श्रेणी:लंकाकाण्ड
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- अंगद अरु हनुमंत प्रबेसा
- अंगद तहीं बालि कर बालक
- अंगद नाम बालि कर बेटा
- अंगद सुना पवनसुत
- अंगद स्वामिभक्त तव जाती
- अंगदादि कपि मुरुछित
- अंतरधान भयउ छन एका
- अगुन अमान जानि तेहि
- अगुन सगुन गुन मंदिर सुंदर
- अज ब्यापकमेकमनादि सदा
- अति उतंग गिरि पादप
- अति गर्ब गनइ न सगुन
- अति बल मधु कैटभ जेहिं मारे
- अति बिचित्र बाहिनी बिराजी
- अति हरष मन तन पुलक लोचन
- अतिसय प्रीति देखि रघुराई
- अधर लोभ जम दसन कराला
- अनवद्य अखंड न गोचर गो
- अनुज जानकी सहित
- अब अपलोकु सोकु सुत तोरा
- अब करि कृपा बिलोकि
- अब कहु कुसल बालि कहँ अहई
- अब जन गृह पुनीत प्रभु कीजे
- अब जनि बतबढ़ाव खल करही
- अब दीनदयाल दया करिऐ
- अब धौं कहा करिहि करतारा
- अब पति मृषा गाल जनि मारहु
- अब भरि अंक भेंटु मोहि भाई
- अब सोइ जतन करहु तुम्ह ताता
- अबहीं ते उर संसय होई
- अमल अचल मन त्रोन समाना
- अरुन नयन बारिद तनु स्यामा
- अस कहि गई अपछरा जबहीं
- अस कहि चला रचिसि मग माया
- अस कहि छाड़ेसि बान प्रचंडा
- अस कहि नयन नीर भरि
- अस कहि बहुत भाँति समुझाई
- अस कहि मरुत बेग रथ साजा
- अस कहि रथ रघुनाथ चलावा
- अस कहि लछिमन कहुँ कपि ल्यायो
- अस कौतुक करि राम
- अस कौतुक बिलोकि द्वौ भाई
- अस बिचारि खल बधउँ न तोही
- अस बिचारि सुनु प्रानपति
- असगुन अमित होहिं तेहि काला
- असि रव पूरि रही नव खंडा
- असुभ होन लागे तब नाना
- अस्तुति करत देवतन्हि देखें
- अस्तुति करि सुर सिद्ध सिधाए
- अहंकार सिव बुद्धि अज
- अहह दैव मैं कत जग जायउँ
- अहह नाथ रघुनाथ सम
आ
इ
उ
- उग्र बचन सुनि सकल डेराने
- उठी रेनु रबि गयउ छपाई
- उत पचार दसकंधर
- उत रावन इत राम दोहाई
- उत्तम कुल पुलस्ति कर नाती
- उमा करत रघुपति नरलीला
- उमा काल मर जाकीं ईछा
- उमा जोग जप दान तप
- उमा बिभीषनु रावनहि
- उमा राम की भृकुटि बिलासा
- उर माझ गदा प्रहार घोर
- उर लात घात प्रचंड
- उहाँ दसानन जागि करि
- उहाँ दसानन सचिव हँकारे
- उहाँ राम लछिमनहि निहारी
- उहाँ सकोपि दसानन सब
ए
- एक एक सन मरमु न कहहीं
- एक एक सों मर्दहिं
- एक कहत मोहि सकुच
- एक कहहिं ऐसिउ सौंघाई
- एक नखन्हि रिपु बपुष बिदारी
- एक बहोरि सहसभुज देखा
- एक बान काटी सब माया
- एकहि एक सकइ नहिं जीती
- एकु एकु निसिचर गहि
- एतना कपिन्ह सुना जब काना
- एहि के हृदयँ बस जानकी
- एहि बधि बेगि सुभट सब धावहु
- एहि बिधि जल्पत भयउ बिहाना
- एहीं बीच निसाचर अनी
क
- कंत समुझि मन तजहु कुमतिही
- कंप न भूमि न मरुत बिसेषा
- कछु मारे कछु घायल
- कटकटान कपिकुंजर भारी
- कटहिं चरन उर सिर भुजदंडा
- कथा कही सब तेहिं अभिमानी
- कपि अकुलाने माया देखें
- कपि तव दरस भइउँ निष्पापा
- कपि बल देखि सकल हियँ
- कपि लंगूर बिपुल नभ छाए
- कपिपति नील रीछपति
- कपिलीला करि तिन्हहि डेरावहिं
- कर गहि पतिहि भवन निज आनी
- कर सारंग साजि कटि भाथा
- करि चिक्कार घोर अति
- करि बिनती जब संभु सिधाए
- करि बिनती सुर सिद्ध सब
- करेहु कल्प भरि राजु तुम्ह
- कलस सहित गहि भवनु ढहावा
- कह अंगद सलज्ज जग माहीं
- कह कपि तव गुन गाहकताई
- कह कपि धर्मसीलता तोरी
- कह दसकंठ कवन तैं बंदर
- कह प्रभु हँसि जनि हृदयँ डेराहू
- कह रघुबीर कहा मम मानहु
- कह रघुबीर देखु रन सीता
- कह सुग्रीव सुनहु रघुराई
- कह हनुमंत सुनहु प्रभु
- कहँ कोसलाधीस द्वौ भ्राता
- कहँ रामु कहि सिर निकर
- कहइ दसानन सुनहू सुभट्टा
- कहत विभीषन सुनहु कृपाला
- कहहिं सचिव सठ ठकुर सोहाती
- कहहु कवन भय करिअ बिचारा
- कहाँ बिभीषनु भ्राताद्रोही
- कहि दुर्बचन क्रुद्ध दसकंधर
- कहि न सकहिं कछु प्रेम
- काटत बढ़हिं सीस समुदाई
- काटत सिर होइहि बिकल
- काटतहीं पुनि भए नबीने
- काटे सिर नभ मारग धावहिं
- काटे सिर भुज बार बहु
- काटें भुजा सोह खल कैसा
- कादर भयंकर रुधिर सरिता
- कान नाक बिनु भगिनि निहारी
- काल दंड गहि काहु न मारा
- काल बिबस पति कहा न माना
- कालरूप खल बन
- किए सुखी कहि बानी
- कीन्हेहु प्रभु बिरोध तेहि देवक
- कुंभकरन अस बंधु मम
- कुंभकरन कपि फौज बिडारी
- कुंभकरन मन दीख बिचारी
- कुंभकरन रन रंग बिरुद्धा
- कुंभकरन रावन द्वौ भाई
- कृतकृत्य बिभो सब बानर ए
- कृपादृष्टि करि बृष्टि
- कृपादृष्टि प्रभु ताहि बिलोका
- कोउ कह जब बिधि रति मुख कीन्हा
- कोउ ब्रह्म निर्गुन ध्याव
- कोट कँगूरन्हि सोहहिं कैसे
- कोटि कोटि गिरि सिखर प्रहारा
- कोटिन्ह गहि सरीर सन मर्दा
- कोटिन्ह चक्र त्रिसूल पबारै
- कोटिन्ह मेघनाद सम
- कोपि कपिन्ह दुर्घट गढ़ु घेरा
- कोपि कूदि द्वौ धरेसि बहोरी
- कोपि महीधर लेइ उपारी
- कौतुक कूदि चढ़े कपि लंका
- क्रुद्धे कृतांत समान कपि
ख
ग
- गए जानि अंगद हनुमाना
- गगनोपरि हरि गुन गन गाए
- गयउ सभा दरबार तब
- गयउ सभाँ मन नेकु न मुरा
- गर्जि परे रिपु कटक मझारी
- गहसि न राम चरन सठ जाई
- गहि गिरि तरु अकास कपि धावहिं
- गहि गिरि पादप उपल
- गहि भूमि पार्यो लात मार्यो
- गहिसि पूँछ कपि सहित उड़ाना
- गहेउ चरन गहि भूमि पछारा
- गिरत सँभारि उठा दसकंधर
- गिरिजा जासु नाम जपि
- गिरिहहिं रसना संसय नाहीं
- गुन ध्यान निधान अमान अजं
- गूलरि फल समान तव लंका