श्रीमद्भागवत महापुराण दशम स्कन्ध अध्याय 52 श्लोक 41-44

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दशम स्कन्ध: द्विपञ्चाशत्त्मोऽध्यायः (52) (उत्तरार्धः)

श्रीमद्भागवत महापुराण: दशम स्कन्ध: द्विपञ्चाशत्त्मोऽध्यायः श्लोक 41-44 का हिन्दी अनुवाद

प्रभो! आप अजित हैं। जिस दिन मेरा विवाह होने वाला हो उसके एक दिन पहले आप हमारी राजधानी में गुप्त रूप से आ जाइये और फिर बड़े-बड़े सेनापतियों के साथ शिशुपाल तथा जरासन्ध की सेनाओं को मथ डालिये, तहस-नहस कर दीजिये और बलपूर्वक राक्षस-विधि से वीरता का मूल्य देकर मेरा पाणिग्रहण कीजिये । यदि आप यह सोचते हों कि ‘तुम तो अन्तःपुर में—भीतर के जनाने महलों में पहरे के अंदर रहती हो, तुम्हारे भाई-बंधुओं को मारे बिना मैं तुम्हें कैसे ले जा सकता हूँ ?’ तो इसका उपाय मैं आपको बतलाये देती हूँ। हमारे कुल का ऐसा नियम है कि विवाह के पहले दिन कुलदेवी का दर्शन करने के लिये एक बहुत बड़ी यात्रा होती है, जुलूस निकलता है—जिसमें विवाहि जाने वाली कन्या को, दुलहिन को नगर के बाहर गिरिजादेवी के मन्दिर में जाना पड़ता है । कमलनयन! उमापति भगवान शंकर के समान बड़े-बड़े महापुरुष भी आत्माशुद्धि के लिये आपके चरणकमलों की धूल से स्नान करना चाहते हैं। यदि मैं आपका वह प्रसाद, आपकी चरणधूल नहीं प्राप्त कर सकी तो व्रत द्वारा शरीर को सुखाकर प्राण छोड़ दूँगी। चाहे उसके लिये सैकड़ों जन्म क्यों ने लेने पड़े, कभी-न-कभी तो आपका वह प्रसाद अवश्य ही मिलेगा ।

ब्राम्हणदेवता ने कहा—यदुवंशशुरोमणे! यही रुक्मिणी के अत्यन्त गोपनीय सन्देश हैं, जिन्हें लेकर मैं आपके पास आया हूँ। इसके सम्बन्ध में जो कुछ करना हो, विचार कर लीजिये और तुरंत ही उसके अनुसार कार्य कीजिये ।






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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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