां के लोग याद रखें कि लोरिक और मंजरी कभी इस हद तक प्यार करते थे।
लोरिक कहता है कि बताओ ऐसा क्या करूं जो हमारे प्यार की तो निशानी बने ही, प्यार करने वाला कोई भी जोड़ा यहां से मायूस नहीं लौटे।
मंजरी ने लोरिक को एक पत्थर दिखाते हुए कहा कि इसे तलवार के एक ही वार से काट दो। लोरिक ने ऐसा ही किया। पर एक नई समस्या आ गई। पत्थर तो दो टुकड़ों में हो गया। लेकिन उसका एक हिस्सा पहाड़ से नीचे गिर गया।
मंजरी ने कहा कि पत्थर को ऐसे काटो कि उसके दोनों हिस्से एक ही जगह पर खड़े रहें। लोरिक ने ऐसा ही किया। और ये पत्थर जमाने से यहीं खड़े हैं।

टीका टिप्पणी और संदर्भ

बाहरी कड़ियाँ

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