श्रीकांत वर्मा
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पूरा नाम | श्रीकांत वर्मा |
जन्म | 18 सितम्बर, 1931 |
जन्म भूमि | बिलासपुर, छत्तीसगढ़ |
मृत्यु | 26 मई, 1986 |
मृत्यु स्थान | न्यूयार्क |
अभिभावक | राजकिशोर वर्मा |
कर्म भूमि | भारत |
मुख्य रचनाएँ | 'भटका मेघ', 'जलसाघर', 'गरुड़ किसने देखा', 'दूसरे के पैर', 'अपोलो का रथ', 'फैसले का दिन' (अनुवाद) आदि। |
भाषा | हिन्दी |
विद्यालय | 'नागपुर विश्वविद्यालय' |
शिक्षा | बी.ए., एम.ए. |
पुरस्कार-उपाधि | 'तुलसी पुरस्कार' (1973), 'आचार्य नन्ददुलारे वाजपेयी पुरस्कार' (1983), 'शिखर सम्मान' (1980), 'साहित्य अकादमी पुरस्कार' (1987)। |
नागरिकता | भारतीय |
अन्य जानकारी | श्रीकांत वर्मा दिल्ली में पत्रकारिता से भी जुड़े। 1965 से 1977 तक 'टाइम्स ऑफ इंडिया' के प्रकाशन समूह से निकलने वाली पत्रिका 'दिनमान' में उन्होंने विशेष संवाददाता की हैसियत से काम किया था। |
इन्हें भी देखें | कवि सूची, साहित्यकार सूची |
श्रीकांत वर्मा (अंग्रेज़ी: Shrikant Varma; जन्म- 18 सितम्बर, 1931, बिलासपुर, छत्तीसगढ़; मृत्यु- 26 मई, 1986, न्यूयार्क) हिन्दी साहित्य में कथाकार, गीतकार और एक समीक्षक के रूप में विशेष तौर पर जाने जाते हैं। राजनीति से भी ये जुड़े हुए थे और 1976 में राज्य सभा में निर्वाचित हुए थे। श्रीकांत वर्मा दिल्ली में पत्रकारिता से भी जुड़ गये थे। वर्ष 1965 से 1977 तक उन्होंने 'टाइम्स ऑफ़ इण्डिया' से निकलने वाली पत्रिका 'दिनमान' में संवाददाता की हैसियत से कार्य किया। श्रीकांत वर्मा भूतपूर्व प्रधानमंत्री श्रीमती इन्दिरा गाँधी के काफ़ी क़रीब थे। श्रीकांत वर्मा को कई पुरस्कारों से भी सम्मानित किया गया था।
जन्म तथा शिक्षा
श्रीकांत वर्मा का जन्म 18 सितम्बर, 1931 को बिलासपुर, छत्तीसगढ़ में हुआ था। इनका पिता का नाम राजकिशोर वर्मा था, जो पेशे से वकील थे। प्रारम्भिक शिक्षा के लिए श्रीकांत वर्मा का दाखिला बिलासपुर के एक अंग्रेज़ी स्कूल में कराया गया, लेकिन वहाँ का वातावरण इन्हें रास नहीं आया। श्रीकांत वर्मा ने उस स्कूल को छोड़ दिया और नगरपालिका के स्कूल से शिक्षा ग्रहण की। मैट्रिक पास कर लेने के बाद आगे की शिक्षा के लिए उन्हें इलाहाबाद भेजा गया। वहाँ उन्होंने 'क्रिश्चियन कॉलेज' में दाखिला लिया। लेकिन वहाँ उन्हें घर की याद सताने लगी और वे बिलासपुर वापस लौट आए। यहीं से उन्होंने बी.ए. तक की पढ़ाई पूरी की। फिर बाद में प्राइवेट से 'नागपुर विश्वविद्यालय' से एम.ए. किया।[1]
व्यावसायिक संघर्ष
श्रीकांत जी के पिता वकील थे और परिवार भी समृद्ध था, फिर भी श्रीकांत वर्मा को काफ़ी कठिन दिन देखने पड़े। 1952 तक वे बेकारी झेलते रहे। घर की आर्थिक स्थिति ख़राब होती जा रही थी। अब उन्होंने स्कूल शिक्षक की नौकरी शुरू की। वे परिवार में सबसे बड़े थे, इसलिए परिवार की जिम्मेदारी भी उन पर आ पड़ी। 1954 में उनकी भेंट गजानन माधव 'मुक्तिबोध' से हुई। उनकी प्रेरणा से बिलासपुर में श्रीकांत वर्मा ने नवलेखन की पत्रिका 'नयी दिशा' का संपादन करना शुरू किया।
संपादन एवं प्रकाशन कार्य
1956 से नरेश मेहता के साथ प्रख्यात साहित्यिक पत्रिका 'कृति' का दिल्ली से संपादन एवं प्रकाशन कार्य किया। वर्ष 1956 से लेकर 1963 तक का समय उनके लिए संघर्ष का काल था। 1964 में रायपुर की सांसद मिनी माता ने उन्हें दिल्ली के अपने सरकारी आवास में रहने के लिए बुला लिया, जहाँ वे अगले ग्यारह साल तक रहे। दिल्ली में वे पत्रकारिता से भी जुड़े। 1965 से 1977 तक 'टाइम्स ऑफ इंडिया' के प्रकाशन समूह से निकलने वाली पत्रिका 'दिनमान' में उन्होंने विशेष संवाददाता की हैसियत से काम किया।[1]
राजनीति में सक्रियता
बाद के समय में श्रीकांत वर्मा कांग्रेस की राजनीति में सक्रिय हो गए और उन्हें 'दिनमान' से अलग होना पड़ा। 1969 में वे तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गाँधी के काफ़ी क़रीब आये। वे कांग्रेस के महासचिव भी बनाये गये थे। 1976 में वे मध्य प्रदेश से राज्य सभा में निर्वाचित हुए। इसके बाद 1980 में कांग्रेस प्रचार समीति के अध्यक्ष नियुक्त हुए। राजीव गाँधी के शासन काल में उन्हें 1985 में महासचिव के पद से हटा दिया गया।
रचनाएँ
श्रीकांत वर्मा पचास के दशक में उभरने वाले 'नई कविता आंदोलन' के प्रमुख कवियों में से एक थे। उनकी मुख्य रचनाएँ इस प्रकार हैं-
- काव्य रचनाएँ - भटका मेघ (1957), मायादर्पण (1967), दिनारंभ (1967), जलसाघर (1973), मगध (1983) और गरुड़ किसने देखा (1986)।
- उपन्यास - दूसरी बार (1968)।
- कहानी-संग्रह - झाड़ी (1964), संवाद (1969), घर (1981), दूसरे के पैर (1984), अरथी (1988), ठंड (1989), वास (1993) और साथ (1994)।
- यात्रा वृत्तांत - अपोलो का रथ (1973)।
- संकलन - प्रसंग।
- आलोचना - जिरह (1975)।
- साक्षात्कार - बीसवीं शताब्दी के अंधेरे में (1982)।
- अनुवाद - 'फैसले का दिन' रूसी कवि आंद्रे बेंज्नेसेंस्की की कविता का अनुवाद।
पुरस्कार व सम्मान
- 'तुलसी पुरस्कार' (1973) - मध्य प्रदेश सरकार।
- 'आचार्य नन्ददुलारे वाजपेयी पुरस्कार' (1983)
- 'शिखर सम्मान' (1980)
- 'कुमार आशान राष्ट्रीय पुरस्कार' (1984) - केरल सरकार।
- 'साहित्य अकादमी पुरस्कार' (1987) - 'मगध' नामक कविता संग्रह के लिए मरणोपरांत।[1]
निधन
जीवन के अंतिम क्षणों में श्रीकांत वर्मा जी को अनेक बीमारियों ने घेर रखा था। अमेरिका में वे कैंसर का इलाज कराने के लिए गए थे। 26 मई, 1986 को न्यूयार्क में उनका निधन हुआ।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ 1.0 1.1 1.2 श्रीकांत वर्मा (हिन्दी)। । अभिगमन तिथि: 26 सितम्बर, 2013।
बाहरी कड़ियाँ
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