सिकन्दर जहाँ बेगम

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सिकन्दर जहाँ बेगम (1844-1868 ई.) भोपाल के नवाब जहाँगीर मोहम्मद ख़ान (1837-1844 ई.) की बेगम थी। नवाब के निधन के बाद दस्तगीर मोहम्मद ख़ान को सत्तासीन करा दिया गया था, परन्तु ईस्ट इंडिया कम्पनी एवं नज़र मोहम्मद ख़ान के साथ हुये समझौते के अनुसार उसके मरने पर उसकी बेटी या दामाद को शासक बनाया जाना तय हुआ था। इस आधार पर सिकन्दर जहाँ बेगम को शासिका बनाया गया एवं दस्तगीर ख़ान की नियुक्ति को समाप्त कर दिया गया।

सम्पूर्ण सत्ता पर अधिकार

शासिका बनने के बाद सिकन्दर जहाँ बेगम ने मियाँ फ़ौजदार मोहम्मद ख़ाँ को, जो सिकन्दर जहाँ बेगम का मामा था, अपनी रियासत का मंत्री नियुक्त कर दिया। मंत्री बनते ही मोहम्मद ख़ाँ ने अपने निकट संबंधियों को महत्त्वपूर्ण पदों पर बिठा दिया और समानान्तर सरकार चला दी। लेकिन सिकन्दर जहाँ बेगम को अंतत: इस समानान्तर सत्ता को हटाने में सफलता मिली और उसका पूरी सत्ता पर क़ब्ज़ा हो गया। फ़ौजदार मोहम्मद ख़ाँ अपने पद से इस्तीफ़ा देना पड़ा। इसके बाद राजा यशवंत राय को रियासत का मंत्री बनाया गया और रियासत की तरक़्क़ी के लिए अनेक क़दम उठाये गये। पूरी रियासत को तीन भागों में बांट दिया गया और वहाँ के मंडलाधिकारी और उनके सहयोगी भी नियुक्त हुए।[1]

अंग्रेज़ों की वफ़ादार

कुछ समय बाद भोपाल रियासत के कुछ लोगों ने सीहोर में विद्रोह कर दिया। नवाब सिकन्दर जहाँ बेगम ने इससे निपटने के लिये अपनी बड़ी फ़ौज भेजकर सीहोर छावनी की सुरक्षा में सहयोग दिया। इसमें अंग्रेज़ फ़ौज ने विद्रोह करने वालों को पकड़कर कठोर सज़ा दी। इसके बाद अंग्रेज़ सरकार ने बेगम को पूरी ज़िन्दगी रीजेन्ट की हैसियत से मान्यता प्रदान कर दी। पूरी तरह से सत्ता पर क़ाबिज़ होने के बाद भी सिकन्दर जहाँ बेगम अपनी वयस्क बेटी शाहजहाँ बेगम की शादी करने में काफ़ी आना-कानी करती रही। अंतत: शाहजहाँ बेगम का विवाह फ़ीरोज़ खेल खानदान में बाकी मोहम्मद ख़ान से 26 जुलाई, 1854 ई. में हो गया। इसीके साथ ही सिकन्दर बेगम ने अंग्रेज़ सरकार से मिलकर नया क़ानून लागू करवाया कि यदि रियासत में लड़के के बजाय लड़की पैदा होती है तो वही शासक होगी, उसका पति नहीं। 1857 ई. में आज़ादी की पहली लड़ाई शुरू हो गई, इसमें सिकन्दर बेगम ने अपना पूरा सहयोग अंग्रेज़ ईस्ट इंडिया कम्पनी को दिया। इस वफ़ादारी के आधार पर कम्पनी ने बेगम को कई प्रकार की सहूलियतें प्रदान कर दीं।

7 फ़रवरी, 1861 ई. को सिकन्दर जहाँ बेगम ने जबलपुर में वायसराय से भेंट की और वहाँ धार रियासत के एक भाग बैरसिया परगना को भोपाल रियासत में दे दिया गया। इसी वर्ष नवम्बर में नवाब बेगम को जी.सी.एस.आई. की उपाधि इलाहाबाद में दी गई एवं बैरसिया को भोपाल रियासत में दिये जाने की सनद 27 दिसम्बर, 1861 ई. में जारी की गई।[1]

दिल्ली यात्रा

सिकन्दर जहाँ बेगम ने कई नये क़ानून बनवाये तथा ज़िलों, तहसीलों एवं थानों की स्थापना की तथा एक प्रशासन विभाग भी बनाया। शिक्षा के क्षेत्र में मदरसा सुलेमानी, विक्टोरिया स्कूल भी खुलवाये। 22 जनवरी, 1862 ई. को अपनी दिल्ली यात्रा के दौरान वह ज़ामा मस्जिद भी देखने गई। उसने देखा कि दिल्ली की ज़ामा मस्जिद को ब्रिटिश सेना की घुड़साल में तब्दील कर दिया गया है। सिकन्दर बेगम ने अपनी वफ़ादारियों के बदले अंग्रेज़ों से इस मस्जिद को हासिल कर लिया और स्वयं अपना योगदान प्रदान करते हुए मस्जिद की सफाई करवाकर शाही इमाम की स्थापना की। बेगम ने भोपाल में भी मस्जिद बनाने का इरादा कर लिय। सिकन्दर बेगम का ये स्वप्न उसके जीते जी पूरा नहीं हो सका, लेकिन बाद में उसकी पुत्री शाहजहाँ बेगम ने इसे पूर्ण करने का फैसला किया।

निधन

नवाब सिकन्दर जहाँ बेगम ने देश भर का दौरा किया तथा तीन बार वायसराय से भेंट की। वह हज करने मक्का भी गई। 51 वर्ष की उम्र में 30 अक्टूबर, 1868 ई. को उसका देहान्त हो गया।[1]


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. 1.0 1.1 1.2 नवाब सिकंदर जहाँ बेगम (हिन्दी) (एच.टी.एम.एल.)। । अभिगमन तिथि: 1 जून, 2012।

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