वैशाख
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विवरण | 'वैशाख' हिन्दू पंचांग का द्वितीय मास है। यह चैत्र के बाद और ज्येष्ठ से पहले आता है। |
अंग्रेज़ी | अप्रॅल-मई |
हिजरी माह | जमादी-उल-आख़िर - रजब |
व्रत एवं त्योहार | अक्षय तृतीया, मोहिनी एकादशी, वरूथिनी एकादशी |
जयंती एवं मेले | परशुराम जयन्ती, नृसिंह जयंती |
पिछला | चैत्र |
अगला | ज्येष्ठ |
विशेष | बैशाख मास के उपरान्त बंगाली 'नव वर्ष' का शुभारंभ होता है। ऐसे में नव वर्ष की मंगल कामना को लेकर बंगाली नागरिकों द्वारा भी 'नवरात्र' की तर्ज पर विशेष आध्यात्मिक कार्यक्रम आयोजित किये जाने की प्राचीन परम्परा रही है। इसी कड़ी में 'राधा माधव मंदिर' परिसर में प्रतिवर्ष 'बैशाख पूर्णिमा महोत्सव' का आयोजन किया गया है। |
अन्य जानकारी | वैशाखी पूर्णिमा को ब्रह्मा जी ने श्वेत तथा कृष्ण तिलों का निर्माण किया था। अतएव उस दिन दोनों प्रकार के तिलों से युक्त जल से व्रती स्नान करे, अग्नि में तिलों की आहुति दें, तिल, मधु तथा तिलों से भरा हुआ पात्र दान में दे। इसी प्रकार के विधि-विधान का विस्तृत विवरण विष्णुधर्म.[1] में उल्लेख है। |
वैशाख भारतीय काल गणना के अनुसार हिन्दू वर्ष का दूसरा माह है। इस मास के कुछ महत्त्वपूर्ण व्रत, जैसे अक्षय तृतीया आदि होते हैं। अक्षय तृतीया व्रतानुष्ठान पर्व वैशाख मास के शुक्ल पक्ष की तृतीया को मनाया जाता है। इस तिथि को किया गया दान, स्नान, जप, यज्ञादि शुभ कार्यों का फल अनन्त गुना होकर मानव के धर्म खाते में अक्षुण्य (अक्षय) हो जाता है। इसी से इसका नाम अक्षय तृतीया हुआ। कार्तिक मास में एक हज़ार बार यदि गंगा स्नान करें और माघ मास में सौ बार स्नान करें, वैशाख मास में नर्मदा में करोड़ बार स्नान करें तो उन स्नानों का जो फल होता है वह फल प्रयाग में कुम्भ के समय पर स्नान करने से प्राप्त होता है। इस मास में प्रात: स्नान का विधान है। विशेष रूप से इस अवसर पर पवित्र सरिताओं में स्नान की आज्ञा दी गयी है।
विशेष बिंदु
- पद्म पुराण[2] का कथन है कि वैशाख मास में प्रात: स्नान का महत्त्व अश्वमेध यज्ञ के समान है। इसके अनुसार शुक्ल पक्ष की सप्तमी को गंगाजी का पूजन करना चाहिए, क्योंकि इसी तिथि को महर्षि जह्नु ने अपने दक्षिण कर्ण से गंगा जी को बाहर निकाला था।
- वैशाख शुक्ल सप्तमी को भगवान बुद्ध का जन्म हुआ था। अतएव सप्तमी से तीन दिन तक उनकी प्रतिमा का पूजन किया जाना चाहिए। यह विशेष रूप से उस समय होना चाहिए, जब पुष्य नक्षत्र हो।
- वैशाख शुक्ल अष्टमी को दुर्गा जी, जो अपराजिता भी कहलाती हैं, की प्रतिमा को कपूर तथा जटामासी से सुवासित जल से स्नान कराना चाहिए। इस समय व्रती स्वयं आम के रस से स्नान करें।
- वैशाखी पूर्णिमा को ब्रह्मा जी ने श्वेत तथा कृष्ण तिलों का निर्माण किया था। अतएव उस दिन दोनों प्रकार के तिलों से युक्त जल से व्रती स्नान करे, अग्नि में तिलों की आहुति दे, तिल, मधु तथा तिलों से भरा हुआ पात्र दान में दे। इसी प्रकार के विधि-विधान का विस्तृत विवरण विष्णुधर्म.[3] में उल्लेख है।
- भगवान बुद्ध की वैशाख पूजा 'दत्थ गामणी' (लगभग 100-77 ई. पू.) नामक व्यक्ति ने लंका में प्रारम्भ करायी थी।[4]
- बैशाख मास के उपरान्त बंगाली 'नव वर्ष' का शुभारंभ होता है। ऐसे में नव वर्ष की मंगल कामना को लेकर बंगाली नागरिकों द्वारा भी 'नवरात्र' की तर्ज पर विशेष आध्यात्मिक कार्यक्रम आयोजित किये जाने की प्राचीन परम्परा रही है। इसी कड़ी में 'राधा माधव मंदिर' परिसर में प्रतिवर्ष 'बैशाख पूर्णिमा महोत्सव' का आयोजन किया गया है।
- बैशाख माह के शुक्ल पक्ष की एकादशी को मोहिनी एकादशी कहते हैं। मोहिनी एकादशी व्रत रखने निंदित कार्यो से छुट्कारा मिल जाता है| यह व्रत जगपति जग्दीश्वर भगवान राम और उनकी योगमाया को समर्पित है। जो व्यक्ति एकादशी का व्रत करते हैं उनका लौकिक और पारलौकिक जीवन संवर जाता है। यह व्रत रखने वाला धरती पर भी सुख पाता हैं और जब आत्मा देह का त्याग करती है तो उसे विष्णु लोक में स्थान प्राप्त होता है।
- आचार्य प्रदीप दवे के अनुसार बैशाख मास में पडने वाली दूसरी आखातीज के मुहूर्त विशेष में किसी भी प्रकार के मांगलिक कार्य संपन्न कराए जा सकते हैं। आखातीज के मुहूर्त में महत्त्व का कारण उसका सूर्य मेष राशि में स्थित होना है। इसके साथ चंद्रमा वृषभ राशि में संचरण करते हैं। सूर्य मेष राशि में उच्च के रहने एवं चंद्रमा वृषभ राशि में उच्च के रहने से यह श्रेष्ठ समय माना गया है। चंद्रमा व सूर्य प्रधान ग्रह हैं, जिनकी उच्च स्थिति होने से सभी स्थितियां अनुकूल हो जाती हैं। इससे विवाहादि आदि मांगलिक कार्यों व देव प्रतिष्ठा में सूर्य-चंद्रमा का बलवान होना आवश्यक होता है। इसके कारण वार, नक्षत्र, योग, करण आदि का दोष नहीं लगता।
- बैशाख माह के कृष्ण पक्ष की एकादशी को बरुथिनी एकादशी कहते है
- वैशाख मास में अवंतिका वास का विशेष पुण्य कहा गया है। चैत्र पूर्णिमा से वैशाखी पूर्णिमा पर्यन्त कल्पवास,नित्य क्षिप्रा स्नान-दान, तीर्थ के प्रधान देवताओं के दर्शन, स्वाध्याय, मनन-चिंतन,सत्संग, धर्म ग्रंथों का पाठन-श्रवण,संत-तपस्वी, विद्वान और विप्रो की सेवा, संयम,नियम, उपवास आदि के संकल्प के साथ तीर्थवास का महत्त्व है। जो आस्थावान व्यक्ति बैशाख मास में यहाँ वास करता है, वह स्वत: शिवरूप हो जाता है।
- बैशाख मास की संक्रांति पर स्नान का विशेष महत्त्व होता है और हर वर्ष इस पर्व में हज़ारों की संख्या में श्रद्धालु महादेव का आशीर्वाद प्राप्त कर पुण्य कमाते हैं।
- 'निर्णय सिन्धु' में वैशाख शुक्ल पक्ष की तृतीया में गंगा स्नान का महत्त्व बताया है -
बैशाखे शुक्लपक्षे तु तृतीयायां तथैव च ।
गंगातोये नर: स्नात्वा मुच्यते सर्वकिल्विषै: ॥
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ विष्णुधर्म., 90.10
- ↑ पद्म पुराण 4.85.41-70
- ↑ विष्णुधर्म., 90.10
- ↑ वालपोल राहुल (कोलम्बो, 1956) द्वारा रचित 'बुद्धिज्म इन सीलोन' , पृ. 80
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