श्रीमद्भागवत महापुराण दशम स्कन्ध अध्याय 11 श्लोक 41-52

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दशम स्कन्ध: एकादशो ऽध्यायः(11) (पूर्वार्ध)

श्रीमद्भागवत महापुराण: दशम स्कन्ध: एकादशो ऽध्यायः श्लोक 41-52 का हिन्दी अनुवाद

एक दिन की बात है, श्याम और बलराम अपने प्रेमी सखा ग्वालबालों के साथ यमुना तट पर बछड़े चरा रहे थे। उसी समय उन्हें मारने की नीयत से एक दैत्य आया। भगवान ने देखा कि वह बनावटी बछड़े का रूप धारण कर बछड़ों के झुंड में मिल गया है। वे आँखों के इशारे से बलराम जी को दिखाते हुए धीरे-धीरे उसके पास पहुँच गये। उस समय ऐसा जान पड़ता था, मानों वे दैत्य को तो पहचानते नहीं और उस हट्टे-कट्टे सुन्दर बछड़े पर मुग्ध हो गये हैं। भगवान श्रीकृष्ण ने पूँछ के साथ उसके दोनों पिछले पैर पकड़कर आकाश में घुमाया और मर जाने पर कैथ के वृक्ष पर पटक दिया। उसका लम्बा-तगड़ा दैत्य शरीर बहुत-से कैथ के वृक्षों को गिराकर स्वयं भी गिर पड़ा। यह देखकर ग्वालबालों के आश्चर्य की सीमा न रही। वे ‘वाह-वाह’ करके प्यारे कन्हैया की प्रशंसा करने लगे। देवता भी बड़े आनन्द से फूलों की वर्षा करने लगे।

परीक्षित! जो सारे लोकों के एकमात्र रक्षक हैं, वे ही श्याम और बलराम अब वत्स्पाल [1] बने हुए हैं। वे तड़के ही उठकर कलेवे की सामग्री ले लेते और बछड़ों को चराते हुए एक वन से दूसरे वन में घूमा करते। एक दिन की बात है, सब ग्वालबाल अपने झुंड-के-झुंड बछड़ों को पानी पिलाने के लिए जलाशय के तट पर ले गये। उन्होंने पहले बछड़ों को जल पिलाया और फिर स्वयं भी पिया।

ग्वालबालों ने देखा कि वहाँ एक बहुत बड़ा जीव बैठा हुआ है। वह ऐसा मालूम पड़ता था, मानों इन्द्र के वज्र से कटकर कोई पहाड़ का टुकड़ा गिरा हुआ है। ग्वालबाल उसे देखकर डर गये। वह ‘बक’ नाम का एक बड़ा भारी असुर था, जो बगुले का रूप धर के वहाँ आया था। उसकी चोंच बड़ी तीखी थी और वह स्वयं बड़ा बलवान था। उसने झपटकर कृष्ण को निगल लिया।

जब बलराम आदि बालकों ने देखा कि वह बड़ा भारी बगुला श्रीकृष्ण को निगल गया, तब उनकी वही गति हुई जो प्राण निकल जान पर इन्द्रियों की होती हैं। वे अचेत हो गये। परीक्षित! श्रीकृष्ण लोकपितामह ब्रह्मा के भी पिता हैं। वे लीला से ही गोपाल-बालक बने हुए हैं। जब वे बगुले के तालु के नीचे पहुँचे, तब वे आग के समान उसका तालु जलाने लगे। अतः उस दैत्य ने श्रीकृष्ण के शरीर पर बिना किसी प्रकार का घाव किये ही झटपट उन्हें उगल दिया और फिर बड़े क्रोध से अपनी कठोर चोंच से उन पर चोट करने के लिए टूट पड़ा।

कंस का सखा बकासुर अभी भक्तवत्सल भगवान श्रीकृष्ण पर झपट ही रहा था कि उन्होंने अपने दोनों हाथों से उसके दोनों ठोर पकड़ लिये और ग्वालबालों के देखते-देखते खेल-ही-खेले में उसे वैसे ही चीर डाला, जैसे कोई वीरान[2] को चीर डाले। इससे देवताओं को बड़ा आनन्द हुआ । सभी देवता भगवान श्रीकृष्ण पर नंदनवन के बेला, चमेली आदि के फूल बरसाने लगे तथा नगारे, शंख आदि बजाकर एवं स्त्रोतों के द्वारा उनको प्रसन्न करने लगे। यह सब देखकर सब-के-सब ग्वालबाल आश्चर्यचकित हो गये।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. बछड़ों के चरवाहे
  2. गाँडर, जिसकी जड़ का खास होता है

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