स्वासह तुरिय जो उच्चरे -रहीम

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स्वासह तुरिय जो उच्चरे, तिय है निहचल चित्त ।
पूरा परा घर जानिए, ‘रहिमन’ तीन पवित्त ॥

अर्थ

ये तीनों परम पवित्र हैं :- वह स्वास, जिसे खींचकर योगी त्वरीया अवस्था का अनुभव करता है, वह स्त्री, जिसका चित्त पतिव्रत में निश्चल हो गया है, पर पुरुष को देखकर जिसका मन चंचल नहीं होता। और सुपुत्र, [जो अपने चरित्र से कुल का दीपक बन जाता है।]


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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