श्रेणी:सुन्दरकाण्ड
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"सुन्दरकाण्ड" श्रेणी में पृष्ठ
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- अजर अमर गुननिधि सुत होहू
- अति उतंग जलनिधि चहुँ पासा
- अति कोमल रघुबीर सुभाऊ
- अति बिसाल तरु एक उपारा
- अनुज समेत गहेहु प्रभु चरना
- अनुज सहित मिलि ढिग बैठारी
- अब कहु कुसल जाउँ बलिहारी
- अब कृपाल निज भगति पावनी
- अब बिलंबु केह कारन कीजे
- अब मैं कुसल मिटे भय भारे
- अबहिं मातु मैं जाउँ लवाई
- अवगुन एक मोर मैं माना
- अस कहि करत दंडवत देखा
- अस कहि चला बिभीषनु जबहीं
- अस कहि बिहसि ताहि उर लाई
- अस कहि रघुपति चाप चढ़ावा
- अस प्रभु छाड़ि भजहिं जे आना
- अस मैं अधम सखा
- अस मैं सुना श्रवन दसकंधर
- अस सज्जन मम उर बस कैसें
- अहोभाग्य मम अमित अति
उ
क
- कछु मारेसि कछु मर्देसि
- कनक कोटि बिचित्र मनि
- कपि करि हृदयँ बिचार
- कपि के बचन सप्रेम
- कपि कें ममता पूँछ
- कपि बंधन सुनि निसिचर धाए
- कपिपति बेगि बोलाए
- कपिहि बिलोकि दसानन
- कर जोरें सुर दिसिप बिनीता
- करत राज लंका सठ त्यागी
- करि जतन भट कोटिन्ह बिकट
- कह कपि हृदयँ धीर धरु माता
- कह प्रभु सखा बूझिए काहा
- कह लंकेस कवन तैं कीसा
- कह लंकेस सुनहु रघुनायक
- कह सीता बिधि भा प्रतिकूला
- कह सुक नाथ सत्य सब बानी
- कह सुग्रीव सुनहु सब बानर
- कह हनुमंत बिपति प्रभु सोई
- कहहु कवन मैं परम कुलीना
- कहु कपि केहि बिधि राखौं प्राना
- कहु कपि रावन पालित लंका
- कहेउ राम बियोग तव सीता
- कहेहु तात अस मोर प्रनामा
- कहेहु मुखागर मूढ़ सन
- कहेहू तें कछु दुख घटि होई
- काटेहिं पइ कदरी फरइ
- काम क्रोध मद लोभ
- की तजि मान अनुज
- की तुम्ह हरि दासन्ह महँ कोई
- की भइ भेंट कि फिरि
- कुबलय बिपिन कुंत बन सरिसा
- कोटि बिप्र बध लागहिं जाहू
च
ज
- जग महुँ सखा निसाचर जेते
- जदपि कही कपि अति हित बानी
- जदपि सखा तव इच्छा नहीं
- जनकसुतहि समुझाइ करि
- जनकसुता रघुनाथहि दीजे
- जब लगि आवौं सीतहि देखी
- जलनिधि रघुपति दूत बिचारी
- जस जस सुरसा बदनु बढ़ावा
- जहँ तहँ गईं सकल तब
- जाइ पुकारे ते सब
- जाके बल लवलेस तें
- जाकें डर अति काल डेराई
- जाकें बल बिरंचि हरि ईसा
- जात पवनसुत देवन्ह देखा
- जानउँ मैं तुम्हारि प्रभुताई
- जानतहूँ अस स्वामि बिसारी
- जानेहि नहीं मरमु सठ मोरा
- जामवंत कह सुनु रघुराया
- जामवंत के बचन सुहाए
- जासु दूत बल बरनि न जाई
- जासु नाम जपि सुनहु भवानी
- जासु सकल मंगलमय कीती
- जिअसि सदा सठ मोर जिआवा
- जितेहु सुरासुर तब श्रम नाहीं
- जिन्ह के जीवन कर रखवारा
- जिन्ह पायन्ह के पादुकन्हि
- जिन्ह मोहि मारा ते मैं मारे
- जीति को सकइ अजय रघुराई
- जुगुति बिभीषन सकल सुनाई
- जे पद जनकसुताँ उर लाए
- जेहिं गिरि चरन देइ हनुमंता
- जेहिं पुर दहेउ हतेउ सुत तोरा
- जो आपन चाहै कल्याना
- जो संपति सिव रावनहि
- जोइ जोइ सगुन जानकिहि होई
- जोजन भरि तेहिं बदनु पसारा
- जौं आवइ मर्कट कटकाई
- जौं न होति सीता सुधि पाई
- जौं रघुबीर अनुग्रह कीन्हा
- जौं रघुबीर होति सुधि पाई
त
- तजि मद मोह कपट छल नाना
- तब तव बदन पैठिहउँ आई
- तब देखी मुद्रिका मनोहर
- तब मधुबन भीतर सब आए
- तब लगि कुसल न जीव
- तब लगि हृदयँ बसत खल नाना
- तब हनुमंत कही सब
- तरु पल्लव महँ रहा लुकाई
- तव अनुचरीं करउँ पन मोरा
- तव उर कुमति बसी बिपरीता
- तव कुल कमल बिपिन दुखदाई
- तव प्रेरित मायाँ उपजाए
- ता कहुँ प्रभु कछु अगम
- ताकर दूत अनल जेहिं सिरिजा
- तात चरन गहि मागउँ
- तात मातु हा सुनिअ पुकारा
- तात राम नहिं नर भूपाला
- तात सक्रसुत कथा सनाएहु
- तात स्वर्ग अपबर्ग सुख
- तामस तनु कछु साधन नाहीं
- तासु बचन सुनि सागर पाहीं
- ताहि बयरु तजि नाइअ माथा
- ताहि मारि मारुतसुत बीरा
- ताहि राखि कपीस पहिं आए
- तिन्ह कर भय माता मोहि नाहीं
- तिन्हहि निपाति ताहि सन बाजा
- तुरत नाइ लछिमन पद माथा
- त्रिजटा नाम राच्छसी एका
- त्रिजटा सन बोलीं कर जोरी
द
न
- नख आयुध गिरि पादपधारी
- नर बानरहि संग कहु कैसें
- नाइ चरन सिरु चला सो तहाँ
- नाइ सीस करि बिनय बहूता
- नाथ एक आवा कपि भारी
- नाथ काजु कीन्हेउ हनुमाना
- नाथ कृपा करि पूँछेहु जैसें
- नाथ दसानन कर मैं भ्राता
- नाथ दैव कर कवन भरोसा
- नाथ नील नल कपि द्वौ भाई
- नाथ पवनसुत कीन्हि जो करनी
- नाथ भगति अति सुखदायनी
- नाना तरु फल फूल सुहाए
- नाम पाहरू दिवस निसि
- निज पद नयन दिएँ मन
- निज भवन गवनेउ सिंधु
- निबुकि चढ़ेउ कप कनक अटारीं
- निमिष निमिष करुनानिधि
- निर्मल मन जन सो मोहि पावा
- निसिचर निकर पतंग
- निसिचर मारि तोहि लै जैहहिं
- निसिचरि एक सिंधु महुँ रहई
- नूतन किसलय अनल समाना
प
- परम क्रोध मीजहिं सब हाथा
- पापवंत कर सहज सुभाऊ
- पावकमय ससि स्रवत न आगी
- पुनि पठयउ तेहिं अच्छकुमारा
- पुनि संभारि उठी सो लंका
- पुनि सब कथा बिभीषन कही
- पुनि सर्बग्य सर्ब उर बासी
- पुनि सिरु नाइ बैठ निज आसन
- पुर रखवारे देखि बहु
- पूँछ बुझाइ खोइ श्रम
- पूँछहीन बानर तहँ जाइहि
- पूँछिहु नाथ राम कटकाई
- प्रगट बखानहिं राम सुभाऊ
- प्रथम प्रनाम कीन्ह सिरु नाई
- प्रनतपाल रघुनायक करुना
- प्रबिसि नगर कीजे सब काजा
- प्रभु तुम्हार कुलगुर जलधि
- प्रभु पद पंकज नावहिं सीसा
- प्रभु प्रताप मैं जाब सुखाई