श्रीमद्भागवत महापुराण द्वादश स्कन्ध अध्याय 1 श्लोक 21-39
द्वादश स्कन्ध: प्रथमोऽध्यायः (1)
कण्व वंश के चार नरपति काण्वायन कहलायेंगे और कलियुग में तीन सौ पैंतालिस वर्ष तक पृथ्वी का उपभोग करेंगे । प्रिय परीक्षित्! कण्ववंशी सुशर्मा का एक शूद्र सेवक होगा—बली। वह अन्ध्रजाति का एवं बड़ा दुष्ट होगा। वह सुशर्मा को मारकर कुछ समय तक स्वयं पृथ्वी का राज्य करेगा । इसके बाद उसका भाई कृष्ण राजा होगा। कृष्ण का पुत्र श्रीशान्तकर्ण और उसका पौर्णमास होगा । पौर्णमास का लम्बोदर और लम्बोदर अक पुत्र चिविलक होगा। चिविलक का मेघस्वाति, मेघ स्वाति का अटमान, अटमान का अनिष्टकर्मा, अनिष्टकर्मा का हालेय, हालेय का तलक, तलक का पुरीषभीरु और पुरीषभीरु का पुत्र होगा राजा सुनन्दन । परीक्षित्! सुनन्दन का पुत्र होगा चकोर; चकोर के आठ पुत्र होंगे, जो सभी ‘बहु’ कहलायेंगे। इनमें सबसे छोटे का नाम होगा शिवस्वाति। वह बड़ा वीर होगा और शत्रुओं का दमन करेगा। शिवस्वाति का गोमतीपुत्र और उसका पुत्र होगा पुरीमान् । पुरीमान् का मेदःशिरा, मेदःशिरा का शिवस्कन्द, शिवस्कन्द का यज्ञश्री, यज्ञश्री का विजय और विजय के दो पुत्र होंगे—चन्द्र विज्ञ और लोमधि । परीक्षित्! ये तीस राजा चार सौ छप्पन वर्ष तक पृथ्वी का राज्य भोगेंगे ।
परीक्षित्! इसके पश्चात् अवभृति-नगरी के सात आभीर, दस गर्दभी और सोलह कंक पृथ्वी का राज्य करेंगे। ये सब-के-सब बड़े लोभी होंगे । इनके बाद आठ यवन और चौदह तुर्क राज्य करेंगे। इसके बाद दस गुरुदण्ड और ग्यारह मौन नरपति होंगे । मौनों के अतिरिक्त ये सब एक हजार निन्यानबे वर्ष तक पृथ्वी का उपभोग करेंगे। तथा ग्यारह मौन नरपति तीन सौ वर्ष तक पृथ्वी का शासन करेंगे। जब उनका राज्यकाल समाप्त हो जायगा, तब किलिकिला नाम की नगरी में भूतनन्द नाम का राजा होगा। भूतनन्द का वंगिरी, वंगिरिका भाई शिशुनन्दि तथा यशोनन्दि और प्रवीरक—ये एक सौ छह वर्ष तक राज्य करेंगे ।
इनके तेरह पुत्र होंगे और वे सब-के-सब बाह्लिक कहलायेंगे।उनके पश्चात् पुष्यमित्र नामक क्षत्रिय और उसके पुत्र दुर्मित्र का राज्य होगा । परीक्षित्! बाह्लिकवंशी नरपति एक साथ ही विभिन्न प्रदेशों में राज्य करेंगे। उनमें सात अन्ध्र देश के तथा सात ही कोसल देश के अधिपति होंगे, कुछ विदूर-भूमि के शासक और कुछ निषेध देश के स्वामी होंगे ।
इनके बाद मगध देश का राजा होगा विश्व-स्फूर्जि। यह पूर्वोक्त पुरंजय के अतिरिक्त द्वितीय पुरंजय कहलायेगा। यह ब्रम्हाणादि उच्च वर्णों को पुलिन्द, यदु और मद्र आदि म्लेच्छप्राय जातियों के रूप में परिणत कर देगा । इसकी बुद्धि इतनी दुष्ट होगी कि यह ब्राम्हण, क्षत्रिय और वैश्यों का नाश करके शुद्रप्राय जनता की रक्षा करेगा। यह अपने बल-वीर्य से क्षत्रियों को उजाड़ देगा और पद्मवती पुरी को राजधानी बनाकर हरिद्वार से लेकर प्रयाग पर्यन्त सुरक्षित पृथ्वी का राज्य करेगा । परीक्षित्! ज्यों-ज्यों घोर कलियुग आता जायगा, त्यों-त्यों सौराष्ट्र अवन्ती, आभीर, शूर, अर्बुद और मालव देश के ब्राम्हणगण संस्कार शून्य हो जायँगे तथा राजा लोग भी शूद्रतुल्य हो जायँगे । सिन्धुतट, चन्द्रभागा का तटवर्ती प्रदेश, कौन्तीपुत्री और काश्मीर-मण्डल पर प्रायः शूद्रों का, संस्कार एवं ब्रम्हतेजस से हीन नाम मात्र के द्विजों का और म्लेच्छों का राज्य होगा ।
« पीछे | आगे » |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
संबंधित लेख
-