स्वामीनाथ अखाड़ा, वाराणसी
तुलसी घाट पर अखाड़ा स्वामीनाथ अपने दो सौ वर्षों का इतिहास समेटे हुए स्थित है। कहा जाता है कि इस अखाड़े की स्थापना गोस्वामी तुलसीदास जी ने की थी लेकिन संकट मोचन के महन्त तुलसीराम जी के समय से अखाड़े को प्रसिद्धि मिली। महन्त श्री स्वामी नाथ ने इस अखाड़े को प्रसिद्धि की चरम सीमा पर पहुँचा दिया। फलतः उनके नाम के साथ इस अखाड़े को जोड़ दिया गया।
एक क़िस्सा
90 वर्षीय शिव पहलवान बताते हैं “भइया दस ज़िला में महन्त स्वामीनाथ जइसन लड़वैया कोई नाहीं रहल। को जाँघ रहल, सीना और बाँह को कटाव…….ओह! पूछ मत………….”। तब बनारस में एक बहुत जबर्दस्त दंगल हुआ था। महन्त स्वामीनाथ बनाम राममृर्ति पहलवान का। राममूर्ति पहलवान तब देश के प्रमुख पहलवान थे। उनके लड़ने की हिम्मत जुटाना बहुत कठिन था। राममूर्ति बनारस में आये और उन्होंने चुनौती दी। सारे बनारसी पहलवानों की सिट्टी-पिट्टी गुम हो गयी थी। लेकिन बनारस की आन-बान-शान की खातिर महन्त स्वामीनाथ जी ने चुनौती को स्वीकारा। पूरे बनारस में तहलका मच गया। स्वामीनाथ जी के पिता तुलसीराम जी ने पुत्र की नादानी पर सिर पकड़ लिया। कुश्ती के चौबीस घंटे पूर्व वे संकट मोचन जी में हनुमान जी के सामने फाँसी का फन्दा गले में डालकर खड़े हो गये और हनुमान जी से बोले- “अगर हार भइल तो फाँसी लगालेब। तुलसी दास जी के अखाड़े के अपने जीअत न हारे देब”। स्वामीनाथ जी ने बड़ी जीवंतता से रिआज किया। तुलसी मन्दिर स्थित ‘गुफा के हनुमान जी’ की एक पैर पर खड़े होकर 48 घंटे आराधना की। मुकाबले के दिन पूरा बनारस उमड़ पड़ा था। प्रश्न यह था कि “बनारस को इज्ज्त बची की नाहीं।” राममूर्ति पहलवान शेर की तरह अखाड़े में घूम रहे थे। महन्त स्वामीनाथ जी जैसे ही अखाड़े में उतरे दर्शकों की साँसे टंग गईं। उस्ताद ने मुकाबला शुरू होने की आज्ञा दी एक सेकेण्ड के लिए दोनों ने ताकत आजमाइश की। अभी राममूर्ति अपने को स्थापित करते कि महन्त जी ने ‘धोबिया पाट’ मारा और देश का सिरमौर चारो खाने चित्त हो गया। काशी के लोगों ने महन्त जी को फूलों से लाद दिया। राममूर्ति दुबारा लड़ने की मिन्नत करते रहे, लेकिन जुलूस बनारस की सड़कों पर घूम रहा था। तुलसीराम जी फाँसी का फन्दा हटाकर हनुमान जी के चरणों में गिर पड़े, खुशी से घंटो रोते रहे। आखिर रोते क्यों न! हनुमान जी ने पूरे बनारस की लाज रख ली थी। कहते हैं कि वह कुश्ती स्वामीनाथ जी ने नहीं, हनुमान जी ने स्वयं लड़ी थी। 95 वर्षीय छोटी गैबी के मल्लू गुरू बताते हैं कि “वइसन दंगल बनारस में कब्बौ नाहीं भइल”। स्वामीनाथ जी ने बनारस की नाम रख ली थी। शिव पहलवान बताते हैं कि तब स्वामीनाथ जी की कुश्ती में तूती बोलती थी। उन्होंने भीमभवानी को भी पटका था, जो राममूर्ति का प्रधान शिष्य था। तभी से अखाड़ा स्वामीनाथ बड़ा सिद्ध अखाड़ों में गिना जाता है।
पहलवान स्वामीनाथ
स्वामीनाथ जी के दोनों पुत्र अमरनाथ जी एवं बांके लाल जी भी मल्ल कला के धनी थे। बाँकेराम जी ने किसी दंगल में भाग नहीं लिया, लेकिन वे अखाड़े में नियमित अभ्यास करते रहते थे। बाद में उन्हेंने योग की कई विधाओं में महारत हासिल कर ली थी। अमरनाथ जी ने दो तीन दंगलों में भाग लिया था। गंगापुर के दंगल में उन्होंने कई नामी पहलवानों को हराया। टाउन हाल के दंगल में प्रसिद्ध पंजाबी पहलवान को दे मारा था। एक हजार दण्ड और दो हजार बैठकी जवानी में करते थे। पहलवानी के साथ ही अमरनाथ जी पखावज के अत्यन्त शौकीन ही नहीं देश के मूर्धन्य कलाकार थे। उनमें मल्ल और संगीत का अद्भुत समन्वय था। बनारस के इतिहास में ऐसा समन्वय किसी में देखने को नहीं मिला।
अखाड़ा स्वामीनाथ में उमानाथ पाण्डेय, परमहंस, कमला, शंकर गुरु, त्रिलोकी गुरु सुखनन्दन सेठ, भगवानदास, बबुआ सिंह, राम नारायण जैसे प्रसिद्ध पहलवान हुए। शंकर गुरू ने रामसेवक के पट्ठे मटटू को एक सेकेण्ड में चित्त करके तहलका मचा दिया था। पुराने पहलवानों में 90 वर्षीय शिव पहलवान अभी जीवित हैं। उन्होंने बाबू दिल्ली वाले, खद्दीपुर के सरदारा कड़का सिंह तथा फज्जाम पहलवान से लड़कर खूब नाम कमाया था। निकाल, कैंची बगली इनके प्रसिद्ध दाँव थे। इसी अखाड़े पर गल्लू नट को भी हार का मुँह देखना पड़ा था। वर्तमान समय में कल्लू पहलवान का बड़ा नाम है। उन्होंने बनारस केशरी, जौनपुर केशरी, एवं 90 किलो भार वर्ग में उत्तर प्रदेश में प्रथम स्थान पाया है। कल्लू ने बम्बई के शंकर कदम को ‘निकाल’ पर चित्त कर इस अखाड़े का नाम रौशन किया है। बम्बई के बाबू साहब भाने, जौनपुर के वाहिद के साथ की इनकी कुश्ती शानदार रही। सियाराम ने बी.एच.यू0 कुमार जीता। मेवालाल, अच्छे पहलवान, रामजीत, श्यामलाल, अशोक, गोरख, मारकण्डेय (उत्तर प्रदेश पुलिस जैम्पियन), लल्लन, शंकर, बरसाती, लक्खन, रामकेश प्रमुख पहलवान हैं। इस अखाड़े पर आज भी लगभग 40-50 पहलवान रोज कुश्ती कला का अभ्यास करते हैं। स्वामीनाथ जी के परिवार से अब कुश्ती खत्म हो गयी लगती है। महन्त डॉ. वीरभद्र मिश्र भी पहले इस अखाड़े की ‘धूर’ में लोटा करते थे। इस अखाड़े के प्रसिद्ध दाँवों में, धोबियापाट, ढॉक, चौमुखा काला जंग, मच्छी गोता, साद, काला जंग, नेवाज बन्द, हलरबून, मोतीचूर, सखी आदि प्रमुख हैं। अखाड़े के पहलवानों ने बताया कि अगर इस अखाड़े को आधुनिक सामग्रियों से युक्त कर दिया जाय और एक अच्छे कोच की व्यवस्था कर दी जाय, तो यहाँ से अच्छे पहलवानों के आगे आने में कोई शंका नहीं होगी। बनारस के कुछ प्रसिद्ध अखाड़ों के नाम इस प्रकार हैं-जो अब लगभग बन्द हो गये हैं- अखाड़ा अशरफी सिंह-भदैनी, कल्लू कलीफा-मदनपुरा, इशुक मास्टर-मदनपुरा, शकूर मजीद, छत्तातले-दालमण्डी, मस्जिद में जिलानी, बचऊ चुड़िहारा-चेतगंज, गंगा-चेतगंज, वाहिद पहलवान-अर्दली बाज़ार, खूद बकस-बेनिया, चुन्नी साव-राजघाट चुँगी आदि। वाराणसी में अखाड़ों और अखाड़ियों की बड़ी शानदार परम्परा रही है। यह कला बनारस की शान से जुड़ी थी, लेकिन अब वह स्थिति नहीं रही। यदि सरकार दिल्ली की तरह बनारस के अखाड़ों को भी सुविधा प्रदान करे, तो यहाँ के पहलवान काफ़ी नाम रोशन कर सकते हैं। [1]
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ अखाड़े/व्यायामशालाएँ (हिंदी) काशीकथा। अभिगमन तिथि: 19 जनवरी, 2014।
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