शिमला समझौता

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3 जुलाई 1972 को भारत-पाकिस्तान युद्ध के बाद शिमला में एक संधि पर हस्ताक्षर हुए, जिसे शिमला समझौता कहा जाता है। इसमें भारत की तरफ से इंदिरा गांधी और पाकिस्तान की तरफ से जुल्फिकार अली भुट्टो शामिल थे। जुल्फिकार अली भुट्टो ने 20 दिसंबर, 1971 को पाकिस्तान के राष्ट्रपति का पदभार संभाला। उन्हें विरासत में एक टूटा हुआ पाकिस्तान मिला। सत्ता सभालते ही भुट्टो ने यह वादा किया कि वह शीघ्र ही बांग्लादेश को फिर से पाकिस्तान में शामिल करा लेंगे। पाकिस्तानी सेना के अनेक अधिकारियों को, देश की पराजय के लिए उत्तरदायी मान कर, बरखास्त कर दिया गया था। कई महीने तक चलने वाली राजनीतिक-स्तर की बातचीत के बाद जून, 1972 के अंत में शिमला में भारत-पाकिस्तान शिखर बैठक हुई। इंदिरा गाधी और जुल्फिकार भुट्टो ने, अपने उच्चस्तरीय मंत्रियों और अधिकारियों के साथ, उन सभी विषयों पर चर्चा की, जो 1971 के युद्ध से उत्पन्न हुए थे। साथ ही उन्होंने दोनों देशों के अन्य प्रश्नों पर भी बातचीत की। इनमें मुख विषय थे, युद्ध बंदियों की अदला-बदली, पाकिस्तान द्वारा बांग्लादेश को मान्यता का प्रश्न, भारत और पाकिस्तान के राजनयिक संबंधों को सामान्य बनाना, व्यापार फिर से शुरू करना और कश्मीर में नियंत्रण रेखा स्थापित करना। लंबी बातचीत के बाद भुट्टो इस बात के लिए सहमत हुए कि भारत-पाकिस्तान संबंधों को केवल द्विपक्षीय बातचीत से तय किया जाएगा। शिमला समझौते के अंत में एक समझौते पर इंदिरा गाधी और जुल्फिकार अली भुट्टो ने हस्ताक्षर किए।

समझौते के मुख्य बिंदु

इसमें यह प्रावधान किया गया कि दोनों देश अपने संघर्ष और विवाद समाप्त करने का प्रयास करेंगे, और यह वचन दिया गया कि उप-महाद्वीप में स्थाई मित्रता के लिए कार्य किया जाएगा।

सीधी बात करेंगे

इन उद्देश्यों के लिए इंदिरा गाधी और भुट्टो ने यह तय किया कि दोनों देश सभी विवादों और समस्याओं के शांतिपूर्ण समाधान के लिए सीधी बातचीत करेंगे और स्थिति में एकतरफा कार्रवाई करके कोई परिवर्तन नहीं करेंगे। वे एक दूसरे के विरुद्घ न तो बल प्रयोग करेंगे, न प्रादेशिक अखण्डता की अवेहलना करेंगे और न एक दूसरे की राजनीतिक स्वतंत्रता में कोई हस्तक्षेप करेंगे। दोनों ही सरकारें एक दूसरे देश के विरुद्घ प्रचार को रोकेंगी और समाचारों को प्रोत्साहन देंगी, जिनसे संबंधों में मित्रता का विकास हो। दोनों देशों के संबंधों को सामान्य बनाने के लिए सभी संचार संबंध फिर से स्थापित किए जाएंगे।

आवागमन की सुविधाएं

आवागमन की सुविधाएं स्थापित की जाएंगी ताकि दोनों देशों के लोग असानी से आ-जा सकें और घनिष्ठ संबंध स्थापित कर सकें।

व्यापार बढ़ाएंगे

जहाँ तक संभव होगा व्यापार और आर्थिक सहयोग शीघ्र ही फिर से स्थापित किए जाएंगे।

सहयोग करेंगे

विज्ञान और संस्कृति के क्षेत्र में आपसी आदान-प्रदान को प्रोत्साहन दिया जाएगा।

नियंत्रण रेखा

स्थाई शांति के हित में दोनों सरकारें इस बात के लिए सहमत हुई कि भारत और पाकिस्तान दोनों की सेनाएं अपने-अपने प्रदेशों में वापस चली जाएंगी। दोनों देशों ने 17 सितंबर, 1971 की युद्ध विराम रेखा को नियंत्रण रेखा के रूप में मान्यता दी और यह तय हुआ कि इस समझौते के बीस दिन के अंदर सेनाएं अपनी-अपनी सीमा से पीछे चली जाएंगी। यह तय किया गया कि भविष्य में दोनों सरकारों के अध्यक्ष मिलते रहेंगे और इस बीच अपने संबंध सामान्य बनाने के लिए दोनों देशों के अधिकारी बातचीत करते रहेंगे।



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