स्वाधीनता संग्राम में उत्तराखंड का योगदान
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उत्तराखंड में ईस्ट इंडिया कंपनी का आगमन 1815 में हुआ। वास्तव में यहाँ अंग्रेज़ों का आगमन गोरखों के 25 वर्षीय सामन्ती सैनिक शासन का अंत भी था।
- 1815 से 1857 तक यहां कंपनी के शासन का दौर सामान्यतः शान्त और गतिशीलता से वंचित शासन के रूप में जाना जाता है। ईस्ट इंडिया कंपनी के अधिकार में आने के बाद यह क्षेत्र 'ब्रिटिश गढवाल' कहलाने लगा था। किसी प्रबल विरोध के अभाव में अविभाजित गढवाल के राजकुमार सुदर्शनशाह को कंपनी ने आधा गढ़वाल देकर मना लिया परन्तु चंद शासन के उत्तराधिकारी यह स्थिति भी न प्राप्त कर सके।
- 1856-1884 तक उत्तराखंड हेनरी रैमजे के शासन में रहा तथा यह युग ब्रिटिश सत्ता के शक्तिशाली होने के काल के रूप में पहचाना गया। इसी दौरान सरकार के अनुरूप समाचारों का प्रस्तुतीकरण करने के लिये 1868 में 'समय विनोद' तथा 1871 में 'अल्मोड़ा अखबार' की शुरुआत हुई।
स्वाधीनता संग्राम में उत्तराखंड
- 1905 मे बंगाल के विभाजन के बाद अल्मोडा के नंदा देवी नामक स्थान पर विरोध सभा हुई। इसी वर्ष कांग्रेस के 'बनारस अधिवेशन' में उत्तराखंड से हरगोविन्द पंत, मुकुन्दीलाल, गोविन्द बल्लभ पंत बदरी दत्त पाण्डे आदि युवक भी सम्मिलित हुये।
- 1906 में हरिराम त्रिपाठी ने वन्देमातरम् जिसका उच्चारण ही तब देशद्रोह माना जाता था, उसका कुमाऊँनी अनुवाद किया।
- भारतीय स्वतंत्रता आन्दोलन की एक इकाई के रुप में उत्तराखंड में स्वाधीनता संग्राम के दौरान 1913 के कांग्रेस अधिवेशन में उत्तराखंड के ज्यादा प्रतिनिधि सम्मिलित हुये। इसी वर्ष उत्तराखंड के अनुसूचित जातियों के उत्थान के लिये गठित टम्टा सुधारिणी सभा का रूपान्तरण एक व्यापक शिल्पकार महासभा के रूप में हुआ।
- 1916 के सितम्बर माह में हरगोविन्द पंत, गोविन्द बल्लभ पंत, बदरी दत्त पाण्डे, इन्द्रलाल साह, मोहन सिंह दड़मवाल, चन्द्र लाल साह, प्रेम बल्लभ पाण्डे, भोलादत पाण्डे और लक्ष्मीदत्त शास्त्री आदि उत्साही युवकों के द्वारा कुमाऊँ परिषद की स्थापना की गयी जिसका मुख्य उद्देश्य तत्कालीन उत्तराखंड की सामाजिक तथा आर्थिक समस्याओं का समाधान खोजना था। 1926 तक इस संगठन ने उत्तराखण्ड में स्थानीय सामान्य सुधारों की दिशा के अतिरिक्त निश्चित राजनीतिक उद्देश्य के रूप में संगठनात्मक गतिविधियां संपादित कीं। 1923 तथा 1926 के प्रान्तीय काउन्सिल के चुनाव में गोविन्द बल्लभ पंत हरगोविन्द पंत, मुकुन्दी लाल तथा बदरी दत्त पाण्डे ने प्रतिपक्षियों को बुरी तरह पराजित किया।
- 1926 में कुमाऊँ परिषद का कांग्रेस में विलीनीकरण कर दिया गया। 1927 में साइमन कमीशन की घोषणा के तत्काल बाद इसके विरोध में स्वर उठने लगे और जब 1928 में कमीशन देश मे पहुँचा तो इसके विरोध में 29 नवम्बर 1928 को जवाहरलाल नेहरू के नेतृत्व में 16 व्यक्तियों की एक टोली ने विरोध किया जिस पर घुडसवार पुलिस ने निर्ममतापूर्वक डंडों से प्रहार किया। जवाहरलाल नेहरू को बचाने के लिये गोविन्द बल्लभ पंत पर हुये लाठी के प्रहार के शारीरिक दुष्परिणाम स्वरूप वे बहुत दिनों तक कमर सीधी नहीं कर सके थे।
उत्तराखंड आंदोलन के स्वर
आधिकारिक सूत्रों के अनुसार मई में तत्कालीन ब्रिटिश शासन में गढ़वाल के श्रीनगर में आयोजित कांग्रेस के अधिवेशन में पंडित जवाहर लाल नेहरू ने इस पर्वतीय क्षेत्र के निवासियों को अपनी परिस्थितियों के अनुसार स्वयं निर्णय लेने तथा अपनी संस्कृति को समृद्ध करने के आंदोलन का समर्थन किया।
भारतीय स्वतंत्रता आन्दोलन में उत्तराखंड
भारतीय स्वतंत्रता आन्दोलन की एक इकाई के रुप् में 'उत्तराखंड में स्वाधीनता संग्राम' के दौरान उत्तराखंड के शहीदों की सूची।
तिलाडी के शहीद
- अजीत सिंह पुत्र काशी सिंह (1904-1930)
- झूना सिंह पुत्र खडग सिंह(1912-1930)
- गौरू पुत्र सिनकया (1907-1930)
- नारायण सिंह पुत्र देबू सजवाण (1908-1930)
- भगीरथ पुत्र रूपराम (1904-1930)
तिलाडी के आन्दोलनकारी जो कारागार में शहीद हुये
- गुन्दरू पुत्र सागरू (1890-1932)
- गुलाब सिंह ठाकुर (1910- टिहरी जेल में मृत्यु)
- ज्वाला सिंह पुत्र जमना सिंह (1880-1931)
- जमन सिंह पुत्र लच्छू (1880-1931)
- दिला पुत्र दलपति (1880- टिहरी जेल में मृत्यु)
- मदन सिंह (1875- टिहरी जेल में मृत्यु)
- लुदर सिंह पुत्र रणदीप (1890-1932)
टिहरी के शहीद
- श्रीदेव सुमन पुत्र हरिराम बडोनी (1915-1944 टिहरी जेल में मृत्यु)
कीर्तिनगर के शहीद
- नागेन्द्र सकलानी पुत्र कृपा राम (1920-1948)
- मोलू राम भरदारी पुत्र लीला नन्द (1918-1948)
जैती (सालम) के शहीद
- नरसिंह धानक (1886-1942)
- टीका सिंह कन्याल पुत्र जीत सिंह (1919-1942)
खुमाड़ (सल्ट) के शहीद
- सीमानन्द पुत्र टीकाराम (1913-1942)
- गंगादत्त पुत्र टीकाराम (1909-1942)
- चुडामणि पुत्र परमदेव (1886-1942)
- बहादुर सिंह पुत्र पदम सिंह(1890-1942)
देघाट के शहीद
- हरिकृष्ण (-1942)
- हीरामणि (-1942)
जेलों में शहीद संग्रामी
- रतन सिंह पुत्र दौलत सिंह, बोरारौ (1916-)
- उदय सिंह पुत्र भवान सिंह, बोरारौ (1917-)
- किशन सिंह पुत्र दान सिंह, बोरारौ (1906-)
- बाग सिंह पुत्र खीम सिंह, बोरारौ (1905-)
- दीवान सिंह पुत्र खीम सिंह, बोरारौ (1905-)
- अमर सिंह पुत्र देव सिंह, बोरारौ (1918-)
- त्रिलोक सिंह पांगती, चनौदा आश्रम
- विशन सिंह, चनौदा
- रामकृष्ण दुमका, हल्दूचौड
- दीवान सिंह, पहाड़कोटा (-1943)
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
बाहरी कड़ियाँ
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